धर्म/ज्योतिषमध्यप्रदेश

अद्भुत है पृथ्वी परिक्रमा का 400 साल पुराना इतिहास

विश्व के कोने-कोने से पद्मावतीपुरी धाम पन्ना पहुंचते है सुन्दरसाथ

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विश्व में हिन्दु धर्म के अनेको तीर्थ स्थल हैं। उन्ही में मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में स्थित पन्ना में स्थित निजानंद सम्प्रदाय का प्रमुख प्राणनाथ मंदिर का मत्वपूर्ण स्थान है। यहां साल भर होने वाले आयोजनों में देश -विदेश से लाखों सुन्दरसाथ आते हैं। यहां दीपावली के बाद आयाोजित होने वाला पृथ्वी परिक्रमा का अपना अलग ही महत्व है। आज से 400 साल पहले से चले आ रहे आयोजन में शामिल होने विश्व स्तर से लोग आते हैं। रियल इंडिया न्यूज डॉट कॉम आपको पृथ्वी परिक्रमा का मूल सार बताने जा रहा है।
निजानंद सम्प्रदाय के वयोवृद्ध लेखक पं. ब्रजवासी लाल दुबे जी नें अपनी पुस्तक इन विध साथजी जागिये में पृथ्वी परिक्रमा को सरल शब्दावली के माध्यम से बताया है।
पृथ्वी परिक्रमा : हमारी संस्कृति में बड़ा महत्व
प्रणामी धर्म में शरद पूर्णिमा के ठीक बाद पृथ्वी परिक्रमा की पूर्णिमा मनाई जाती है, जिसमें इस दिन हजारों तीर्थयात्री दूर-दूर से से पद्मावती पुरी धाम, पन्ना पधारते हैं। पन्ना धाम में स्थित श्री गुम्मट जी मंदिर में साक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा विराजित हैं। शरद पूर्णिमा को रास लीला में जिस प्रकार वे अदृश्य होकर दूर हो गये थे, अब पुन: न हो जायें, इसलिए हम सब उन्हें घेरकर उनकी परिक्रमा करें और सदा के लिए उन्हें अपने हृदय में बसा लें, इसी पवित्र भावना से यहाँ पृथ्वी परिक्रमा शुरु होती है । परिक्रमा का हमारे भारत में और हमारी संस्कृति में बड़ा महत्व है। भारतीय धर्म-दर्शन में परिक्रमा का बड़ा महत्व है। प्रणामी धर्म ने इस परंपरा को नये अर्थ प्रदान किए हैं ।
श्री कृष्ण पूर्णब्रह्म परमात्मा एक मात्र आराध्य हैं
प्रणामी धर्म में श्री कृष्ण पूर्णब्रह्म परमात्मा एक मात्र आराध्य हैं और पतिव्रत भाव से उनकी पूजा-अर्चना का विधान है। इसलिए श्री कृष्ण की लीलाओं का यहाँ बड़ा महत्व है । श्री कृष्ण स्वयं प्रकृति प्रेमी हैं। उनके जीवन में वन-उपवन, नदियों, पुष्पों, लताओं और वृक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे वन-उपवन में गौएँ चराते हैं। यमुना नदी में स्नान करते हैं। कालिया नाथते हैं, उसके फ न पर नृत्य करते हैं। इन्द्र की पूजा छुड़वाकर गोप-गोपियों से गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाते हैं। कदम्ब के फूल उन्हें बहुत प्रिय हैं। कदम्ब के पेड़ पर बैठकर वे बाँसुरी बजाते हैं। घने वृक्षों की लताओं से झूला बनाकर वे गोप-गोपियों के साथ झूला झूलते हैं । इस प्रकार वे प्रकृति में और प्रकृति उनमें बसी है । प्रणामी धर्म में आज का दिन प्रकृति के महत्व को स्मरण करने का दिन है। सुबह चार बजे उठकर सभी नर-नारी स्नान करके सर्वप्रथम श्री गुम्मट जी मंदिर की परिक्रमा करते हैं। तत्पश्चात पूरे मोहल्ले से गुजरते हुये मंदिर प्रांगण की बाहर से परिक्रमा की जाती है। इसके बाद पूरी पन्ना नगरी की परिक्रमा की जायेगी। यह परिक्रमा ब्रह्ममुनियों की चरण-रज की तलाश है। ब्रह्मसृष्टियों की चरण- रज का बड़ा महत्व है। इसके लिए कहा गया है।
ब्रह्मसृष्टि की चरण रज, खोज थके त्रैगुन।
कई विध करी तपस्या, यों कहत वेद वचन।।

इस अवसर पर गाई जाने वाली कुछ प्रभातियाँ इस प्रकार हैं-
प्रात उठि महाराज ने जसुदा जी जगावें…, पिया विनती कैसे करूँ मति मंद हमारी…, जोवन गर्व न कीजिए जग जीवन है थोड़ा…,इत्यादि ।
जो महत्ता द्वापर में ब्रज मण्डल को प्राप्त थी अर्थात श्री कृष्ण वहाँ गोप गोपियों के साथ चले-फि रे, उन्होंने वहाँ तरह-तरह की लीलाएँ की, महारास का आयोजन वहाँ हुआ एवं श्री कृष्ण की अन्य लीलाएँ वहाँ पर हुईं, इसलिए द्वापर में वह भूखण्ड महत्वपूर्ण रहा। कलियुग में यही महत्ता पन्ना धाम को प्राप्त है। पूर्णब्रह्म परमात्मा अपनी जागनी लीला करने के लिए हजारों ब्रह्ममुनियों सहित इस भूमि पर पधारे। यहाँ चले-फिरे, यहाँ उन्होंने जागनी लीला की। अखण्ड धाम का महारास इसी भूमि पर हुआ। इसलिए यह भूखण्ड श्री 5 पद्मावती पुरी धाम, पन्ना इस कलियुग में बृजमंडल की भाँति पवित्र और मुक्ति प्रदान करने वाला है।
परिक्रमा कर लेने का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं
आज इस विशाल परिक्रमा द्वारा भक्तगण पन्ना परमधाम की परिक्रमा करके पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेने का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। महामति श्री प्राणनाथ जी एवं उनके अनन्य शिष्य महाराज छत्रसाल तथा हजारों ब्रह्ममुनि जो गोपियों के रूप में कभी ब्रजमंडल में रहेए कलियुग में उन्होंने अपनी लीला-भूमि के रूप में पन्ना धाम को चुना। यह इस भूमि का परम सौभाग्य है । ब्रह्ममुनि जिन्होंने पूर्णब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार कियाए वे इस धरती पर चले फिरे । यह वह धरती हैए जिस पर उनके चरण पड़े। वे ही रजकण हैं जो उनके स्पर्श से पवित्र हुये। हम आज इस भूमण्डल में जंगल-जंगल घूमते हैं, उन रज-कणों का स्पर्श पाने के लिएए जिन रज.कणों ने सदियों पूर्व महान ब्रह्ममुनियों का स्पर्श पाया था, उनका स्पर्श पाकर हम भी पवित्र हो जाते हैं । वे पहाड़ए वे नदियाँए वे वृक्षए वे लताएँ जिन्होंने कभी यहाँ ब्रह्ममुनियों का सानिध्य पायाए हम इस परिक्रमा के माध्यम से उनके पास जाते हैं तथा प्रकृति और परमात्मा के पारस्परिक आत्मिक संबध का स्मरण करते हैं।
दोपहर होने से पूर्व परिक्रमा शुरू हो जाती
दोपहर होने से पूर्व परिक्रमा शुरू हो जाती है। किलकिला नदी को पार कर हम इस यात्रा पर निकल पड़ते हैं, यह वही किलकिला नदी है, जिसका पानी विष के समान था। पशु-पक्षी भी इस जल को पीकर मर जाते थे। महाप्रभु श्री प्राणनाथ जी ने अपने स्पर्श से चरणामृत द्वारा इस जल को अमृत के समान बनाया। उसी जल को पीकर लोग आज जीवन पाते हैं। इस नदी का स्पर्श एक अनुभव है, जिसे कभी महामति श्री प्राणनाथ जी ने स्पर्श किया था। इसके बाद जंगलों और पहाड़ों से गुजरते हुये लोग आगे बढ़ते हैं। निश्चित है इन्हीं जंगलों और पहाड़ों के इन्हीं दुर्गम रास्तों से महामति श्री
प्राणनाथ जी उनके साथ आये, हजारों ब्रह्ममुनि सुंदरसाथ तथा महाराज छत्रसाल भी गुजरे होंगे । जाने अनजाने हम भी उन्हीं मार्गों पर चल पड़े, तो निश्चित है उन दिव्य रज कणों का हमें भी स्पर्श मिलेगा, जिस पर होकर ब्रह्ममुनि गुजरे। यह सौभाग्य पाने की आकांक्षा ही इस परिक्रमा का उद्देश्य है।
कविवर ज्ञानदास ने इस संदर्भ में एक बहुत अच्छा पद लिखा है।
जहाँ आए श्री राज, परना की रज लगे प्यारी।
धन्य धन्य विंध्याचल है, विध्यांचल है,
तापर झण्डा विराजे, परना की रज लगे प्यारी।।
धन्य धन्य गुम्मट बंगला, गुम्मट बंगला,
धन्य तखत समाज, परना की रज लगे प्यारी।
धन्य धन्य तहाँ के वासी, तहां के वासी,
धन्य तिनके काज, परना की रज लगे प्यारी।।
विष की नदिया अमृत कीन्हीं,अमृत कीन्हीं,
कियो हीरन को साज, परना की रज लगे प्यारी।
ज्ञानदास कहे कर जोरी, कहे कर जोरी,
मोरी राखो पिया लाज, परना की रज लगे प्यारी ।।

प्रकृति हमें जीवन प्रदान करती है, वह प्राणदायिनी है इसलिए उसकी निकटता हमारे लिये जरूरी है। आज के दिन हम प्रकृति के अति निकट होते हैं। नदी, पहाड़, जंगल और पेड़ों के साथ हम पूरा दिन बिताते हैं । दोपहर होने तक समस्त सुंदरसाथ रमणीक कौआ सेहा देखते हुए चौपड़ा मंदिर पहुँच जाते हैं। यह वही पवित्र स्थान है जहाँ सर्वप्रथम महाराज छत्रसाल श्री बाईजू राज सहित अपने सद्गुरु श्री प्राणनाथ जी को लेकर आये थे और उनके चरणों पर अपना सर्वस्व निछावर किया था।
एही टीका एही पांवड़ोए एही निछावरि आए ।
श्री प्राणनाथ के चरण परए छत्ता बलि बलि जाए ।।

लोकपाल सागर के सामने का पर्वत पार कर शाम तक लोग खेजड़ा मंदिर पहुँच जाते हैं। यह वही पवित्र स्थान है, जहाँ विजयादशमी के दिन महाप्रभु श्री प्राणनाथ जी ने छत्रसाल का राज्याभिषेक कर उन्हें महाराज घोषित किया और हीरे का वरदान प्रदान कर धर्मरक्षा की शपथ दिलाई थी। इसी मंदिर में मंदिर प्रशासन की ओर से हलवे का प्रसाद वितरित किया जाता है।
रात्रिकालीन परिक्रमा का प्रारंभ
यहाँ से रात्रिकालीन परिक्रमा शुरू होती है। गाजे बाजे के साथ लोग यहाँ से आगे की परिक्रमा पूरी करने के लिए आगे बढ़ते हैं। हजारों की संख्या में लोग इस परिक्रमा में भाग लेते हैं। विभिन्न भजन मंडलियाँ अपनी मस्ती में झूमती गाती इस परिक्रमा के आनंद को कई गुना बढ़ा देती हैं। इस पूरे परिक्रमा अनुष्ठान में विभिन्न भजन मंडलियाँ, सातों बार के परिक्रमा गीत एवं नवरंग स्वामी, स्वामी मुकुंददास, ज्ञानदास एवं जीवन मस्तान की रचनाएँ गाते अपने यात्रा-पथ पर बढ़ती जाती हैं। रात्रिकालीन परिक्रमा का अलग आनंद है । जगह-जगह मशालें जलाकर रोशनी की जाती है । अद्र्धरात्रि के बाद परिक्रमा पूर्ण करके पुन: वही किलकिला नदी के तट से सभी सुंदरसाथ पद्मावतीपुरी में प्रवेश करते हैं। यहाँ महारानी जी के मंदिर में परिक्रमा करते हुए फिर ब्रह्म चबूतरे के बाह्य क्षेत्र का परिक्रमा पूर्ण किया जाता है । तत्पश्चात गुम्मट एवं बंगला का परिक्रमा पूर्ण करके गुम्मट जी की देहरी पर माथा टेकते हुए पृथ्वी परिक्रमा का अनुष्ठान संपन्न होता है।
मंदिरों, तालाबों और हीरों की नगरी कहलाती है
इस प्रकार पूरी पन्ना नगरी जो कि मंदिरों, तालाबों और हीरों की नगरी कहलाती है साथ ही साक्षात धामधनी की लीला भूमि होने के कारण परमधाम के सदृश है । इसकी परिक्रमा करके परमधाम की परिक्रमा करने का पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। प्रणामी धर्म में इस परिक्रमा का बहुत महत्व है। इस दिन पूर्णब्रह्म परमात्मा की परिक्रमा करके हम उन्हें अपने हृदय में बसाने का संकल्प लेते हैं। आज के दिन इस परिक्रमा के माध्यम से हम परमात्मा की निकटता अनुभव करते हैं।

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