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Rajasthan: कर्मचारियों की एक मिनट देरी बर्दाश्त नहीं

जयपुर.

राजस्थान में सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों के अनुशासन को लेकर सरकार जो कदम उठा रही है, उसकी तारीफ हो रही है, लेकिन राज्य के वित्तीय अनुशासन बिगाड़ने वाले अफसरों पर कार्रवाई कब होगी? राजस्थान के सरकारी कर्मचारी अब पलटकर सरकार से यह सवाल पूछ रहे हैं। वेतन, पेंशन, एरियर, टीए-डीए, जीपीएफ, सरेंडर लीव से लेकर तमाम भुगतानों के लिए महीनों से कर्मचारी और पेंशनर भटक रहे हैं। करीब चार हजार करोड़ रुपये अटके हैं, जिनमें दो हजार करोड़ रुपये पेंशनर्स के और दो हजार करोड़ रुपये कर्मचारियों के अलग-अलग मदों में बकाया है।

कुछ कर्मचारी सरकार के खिलाफ कोर्ट पहुंच गए हैं। कुछ जाने की तैयारी में हैं। जनता को राहत मिले इसलिए नई सरकार ने सख्त हिदायत दी है कि तीन दिन में कर्मचारी की टेबल से फाइल का डिस्पोजल नहीं हुआ तो कार्यवाही होगी। दूसरी तरफ, चंद रसूखदार अफसर अपनी मर्जी से महीनों तक भुगतान रोककर बैठ जाते हैं। पिक एंड चूज के आधार पर भुगतान कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या उनके लिए भी यही नियम लागू होते हैं? कर्मचारी वर्ग कह रहा है कि उनकी जिम्मेदारियों की बात तो सब कर रहे हैं, लेकिन पूरी सरकारी मशीनरी को चलाने वाले इस वर्ग की अपनी चिंताएं भी हैं। नौ लाख कर्मचारी और पांच लाख पेंशनर्स की नजरें अब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर हैं कि क्या वे उन्हें न्याय दिला सकेंगे? क्या मुख्य सचिव सुधांश पंत दफ्तर देरी से पहुंचने वालों के साथ पेंशनर्स और कर्मचारियों का भुगतान अटकाने वाले अफसरों की भी क्लास लेंगे।

4000 करोड़ रुपये बकाया, टैक्स स्लैब बदलने की चिंता
राजस्थान समेत तमाम राज्यों में सरकारी कर्मचारियों का आयकर फरवरी तक वेतन के आधार पर जमा होता है। इस बार गणित गड़बड़ा गया है। बहुत से कर्मचारियों को वेतन के अलावा अन्य बेनिफिट के 2000 करोड़ रुपये का भुगतान वित्त विभाग ने रोक रखा है। इस साल की यह राशि यदि अगले वित्त वर्ष में कर्मचारियों के खातों में जाती है तो उनका टैक्स स्लैब बदल जाएगा और अधिक कर भुगतान करना पड़ सकता है। ऐसे ही पेंशनर्स बेनीफिट के 2000 करोड़ रुपये भी सरकार पर बकाया है। कई कर्मचारी RGHS के लिए हर महीने वेतन कटौती करवा रहे हैं, लेकिन उन्हें इलाज नहीं मिल रहा है। उन्हें निजी अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।

पेंशन भुगतान अटकने से ब्याज का नुकसान
सरकार में हजारों पेंशनर्स का पेंशन भुगतान महीनों से लंबित हैं। सरकार में यह आदेश हैं कि पेंशनर को रिटायरमेँट के दिन ही चैक से सारे भुगतान होंगे। देरी होने पर ब्याज की जिम्मेदारी सरकार की होगी। एक पेंशनर को पेंशन बेनिफिट के तौर पर 50 से 70 लाख रुपए का भुगतान होता है। कुछ महीनों की देरी से लाखों रुपये के ब्याज का नुकसान है। कुछ पेंशनर देरी से भुगतान के खिलाफ कोर्ट जा चुके हैं। कुछ जाने की तैयारी में हैं। ऐसे में देरी से भुगतान के लिए देय ब्याज की जिम्मेदारी जनता के टैक्स के पैसे से तैयार खजाने पर आनी तय है। क्या सरकार इसके लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई करेगी।

जीपीएफ भुगतान छह महीने से पेंडिंग
कर्मचारी वर्ग अपना पेट काटकर कई वर्षों तक जीपीएफ में पैसा जमा करवाता है। आस रहती है कि बच्चों की शादी, घर के मांगलिक कार्यक्रम, मेडिकल इमरजेंसी या पढ़ाई की जरूरत में बिना ब्याज के यह पैसा मिल जाएगा। अफसरों ने यह पैसा भी कर्मचारियों को नहीं दिया। इसके चलते बहुत से कर्मचारियों को बाजार से कर्ज लेकर काम निपटाने पड़े जबकि उनका खुद का पैसा सरकार के पास जमा था।

भुगतान रोकने वालों पर कार्रवाई हो
राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना ने कहा कि सरकार जो कदम उठा रही है, उसकी हम सराहना करते हैं लेकिन जिन अफसरों ने कर्मचारी और पेंशनर्स बेनिफिट, मेडिबल बिल सहित तमाम भुगतान रोके हैं, उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। दफ्तरों में सिस्टम ऑनलाइन कर दिया है लेकिन न कंप्यूटर है और न ही स्कैनर। सचिवालय में ऑफलाइन फाइल ही नहीं लेते।

एकतरफा अनुशासन नहीं बन सकता
राजस्थान सचिवालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सीताराम चौधरी ने कहा कि आरजीएचएस को अघोषित रूप से बंद कर रखा है। एरियर, लीव एनकैशमेंट तीन-तीन महीने से अटका है। सबसे ज्यादा समस्या ECS की है। बिल क्लीयर हो जाते हैं लेकिन ईसीएस नहीं होते क्योंकि वित्त विभाग में एक व्यक्ति ने ही सारी भुगतान प्रणाली को नियंत्रित कर रखा है। सरकार को इस पर भी कार्यवाही करनी चाहिए।

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