विंध्य प्रदेश के एक गांव में 300 सालों से होती आ रही रावण की पूजा
मिश्रा परिवार निभा रहा परंपरा, मानते हैं अपने को दशानन का वंशज
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भोपाल। विंध्य के सतना जिले का देश एवं प्रदेश में अलग ही स्थान है। जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 कि.मी दूर कोठी कस्बे में बीते 300 वर्षों से दशहरे के दिन रावण को जलाया नहीं जाता अपितु उसकी पूजा की जाती है। इस रोचक परंपरा को निभाने के लिए कोठी कस्बे में मिश्रा परिवार है जो अपने को रावण का वंशज मानते हैं और विजयादशमी के दिन विशेष मुहूर्त में रावण की पूजा-अर्चना करते हैं। कस्बे में यह परंपरा बीते कुछ सालों से नहीं बल्कि तकरीबन 300 साल से निर्बाध निभाई जा रही है।
रावण के वंशजों का निवास
कोठी में निवासरत मिश्रा परिवार अपने आप को रावण का वंशज मानता है। विशेष अवसरों पर दशानन की पूजा करने वाले पुजारी पं. रमेश मिश्रा ने बताया कि कोठी रियासत के राजा सीता रमण सिंह जूदेव द्वारा तीन सौ साल पहले कोठियार नदी के पास वर्तमान में पुलिस थाना परिसर में रावण की प्रतिमा बनवाई गई थी। ठीक सामने ही भगवान श्रीराम का चबूतरा भी बनवाया गया था। वहां रामलीला का मंचन किया जाता था। रामलीला मंचन के दौरान विजयदशमी के दिन भगवान श्रीराम द्वारा चबूतरे से रावण पर बाण चलाया जाता था। रामलीला को देखने आसपास के 50 गांवों के लोग आते थे। श्री मिश्रा का कहना है कि उनका परिवार इस परंपरा को रावण का वंशज मान कर निभाते हैं। इसलिए दशानन की पूजा-अर्चना की जाती है।
क्या है मान्यता
बातचीत के दौरान रावण के पुजारी श्री मिश्रा ने बताया कि 300 वर्षों से चली आ रही दशानन पूजा की परंपरा कभी टूटी नहीं और वर्तमान में भी इस परंपरा को पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। तकरीबन 17 वर्ष पूर्व हुए एक वाकये को याद करते हुए पुजारी श्री ने बताया कि एक दिन देर रात उन्होंने सपना देखा कि रावण की प्रतिमा को गिराकर थाने का निर्माण किया जा रहा है। इसी सपने से उनकी नींद खुल गई। तब रमेश ने वहां जाकर देखा जहां रावण की प्रतिमा थी। उन्होंने पाया कि जेसीबी से वहां खुदाई का काम कराया जा रहा था और रावण की प्रतिमा को हटाने की कोशिश की जा रही थी। जैसे ही जेसीबी चालक ने रावण की प्रतिमा के सिर को तोडऩे की कोशिश की तभी एक मौके पर एक भयानक नाग आ गया और वहां पर हड़कंप मच गया। इस बात की सूचना पुजारी ने सतना जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मौजूदा पुलिस अधीक्षक शाजिद फरीद सापू को दी तब पुलिस कप्तान ने तुरंत मौके पर थाना भवन का कार्य रुकवा दिया। कुछ दिनों बाद थाने की इमारत रावण की प्रतिमा के पीछे बनाई गई। लेकिन रावण की प्रतिमा नहीं हटाई जा सकी और वह अब भी थाना परिसर में मौजूद है।
जय लंकेश का उद्घोष करते पहुंचते हैं
पुजारी श्री मिश्रा ने बताया कि इस स्थान पर भगवान राम के बाद रावण की भी पूजा की जाती है। रनेही हाउस बस स्टैंड से ढोल-नगाड़ों की धुन पर जय लंकेश और हर-हर महादेव उद्घोष करते हुए डेढ़ से दौ सौ लोग पुलिस थाना परिसर में स्थापित रावण की प्रतिमा के पास पहुंचते हैं। सबसे पहले रावण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। जनेऊ अर्पित की जाती है। शुद्ध देशी घी के जलाए गये दीपक से रावण की आरती की जाती है। इसके पश्चात प्रसाद चढ़ाकर श्रद्धालुओं को वितरण किया जाता है।
41 वर्ष से पूजा कर रहे है रमेश मिश्रा
पं. रमेश मिश्रा बताते हैं कि मैं दशहरे के दिन 41 साल से लगातार रावण की पूजा कर रहा हूं। मेरे दादा पं. श्यामराम मिश्रा राजदरबार के पुजारी थे। वे भी हर साल रावण की पूजा करते थे। पूर्वजों का कहना था कि रावण गौतम ऋ षि के नाती और विश्वश्रवा के पुत्र थे। हमारा कुल गोत्र भी गौतम है। हम रावण के वंशज हैं। रावण महादेव के अनन्य भक्त, विद्वान, त्रिकालदर्शी थे। रावण ने ही भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी। इस वजह से हमारी पीढिय़ंा रावण की पूजा करती आ रही हैं।
रावण और रमेश का गोत्र एक
रमेश मिश्रा के मुताबिक, हम लोग गौतम ऋ षि के शिष्य माने जाते हैं और गौतम हमारा गोत्र है। रावण भी गौतम गोत्र से हैं, इसी वजह से हम लोग रावण के वंशज के रूप में उनकी पूजा करते चले आ रहे हैं। पहले रमेश मिश्रा के बब्बा श्यामराज मिश्रा राजगुरु हुआ करते थे। रावण सबसे बड़े ज्ञानी थे, जिन्होंने ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया था। उन्हें वेद-पुराण का ज्ञान था। उन्हीं के लिए भगवान राम ने अवतार लिया और रावण का कुल समेत उद्धार किया। रावण में अहंकार तो था, लेकिन उनकी भक्ति, तप और ज्ञान पूजने लायक है। इसीलिए उनका परिवार पीढिय़ों से दशानन की पूजा करता आ रहा है।