देशधर्म/ज्योतिष

निजानंद सम्प्रदाय : धन तेरस, दीपावली एवं अन्नकूट का 400 साल पुराना इतिहास

विश्व को सद्भावना का संदेश देता एक सम्प्रदाय

Realindianews.com
विश्व में हिन्दु धर्म के प्रमुख त्योहारों में एक दीपावली त्योहार अपना अलग स्थान रखता है। विश्व को आज से 400 वर्ष पूर्व निजानंद सम्प्रदाय के महामति प्रभु प्राणनाथ जी नें सर्वधर्म को जोडऩे का अमृत संदेश दिया था। इसी का एक सुन्दर स्वरूप मध्य प्रदेश में स्थित पद्मावती पुरी धाम पन्ना में स्थित प्राणनाथ जी मंदिर में धन तेरस, दीपोत्सव एवं अन्नकूट में देकने को मिलता है।निजानंद सम्प्रदाय के वयोवृद्ध लेखक पं. ब्रजवासी लाल दुबे जी नें अपनी पुस्तक इन विध साथजी जागिये में निजानंद सम्प्रदाय के प्रमुख त्योहारों को सरल शब्दावली के माध्यम से बताया है।


धन तेरस से प्रारंभ होती है दीपोत्सव की मंगल बेला
कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। यों कहें कि धनतेरस से दीपावली की मंगल बेला प्रारंभ होती है। जीवन में सबसे बड़ा धन है, हमारा स्वास्थ्य। शरीर स्वस्थ है, निरोग है तो धर्म के मार्ग पर चलने के लिए आपकी तैयारी उत्तम है। परमात्मा को पाने के लिए मानव शरीर ही उत्तम साधन है इसलिए दीपावली के मांगलिक पर्व हिन्दू संस्कृति में उत्तम स्वास्थ्य की कामना के साथ शुरु होते हैं। आज के दिन आयुर्वेदाचार्य धन्वन्तरि का जन्मदिवस है, वे आयुर्वेद के रूप में निरोगी काया का शास्त्र हमें प्रदान करते हैं, इसलिए आज उनका विशेष स्मरण किया जाता है। हिन्दू समाज में मान्यता है कि आज के दिन पवित्र जलाशयों में रात्रि के प्रथम पहर में दीपदान करने से परिवार में कभी कोई अकाल मृत्यु नहीं होती। इस प्रकार उत्तम स्वास्थ्य और अकाल मृत्यु पर विजय के साथ ही धनतेरस पर्व की शुरूआत होती है। तत्पश्चात भंडार गृह की पूजा के साथ आज के दिन नये बर्तन खरीदने का विधान है।


प्रणामी धर्म में जीवन के सारे सूत्र अपने प्रीतम श्री प्राणनाथ प्यारे से जुड़े हैं
प्रणामी धर्म में जीवन के सारे सूत्र अपने प्रीतम, वाला जी अर्थात श्री प्राणनाथ प्यारे से जुड़े हैं। वे ही हमें उत्तम स्वास्थ्य देते हैं। अकाल मृत्यु से बचाते हैं और धन-धान्य से परिपूर्ण करते हैं। इसलिए हम अपने धामधनी के स्मरण के साथ धनतेरस पर्व मनाते हैं। सर्वप्रथम मंदिर में फि र भंडारगृह में श्री राजी का पूजन होता है, जिसमें यह कामना की जाती है कि मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था हमेशा सुचारु रूप से चलती रहे, इसमें किसी प्रकार की कोई कमी न आये। सुंदरसाथ अपने परिवार में उपयोग के लिए नये बर्तन या अन्य जरूरी चीजें आज के दिन खरीदकर लाते हैं। फि र सभी मंदिरों में और गुम्मट जी के पीछे कड़ा के पास दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।


विशेष स्वर्णमयी पोशाक श्री राजजी की सेवा में आती है
रात्रि भोग के बाद लगभग नौ बजे से गुम्मट जी के सामने वाले प्रांगण में दीवारी गीत गाने के लिए लोग इक होते हैं। धन तेरस के दिन श्री परमहंस जी महाराज द्वारा समर्पित की गई विशेष स्वर्णमयी पोशाक श्री राजजी की सेवा में आती है। आज के दिन गाए जाने वाले कुछ प्रमुख गीत इस प्रकार हैं- पधारो जी कूंकाने पगले…, आज मारें दीवाली रे…, आज मारे आनंद आंक बढ्या… इत्यादि । कार्यक्रम के प्रथम चरण में गुम्मट जी के सामने बैठकर कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं। अंतिम चरण में बंगला दरबार में बैठकर गायन चलता रहता है एवं शयन आरती के पश्चात कार्यक्रम समाप्त होता है ।


दीपावली : यह पर्व दया और धरम का दीपक जलाने का दिन
दीपावली के साथ कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। सर्वप्रथम इस पर्व का प्रारंभ ऋतु परिवर्तन का सूचक है, इसलिए इस दिन अपने अपने घरों में अच्छी तरह साफ -सफाई करके घरों की लिपाई पुताई करनी चाहिए। दूसरी प्रमुख बात जो इस पर्व से जुड़ी है अंधेरे से प्रकाश की ओर यात्रा। एक नन्हा दीपक जिस प्रकार अमावस्या की काली रात पर विजय प्राप्त करता है, उसी दीपक के समान हमें प्रकाशित होकर माया-मोह की अंधेरी रात पर विजय प्राप्त करना है। बुंदेलखण्ड के प्रसिद्ध लोककवि ईश्वरी ने एक बहुत बढयि़ा चौकडि़य़ा लिखी है। दीपक दया धरम को बारोए सदा रहत उजियारो…। आज का यह पर्व दया और धरम का दीपक जलाने का दिन है घर से महिलाएं नव श्रृंगार करके थाल में दीपक लिए चारों मंदिरों में दीपक पहुँचती हैं।


उमड़ी तुमड़ी लिए बच्चों की निकलती है टोली, मिलता है आशीर्वाद
घर परिवार में छोटे बच्चे अपने हाथ में सूखी लौकी को काटकर बनाई गई उमड़ी तुमड़ी लिये जिसके मध्य में दीपक रखक मोमबत्ती जलाकर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेने घर-घर पहुँचते हैं। बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद के साथ कुछ न कुछ उपहार भी प्रदान करते हैं। प्रणामी धर्म में श्री बाईजूराज अर्थात श्यामाजी ही साक्षात लक्ष्मी हैं, इसलिए मंदिर में पहुँचकर हम उनकी पूजा अर्चना करते हुए आज धन-धान्य की विनती करते हैं।


चारो मंदिर में जलेबी का भोग चढ़ाने की परंपरा
आज के दिन चारों मंदिरों में जलेबी का भोग चढ़ाने की परंपरा आज के दिन विशेष आरती सांभल सैयर मारी बात होती है। समय से भण्डार गृह में पूजन होता है । तत्पश्चात रात्रि नौ बजे से गुमंट जी प्रांगण में दीवारी गीत गाने के लिए सुंदरसाथ एकत्रित होते हैं। मजलिस के पूर्व तक गुम्मट जी में तत्पश्चात बंगला जी दरबार में दीवारी गीत गायन अर्धरात्रि तक चलता रहता है। आज के दिन गाये जाने वाले विशेष दीवारी गीत इस प्रकार हैं -आज मारे दीवाली अजवाली…, मारे आनंदनी महली…, आज मारे आनंद दीप…, आज मारे आनंद अनि…, पधारो जी कूंकाने पगले…आदि ।


अन्नकूट : श्री कृष्ण ने अन्न की महत्ता प्रतिपादित की थी
दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट का महोत्सव मनाया जाता है । यह पर्व अन्न की महत्ता प्रतिपादित करता है। कभी ब्रज में इंद्र की पूजा होती थी, जिसमें इंद्र को प्रसन्न करने के लिए मूक पशुओं की बलि दी जाती थी। समय-समय पर यज्ञ आदि के आयोजनों में पशु-बलि की प्रथा थी। सबसे पहले श्री कृष्ण ने पशु-बलि का विरोध किया और अन्न की महत्ता प्रतिपादित की। फि र उन्होंने देवराज इंद्र की पूजा बंद कराके गिरिराज गोवर्धन की पूजा का विधान ब्रज वासियों को समझाया। यह पूजा विशुद्ध अन्न से की जाती है। श्री कृष्ण ने लोक जीवन में नदी, पर्वत, वृक्ष और गोधन को इन्द्र से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया। इंद्र ने कुपित होकर ब्रज में अपार वर्षा की परंतु श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर उसकी छत्रछाया में सबकी रक्षा की और इंद्र का अभिमान दूर किया। अन्नकूट का त्यौहार ब्रज की इसी लीला का स्मरण है। इसमें विभिन्न पकार के पकवान बनाकर 56 प्रकार के व्यंजन कहा जाता है, श्री राजजी के सामने उन पकवानों के पहाड़ बना दिए जाते हैं, फि र अन्न का पूजन होता है, तत्पश्चात श्री कृष्ण को उन पकवानों का भोग लगाया जाता है। यह इस बात का स्मरण है कि प्रकृति ने हमें कितने प्रकार के व्यंजनों का उपहार दिया हैए फि र इन्हें भूलकर मानव जाति को सामिश व्यंजनों के फेर में कभी नहीं पडऩा चाहिए । आज के दिन घर-घर से तरह-तरह के पकवान बनाकर श्रीजी की सेवा में लाए जाते हैं। श्री बंगला जी में इन्हें सजाकर श्रीजी को अर्पित किया जाता है । फिर सबको भरपूर प्रसाद वितरित किया जाता है ।
नोट: इन विध साथजी जागिये पुस्तक से सामग्री प्राप्त की है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button