मध्यप्रदेश

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित पांच शहरों में अब कचरे से बिजली बनाई जाएगी, जबलपुर-रीवा हो रहा उत्पादन

भोपाल
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित पांच शहरों में अब कचरे से बिजली बनाई जाएगी। दरअसल, जबलपुर और रीवा नगर निगम में कचरे से बिजली बनाने के बाद अब भोपाल, ग्वालियर, रतलाम, इंदौर, उज्जैन व सागर नगर निगम भी पावर संयंत्र लगाने की तैयारी कर रहा है। ये सभी शहर प्रतिदिन छह मेगावाट से लेकर 12 मेगावाट तक बिजली उत्पादन करने के लिए संयंत्र स्थापित करने की तैयारी कर रहे हैं, जिसके लिए अभी डीपीआर बन रही है। संयंत्रों में 50 माइक्रोन या उससे कम की पालीथिन व सूखे कचरे से बिजली तैयार होगी। बता दें कि भोपाल के आदमपुर छावनी में योजना बनाई थी, लेकिन 2016 में कंपनी का अनुबंध खत्म होने से प्रक्रिया ठप हो गई थी।

जबलपुर और रीवा में बनाई जा रही बिजली
मध्यप्रदेश के जबलपुर में सूखे कचरे से 11 और रीवा में छह मेगावाट बिजली बनाई जा रही है। जबलपुर नगर निगम ने महाराष्ट्र, गुजरात और रीवा ने प्रयागराज, उत्तरप्रदेश से भी कचरा लेने का अनुबंध किया है। प्रदेश में 408 नगरीय निकाय हैं। सभी निकायों से लाखों टन सूखा कचरा निकल रहा है। 90 प्रतिशत निकाय सीमेंट उद्योगों को अपना कचरा दे रहे हैं। इसमें 50 माइक्रान की पालीथिन सीमेंट उद्योगों को दिया जाता है, इससे अधिक माइक्रान की प्लास्टिक कचरे को उद्योगों को री-यूज के लिए बेच दिया जाता है।

ऐसे बनती है कचरे से बिजली
कचरे से बिजली दो तरह से बनाई जाती है। इनमें पहला अपशिष्ट को जलाया जाता है, जिससे गर्मी निकलती है। यह गर्मी बायलर में पानी को भाप में बदल देती है। उच्च दबाव वाली भाप टर्बाइन जनरेटर के ब्लेड को घुमाकर बिजली पैदा करती है।दूसरी प्रक्रिया में ज्वलनशील कचरे को प्रोजेक्ट में लगे भट्टे में जलने के लिए डाला जाता है, जहां कचरे के जलने से उत्पन्न ऊष्मा से उस भट्टे से जुड़ी सोलर प्लेट गर्म होती है और बिजली आपूर्ति शुरू हो जाती है।

एक वर्ष में इतना प्लास्टिक वेस्ट
मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में एक वर्ष में 1 लाख 38 हजार 483 टन प्लास्टिक वेस्ट निकला है। इंदौर में 60 हजार और भोपाल में 25 हजार 288 टन वेस्ट निकलता है।

जबलपुर में लगा था पहला प्लांट
मध्यप्रदेश में बिजली बनाने का पहला प्लांट जबलपुर के कठौंदा में 2014 में लगा था। यह वर्ष 2016 में बनकर तैयार हुआ और 11 मई 2016 से बिजली बनने लगी। प्लांट की क्षमता 11.7 मेगावाट प्रतिदिन की है।

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