जहां इंदिरा गांधी ने की थी पहली चुनावी सभा वहां अब होती है रामलीला
वर्ष 1957 के दूसरे विस चुनाव में सतना के सुभाष पार्क में कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार करने आईं थीं इंदिरा गांधी
Realindianews.com
भोपाल। कभी विंध्य प्रदेश रहे विंध्य की विधानसभा सीटें अपने-आप में कई अनोखे इतिहास को समेटे हुए है। अब जब एक बार फिर मध्य प्रदेश में चुनाव का सियासी पारा परवान पर है तब उन ऐतिहासिक लम्हों की यादें नई पीढ़ी तक पहुंचाना लाजिमी हो जाता है। खासकर तब जब नई युवा पीढ़ी ने पुराने दिग्गज नेताओं के बारे में सिर्फ किताबों में पढ़ा है। चुनावी मौसम में इन अनोखे अनुभवों को साझा करना युवा पीढ़ी को कहीं न कहीं तत्कालीन चुनावों के तौर-तरीकों और वर्तमान के चुुनावी परिवर्तन से अवगत करायेगा।
बीते साठ सालों में धीरे-धीरे चुनावों का बदल गया रंग
बीते 60 सालों में चुनावी रंग बदल चुका है। विंध्य की भूमि में कई दिग्गज नेताओं ने विंध्य को प्रदेश ही नहीं अपितु देश में भी अलग पहचान दी है। सतना में द्वितीय आम चुनाव फरवरी 1957 में हुए थे। सतना विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी शिवानन्द थे। शिवानंद के समर्थन श्रीमती इंदिरा गांधी सतना के जिस सुभाष पार्क में चुनावी सभा की थी वहां अब रामलीला होने लगी है। स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी की यह सभा 21 फरवरी 1957 को हुई थी। 15 फरवरी 1957 को लालबहादुर शास्त्री ने सतना और नागौद में चुनावी सभा कर जनसमुदाय को संबोधित किया था। तब नागौद सतना विधान सभा क्षेत्र में शामिल था। जहां कांग्रेस जीत हासिल हुई थी।
वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव में ये थे राजनीतिक दल
वर्ष1952 में प्रथम आम चुनाव हुआ। इसमें समाजवादी, जनसंघ, किसान मजदूर प्रजा पार्टी, कांग्रेस और रामराज्य पार्टी ने भाग लिया। कांग्रेस से शिवानंद, समाजवादी पार्टी से डॉ. आर्यानंद, जनसंघ से राज किशोर शुक्ला, किसान मजदूर पार्टी से लाल महेन्द्र सिंह, रामराज्य पार्टी से हुन्डलदास ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेसी नेता स्व. डॉ. लालता प्रसाद खरे भी चुनावी मैदान में थे लेकिन वे स्वतंत्र उम्मीदवार थे। विधानसभा के लिये कांग्रेस के शिवानंद विधायक चुने गये। इस चुनाव में सभी पराजित प्रत्याशियों की जमानत भी जप्त हो गयी। पहले आम चुनाव के बाद का समय बैरिस्टर गुलशेर अहमद के लिये बहुत भाग्यशाली रहा। वे एक सितारे की तरह उभरे और सतना के चुनावी इतिहास में एक नई मिसाल कायम की। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि शहर के लोग उन्हें पंडित गुलशेर अहमद के नाम से बुलाते थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी 1952 को सतना आए थे
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी अछूता नहीं रहा शहर। स्व. जवाहर लाल नेहरू 1952 को सतना आए थे यह उनका विंध्य में पहला दौरा था। 6 जनवरी 1952 को स्थानीय हवाई पट्टी में स्व. जवाहर लाल नेहरू ने चुनावी सभा को संबोधित किया था। इस चुनाव में भी शिवानंद कांग्रेस से प्रत्याशी थे।
सेठ मौलाबख्श से पांच हजार रुपये की दिलवाई गई थैली
शिवानंद ने सेठ मौलाबक्स से पांच हजार रुपये की थैली पं. नेहरू को भेंट करा दी और इसके एवज में बैरिस्टर गुलशेर अहमद को राज्यसभा के लिये कांग्रेस का टिकिट मिल गया था। सेठ मौलाबक्स बैरिस्टर गुलशेर अहमद के चचेरे भाई और उस समय उनके अभिभावक थे। इस तरह बैरिस्टर गुलशेर अहमद का कांग्रेस की राजनीति में प्रवेश हुआ था।
दूसरे आम चुनाव में दोगुने उम्मीदवार मैदान में थे
सन् 1957 में विधानसभा के लिये जब दूसरा आम चुनाव हुआ तो पिछले आम चुनाव से दुगने 13 उम्मीदवार खड़े हो गये। इस चुनाव में रामराज्य पार्टी से पियरिया बाबा, प्रजा सोशलिस्ट से रालिया, कांग्रेस से शिवानंद, जनसंघ से हुकुमचन्द्र जैन को चुनावी जंग में उतारा गया। इसके अलावा गजेन्द्र सिंह, रामसजीवन सिंह, डॉ. लालता प्रसाद खरे, विशेषर प्रसाद, श्यामसुंदर, शिवशंकर प्रसाद सिंह, सुदामा और सरमन स्वतंत्र उम्मीदवार थे। यह चुनाव भी कांग्रेस के शिवानन्द ने सभी उम्मीदवारों की जमानत जप्त करा कर जीत लिया था।
तीसरे आम चुनाव में खुला जनसंघ का खाता
तीसरा आम चुनाव वर्ष 1962 में हुआ। इस चुनाव में जनसंघ ने दादा सुखेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था।इस चुनाव में जनसंघ ने सतना में अपना खाता खोल कर कांग्रेस को करारी मात दी। वर्तमान समय में स्थानीय जवाहर नगर मैदान में बना स्टेडियम दादा सुखेंद्र सिंह के नाम पर है। इस चुनाव में कांग्रेस से शिवाननंद, जनसंघ से सुखेन्द्र सिंह, समाजवादी पार्टी से अब्दुल खालिक बच्चा, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से सुंदरलाल जायसवाल प्रत्याशी थे। वीरेन्द्र सिंह, भारती शरण गर्ग चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार थे। उस समय डॉ. लालता प्रसाद खरे ने कांग्रेस मे प्रवेश कर लिया था।
बीड़ी किंग के दबाव में पहली महिला श्रीमती कांंता पारिख ने चुनाव लड़ा
सन् 1967 में सतना विधानसभा के चुनाव में जबलपुर के बीड़ी किंग सेठ परमानंद के दबाव पर कांग्रेस ने अपनी पार्टी से एक घरेलू महिला श्रीमती कान्ता बेन पारिख को अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया। इस समय तक उनके खाते में सार्वजनिक जीवन में कार्य अनुभव के नाम पर सतना नगर पालिका में नामजद सदस्यता ही थी। कांग्रेस का एक गुट शिवानंद की ईमानदारी से नाराज था। यह वह समय था जब राजनीति में दलाली और भ्रष्टाचार की धीरे-धीरे घुसपैठ होने लगी। इस दौर में भी शिवानंद की लोकप्रियता बरकरार थी लेकिन एक बार फिर उन्होंने पलायनवादी रास्ता चुना और अपनी दावेदारी करने की जगह हाशिये पर चले गये। श्रीमती कान्ता पारिख ने चुनाव लड़ा और जनसंघ से सीट छीन कर सुखेन्द्र सिंह को पराजित कर दिया। सन् 1972 में भी श्रीमती कान्ता पारिख जीतीं और सुखेन्द्र सिंह पराजित हुये। सन् 1977 में कांग्रेस से अरुण सिंह ने जनसंघ के हुकुमचन्द्र जैन को पराजित किया था।
भाजपा के खाते में 1990 में आई पहली जीत
190 के चुनावों में जनसंघ जो भारतीय जनता पार्टी के रूप में परिवर्तित हो चला था ने पहली बार इस क्षेत्र के चुनाव में जीत का खाता खोला। 10 के चुनावों में भाजपा ने बृजेन्द्रनाथ पाठक को खड़ा करके कांग्रेस से सतना सीट छीनी थी। यह भाजपा की पहली जीत थी। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. लालता प्रसाद खरे पराजित हुये थे। सन् 13 में भाजपा ने यह सीट अपने कब्जे में बनाये रखी। इस वर्ष भाजपा के बृजेन्द्र नाथ पाठक ने कांग्रेस के सईद अहमद को पराजित किया। लेकिन 198 के चुनाव में सईद अहमद ने सतना के मांगेराम गुप्ता को हराकर सतना सीट छीन ली। इस चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता और जनसंघ के कार्यकर्ता शंकरलाल तिवारी ने पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। सतना में पहले आम चुनाव से ही जनसंघ ने कांग्रेस को टक्कर देना शुरू कर दिया था। हमारे विंध्य के जानकार दिवंंगत वरिष्ठ पत्रकार पं. चिंतामणि मिश्र जी नें सतना के इतिहास की पुस्तक मेरी बस्ती मेरे लोग में पुरानी राजनैतिक जानकारी दी है। जिससे कुछ जानकारी ली गई है।