सारे संसार को एक मंच पर लाने का सामर्थ्य महामति प्राणनाथ जी की तारतमवाणी में है- पूज्य राजन स्वामी
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर में व्याख्यान माला सम्पन्न

छतरपुर,realindianews.com। महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर के दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला एवं शोध केंद्र के द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा में महामति प्राणनाथ और महाराजा छत्रसाल का अवदान विषय पर व्याख्यान माला का आयोजन माननीय कुलगुरु प्रो शुभा तिवारी के निर्देशन में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुल सचिव श्री यशवंत सिंह पटेल ने की और मुख्य वक्ता के रूप में श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ सरसावा उत्तर प्रदेश के पूज्य संत श्री राजन स्वामी जी रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में पन्ना धाम के श्री डी के दुबे ने मंच को गरिमा प्रदान की।इस अवसर पर दर्शनशास्त्र विभाग के समस्त आचार्य ,शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के पूजन अर्चन से हुआ। प्रोफेसर पी के खरे, डॉ बी डी नामदेव, श्री संतोष प्रजापति शोधार्थी रानी तथा गौरव द्विवेदी, भगवानदास अनुरागी और देवेंद्र शुक्ला ने मंचसीन अतिथियों का पुष्पहारों से आत्मीय स्वागत किया। विभागाध्यक्ष डॉ जयप्रकाश शाक्य ने पूज्य राजन स्वामी का विस्तृत परिचय विद्यार्थियों के समक्ष रखा।
प्रणामी संप्रदाय की एक विचारधारा
उद्बोधन में श्री राजन स्वामी जी ने कहा कि वेदों का ज्ञान शाश्वत , सनातन और सत्य है। धर्म एक है वह शाश्वत है तथा अनादि है। प्रणामी संप्रदाय की एक विचारधारा है जो शाश्वत धर्म पर आधारित है ।सारे संसार को एक मंच पर लाने का सामर्थ्य महामति प्राणनाथ जी की तारतम वाणी में है जो महामति प्राणनाथ के द्वारा प्रणीत है । तारतमवाणी में अलौकिक ज्ञान है यह निजानंद का ज्ञान है। आज समाज भटक रहा है महामति प्राणनाथ की वाणी में इस भटकाव को रोकने के उपाय बताए गए हैं जिससे मनुष्य आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है ।
आध्यात्मिक गुरु के रूप में महामति प्राणनाथ जी ने महाराजा छत्रसाल का सदैव मार्गदर्शन किया -यशवंत सिंह
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलसचिव श्री यशवंत सिंह पटेल ने कहा कि महामति प्राणनाथ और महाराजा छत्रसाल का अंतर्संबंध जगजाहिर है। एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में महामति प्राणनाथ जी ने महाराजा छत्रसाल का सदैव मार्गदर्शन किया। महाराजा छत्रसाल ने भी महामति प्राणनाथ के ऊपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। महामति प्राणनाथ के द्वारा महाराजा छत्रसाल की आत्मा का जागरण किया गया। महाराजा छत्रसाल वेद ,ब्राह्मण, गौरक्षक,, उदार हृदय ज्ञानी, शूरवीर,यशस्वी प्रजापालक थे। उन्हें प्रणामी धर्म के ध्वजवाहक के रूप में भी याद किया जाता है।
महाराजा छत्रसाल महामति प्राणनाथ के अनन्य शिष्य थे- प्रो.जयप्रकाश
अपने उद्बोधन में प्रोफेसर जयप्रकाश शाक्य ने बताया कि महाराजा छत्रसाल महामति प्राणनाथ के अनन्य शिष्य थे। प्रणामी पंथ के प्रचारक थे और महामति प्राणनाथ की कृपा से ही उन्होंने बुंदेलखंड की सीमाओं का विस्तार किया था। हिंदू धर्म में जो स्थान और सम्मान श्री राम के साथ हनुमान जी का है वही सम्मान और स्थान प्रणामी परंपरा में महामति प्राणनाथ जी के साथ महाराजा छत्रसाल का है। इस अवसर पर श्री राजन स्वामी ने दर्शनशास्त्र विभाग को प्रणामी साहित्य शोधार्थियों के लिए भेंट किया।मंच संचालन श्री संतोष प्रजापति ने किया और आभार प्रदर्शन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जयप्रकाश शाक्य ने किया।