70 के दशक का रेडियो लाइसेंस और आज की 5 जी तकनीक
भारतीय डाक-तार विभाग से जारी होता था वार्षिक रेडियो लाइसेंस -एक समय था जब 15 से 50 वार्षिक भुगतान पर सुन सकते थे रेडियो
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भोपाल। यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक समय रेडियो सुनने के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता था। वो भी अग्रिम राशि के रूप में 15 से 50 रुपए का वार्षिक भुगतान करने पर। इसके लिए बकायदा भारतीय डाक-तार विभाग की ओर से रेडियो लाइसेंस (डायरी) जारी किया जाता था। मजे की बात यह है कि लाइसेंस पर बकायदा इसका भी जिक्र रहता था के उपयोग कहा किया जाएगा। घर पर होने उपयोग होने पर लाइसेंस पर रेसीडेंस दर्ज किया जाता था। रेडियो लाइसेंस यह अपने आप में एक रोचक विषय बन जाता है। बुजुर्गों से सुना भी होगा कि हम रेडियो तब सुन पाते थे जब हम उसके लिए लाइसेंस ले लेते थे। संभवत: रेडियो लाइसेंस देखा किसी ने नहीं होगा।
डाक-तार विभाग जारी करता था रेडियो लाइसेंस
एक समय था रेडियो लाइसेंस को भारतीय डाक-तार विभाग जारी करता था। मजे की बात यह है कि इस लाइसेंसी डायरी में रेडियो का चेचिस नंबर तक दर्ज रहता था। जानकार बताते हैं कि ऐसा इसलिए होता था कि कहीं एक लाइसेंस पर दो रेडियो का तो नहीं उपयोग किया जा रहा। इतना ही नहीं रेडियो का उपयोग कहां हो रहा है (घर/दफ्तर इत्यादि) इसका भी किया जाता था। भारतीय तार अधिनियनिम, 1885 के अंतर्गत लाइसेंस जारी किया जाता था। जारी करने की तारीख और अंत में डाकपाल के हस्ताक्षर रहते थे।
रेडियो लाइसेंस शुल्क के तहत डाक टिकिट होती थी जारी
रेडियो लाइसेंस के लिए राशि नहीं ली जाती थी। उस दौरान रेडियो लाइसेंस शुल्क के तहत डाक टिकट जारी किए जाते थे। अलग-अलग समयावधि के लिए अलग-अलग राशि के टिकट जारी किए जाते थे। टिकट रेडियो लाइसेंस पर चस्पा किया जाता था।
लाइसेंस के अंतिम पृष्ठ पर होता था कफ सिरप का विज्ञापन
लाइसेंस के अंतिम पृष्ट पर कफ सिरप का एक विज्ञापन भी अंकित रहता था। कबाड़ में मिले वर्ष 1967 में जारी किए गए रेडियो लाइसेंस में डाक विभाग के अधिकारी के अंग्रेजी में हेंडराइटिंग भी काफी सुंदर है। रेडियो लाइसेंस की बात करना यह प्रमाणित करता है कि पिछले 6-7 दशक में देश ने काफी तरक्की कर ली है। कहां 70 के दशक का रेडियो लाइसेंस और कहां आज की 5 जी तकनीक।
15 से 50 रुपए लगता था वार्षिक शुल्क
60 से 70 के दशक में रेडियो पर संगीत सुनने के लिए भी लाइसेंस की आवश्यकता होती थी। 15 रुपए से लेकर 50 रुपए तक वार्षिक शुल्क देने पर ही आप रेडियो पर संगीत सुन सकते थे। यह लाइसेंस भारतीय डाक-तार विभाग की ओर से जारी किए जाते थे।
रेडियो लाइसेंस पोस्ट ऑफिस से बनता था-सुधीर जैन
सेंट्रल इण्डिया फिलाटेलिक सोसायटी के अध्यक्ष सुधीर जैन ने बताया कि रेडियो लाइसेंस पोस्ट ऑफिस द्वारा जारी किए जाते थे और वहीं उनका वार्षिक नवीनीकरण होता था। रेडियो लाइसेंस एक छोटी पुस्तक के रूप में होता था और नवीनीकरण के समय उस पर उचित मूल्य की विशेष लाइसेंस रिनुअल की टिकट चिपकाई जाती थी।
जिस प्रकार पुराने रेडियो अभी भी संभाल कर रखना संग्रहकर्ताओं के लिए विशेष रुचि का विषय है उसी प्रकार रेडियो एवं टेलीविजन लाइसेंस की पुरानी किताबें भी संग्रहकर्ता बड़ी रुचि के साथ अपने संग्रह में रखते हैं। मेरे पास भी स्वयं के नाम का रेडियो लाइसेंस अभी भी संग्रहित है।
रेडियों लेने के साथ ही उसका लाइसेंस लेना पड़ता था- हरि प्रकाश गौस्वामी
समाजसेवी हरि प्रकाश गौस्वामी ने बताया कि भारत में रेडियो प्रसारण की सेवाएं सन् 1928 में प्रारंभ हुई थी। उस समय इसके लिए एक लाइसेंस लेना होता था। सन् 1960 में इसकी फीस 10 रुपए प्रति वर्ष थी जो सन् 1970 में बढ़ाकर 15 रुपए प्रति वर्ष कर दी गई थी। यह बाद में समय-समय पर बढ़ती रही। कालान्तर में रेडियो लाइसेंस को रेडियो/टेलीविजन लाइसेंस के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था।