स्वस्थ-जगत

चुपचाप बढ़ती आंखों की समस्या: इस ना कोई लक्षण, ना कोई इलाज की बीमारी का सामना

ग्लूकोमा दरअसल आंख से जुड़ी ऐसी समस्या है जिसमें आंख की ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचने पर आंख की रोशनी कम होने लगती है। ये ऑप्टिक नर्व हमारे ब्रेन को किसी सीन से जुड़ी सारी सूचना भेजती है जबकि इसी के जरिए हम किसी चीज को पहचानने का काम कर पाते हैं। ऐसे में अगर कुछ वजहों से ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़े और वो कमजोर हो जाए तो चीजें पहचानने की क्षमता कमजोर हो जाती है और रोशनी कम होने लगती है।

शार्प साइट आई हॉस्पिटल्स में वरिष्ठ ग्लूकोमा चिकित्सक डॉ. विनीत सहगल बताते हैं कि ग्लूकोमा बीमारी में नजर जाने के बाद वापस नहीं आती। इसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, केवल कंट्रोल किया जा सकता है। आंख का प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ने से आंख की नस कमजोर हो जाती है, तो फिर नजर धीरे-धीरे खत्म हो जाती है।

आंख की नस एक तार के समान होती है जो आंख को दिमाग से जोड़ती है। जब हमारी आंख कैमरे की तरह किसी भी चित्र को देखती है, तो यह चित्र इस नस के जरिए हमारे दिमाग तक पहुंच जाते हैं और तभी हम देख पाते हैं। इसमें कोई लक्षण नहीं होते हैं। बस समय- समय पर आंख की जांच करवाते रहना जरूरी है।

नजर का साइलेंट किलर

पारस हॉस्पिटल में हेड- ओप्थाल्मोलोजी डॉ. ऋषि भारद्वाज कहते हैं कि ग्लूकोमा को काला मोतिया के रूप में जाना जाता है। इसे 'साइलेंट थीफ ऑफ विजन' का नाम भी दिया गया है। क्योंकि ग्लूकोमा बिना किसी खतरनाक लक्षण के दृष्टि को नुकसान पहुंचाता है और अंधापन होने के लिए जिम्मेदार होता है। आप ग्लूकोमा से पीड़ित हैं या नहीं, इसका पता लगाने के लिए डायलेटेड रेटिना की जांच, आंखों का प्रेशर अन्य स्कैन और टेस्ट करवाने पड़ते हैं।

बच्चों को भी हो सकती है यह बीमारी

डॉ. विनीत सहगल कहते हैं कि आंखों से जुड़ा यह रोग बच्चों में जन्मजात या फिर बाद में भी हो सकता है। उनमें आंख का साइज बड़ा हो जाना, पानी निकलना, तेज रोशनी से घबराना, अंधेरे कमरे में ज्यादा बैठना, आंख की पुतली में सफेद दाग आना जैसे कुछ खास लक्षण होते हैं।

बड़े लोगों में ग्लूकोमा के प्रकार

बड़े लोगों में आमतौर पर ग्लूकोमा 40-45 साल की उम्र में दिखाई देता है। उनमें ग्लूकोमा दो तरह से हो सकता है- ओपन एंगल ग्लूकोमा जिसमें पानी का रास्ता बना रहता है। वहीं क्लोज एंगल में पानी का रास्ता सिकुड़ जाता है। ओपन एंगल ग्लूकोमा में आंख में प्रेशर बढ़ता जाता है और नस को नुकसान होता है। इसलिए इससे ग्रस्त मरीजों को बाद में ब्लाइंडनेस की समस्या आती है। क्लोज एंगल वालों की रोशनी को समय पर बचा सकते हैं।

किन लोगों को ज्यादा खतरा?

अगर परिवार में ग्लूकोमा की हिस्ट्री है या जो डायबिटीज, ओबेसिटी, मायोपिया, हाई ब्लड प्रेशर या हार्ट के मरीज हैं, तो उन्हें ग्लूकोमा जल्दी होने का खतरा रहता है। अगर किसी ऑटो इम्यून बीमारी के लिए लंबे समय तक स्टेरॉयड का सेवन करते आए हैं या किसी एलर्जी के लिए स्टेरॉयड वाली दवाई आंखों में डालते हैं, तो उससे भी आंखों का प्रेशर बढ़ सकता है जो ग्लूकोमा का जोखिम बढ़ देता है।

आपकी आंख की कोई सर्जरी हुई है या कभी आंख में कोई चोट लगी है, तो भी ग्लूकोमा होने के चांस बढ़ जाते हैं। समस्या की पहचान के लिए विजुअल फील्ड टेस्ट किया जाता है, जिसे पेरीमेट्री भी कहते हैं। साल में एक बार ये टेस्ट जरूर कराएं।

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