RIN । पैसा सबकुछ नहीं है, लेकिन बहुत कुछ जरूर है। इस लिहाज से बचत की अहमियत बढ़ जाती है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से खर्च और बचत को लेकर हमारी आदतें बदल गई हैं। अब हम खर्च पहले करते हैं और बचत बाद में। यह ईएमआई कल्चर तनाव पैदा करता है। बच्चों में इसकी समझ होनी चाहिए। इसीलिए उनमें निवेश एवं बचत की आदत डालने की जरूरत है। दिक्कत यह है कि इसका कोई सेट फ ॉर्मूला नहीं है। कुछ रिसर्च रिपोट्र्स के मुताबिक इन चीजों का व्यावहारिक ज्ञान ज्यादा कारगर होता है।
जब भी सुपर मार्केट या अन्य स्टोर पर बिल जमा करेंए बच्चों रसीद दिखाएं। उन्हें बताएं कि इन चीजों के लिए कितने पैसे खर्च करने पड़े। यदि कार्ड से पेमेंट किया तो उन्हें बताएं कि वह डेबिट कार्ड है या फिर क्रेडिट कार्ड। यह भी बताएं कि क्रेडिट कार्ड से किया गया खर्च लोन होता हैए जिसे बिल के रूप में बैंक को लौटाना होता है। इसके उलट डेबिट कार्ड बचत का पैसा होता है।
बच्चे को उसके कमरे की सफ ाई या खिलौनों को व्यवस्थित करने का जिम्मा दें और यह काम सही तरीके से निपटाने के लिए बतौर ईनाम उन्हें पॉइंट्स दें। बाद में इन पॉइंट्स को पैसे से बदला जा सकता है, जैसा क्रेडिट कार्ड में होता है। इससे उनमें कमाई और बचत के सिद्धांत की हल्की समझ पैदा होगी। यह समझ धीरे-धीरे मजबूत होती जाएगी। बच्चे को पिग्गी बैंक या गुल्लक दें। इसमें पैसा जमा होने पर उसे बताएं कि यह उसका बचाया हुआ पैसा है। धीरे-धीरे कुछ हफ्तों के बाद उन्हें गुल्लक के मुकाबले बैंक में की गई बचत के बारे में बताना शुरू करें। बाद में उनका सेविंग अकाउंट खुलवाएं। बच्चे की पॉकेट मनी से किए जा रहे खर्च पर नजर रखें। यह भी देखें कि इसका कुछ हिस्सा गुल्लक में भी जा रहा है या सारा पैसा चॉकलेट जैसी चीजों पर खर्च हो रहा है। फिर बच्चे से उसकी बचत के बारे में चर्चा करें। आजकल स्टूडेंट कार्ड का भी विकल्प मौजूद हैए जिन पर माता.पिता का नियंत्रण होता है। ऐसे कार्ड से बच्चों में खर्च नियंत्रित रखने की आदत विकसित की जा सकती है।
अपने बच्चे को प्राथमिकता तय करना सिखाएं। बच्चों में यह समझ जरूरी है कि जरूरी खरीद और गैर.जरूरी खरीद क्या हैं। उनसे फिजूलखर्ची के बुरे प्रभाव के बारे में बात करें। साथ बैठकर इनकी विश-लिस्ट की कुछ बेहद जरूरी चीजों के बारे में चर्चा करें और उन्हें बताएं कि महत्वाकांक्षी खर्चे, मसलन वीडियो गेम्स, स्केट्स आदि क्या हैं।