मध्यप्रदेश

32 एकड़ की सरकारी जमीन, शासन हार कर भी जीत गया

राजस्व इतिहास का अपने आप में अलग तरह का फैसला

Realindianews.com
भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकारी जमीन के सैकड़ो मामले आते हैं। इसी प्रकार का एक मामला सतना शहर का प्रकाश में आया है। सतना शहर के बीच स्थित 32.48 एकड़ की एक सरकारी आराजी लगभग तीन दशक की लंबी लड़ाई के बाद कुछ निबंधों के साथ निजी हो गई है। लेकिन सतना जिले के राजस्व इतिहास का यह अपने आप में अलग तरह का फैसला रहा जिसमें प्रशासन हार कर भी जीत गया। दरअसल हाईकोर्ट में चले अवमानना प्रकरण के बाद जमीन का नामांतरण खसरे में निजी पक्ष के तो हो गया। लेकिन खसरे में यह भी उल्लेखित कर दिया गया कि यह वर्तमान में प्रचलित सिविल सूट के आधीन रहेगा। सामान्य भाषा में मालिकाना हक पाने के बाद भू-स्वामी अपनी जमीन क्रय विक्रय नहीं कर सकेगा। इस प्रकार सतना शहर की लगभग 200 करोड़ की कीमती शासकीय जमीन को निजी हाथों में जाने से बचाने की राह खुल गई है।
मामला तत्कालीन समय वर्ष 2020-21 में इस 32 एकड़ जमीन का नामांतरण शासकीय से निजी करने का जुड़ा है। इस कार्यकाल में नामांतरण करने का आदेश तो हो गया था लेकिन खसरे के कालम नंबर 3 में निजी भू-स्वामित्व (सुगरा बेगम व अन्य) दर्ज नहीं हो सका। इसके विरुद्ध निजी पक्ष हाईकोर्ट में चला गया। हाईकोर्ट ने कलेक्टर के नामांतरण आदेश का पालन करने का आदेश दिया। लेकिन जिला प्रशासन ने इस दौरान तक जमीन का नामांतरण निजी पक्ष को नहीं किया उधर राजस्व की ओर से एक अन्य सिविल सूट जिला न्यायालय में फाईल कर दिया।
सिविल सूट में कहा गया कि सुगरा बेगम और अन्य ने कपटपूर्ण तरीके से बेशकीमती सरकारी आराजी की डिक्री अपने नाम करवा ली। अब नामांतरण करवा कर जमीन खुर्द बुर्द करने की फिराक में हैं। एक बार हाईकोर्ट में हारने के बाद लोवर कोर्ट में तथ्य छिपा कर वाद प्रस्तुत किया गया और डिक्री पास करवाने में सफल रहे। यह केस स्वीकार कर लिया गया।
इधर सुगरा बेगम व अन्य ने नामांतरण नहीं किये जाने को लेकर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका लगा दी। मामले को न्यायाधीश ने गंभीरता से लिया और कलेक्टर व तहसीलदार को व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति होने को कहा। यह भी टिप्पणी की वरिष्ठ न्यायालय जिस पर विचार कर चुके हैं उसे निम्नतर न्यायालय में कैसे लगाया गया। यह स्थिति ऐसी थी कि अब सरकारी जमीन का नामांतरण होना तय था। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश पहले से था। अब अवमानना में भी न्यायाधीश का आदेश स्पष्ट था। इसके बाद तय तिथि 10 जुलाई को कलेक्टर अनुराग वर्मा न्यायाधीश के सामने पेश हुए और उनके साथ बचाव में अतिरिक्त एडवोकेट जनरल हरिप्रीत रूपरा खड़े हुए। लंबी बहस चली। निजी पक्ष इस पर अड़ा था कि उच्च न्यायालय सिविल सूट को खत्म करने आदेश दे। लेकिन रूपरा और कलेक्टर इसे साबित करने में सफल रहे। नतीजा न्यायालय ने आदेशित किया कि नामांतरण कर दिया जाए जो सिविल सूट के आधीन होगा।
इस प्रकार आवेदक के नाम नामांतरण हो गया लेकिन प्रतिबंध जारी इस भूमि पर खरीदी बिक्री या निर्माण का मालिकाना हक नहीं होगा। इसके बाद कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार ने खसरे में नामांतरण करते हुए मध्य प्रदेश शासन का नाम हटाते हुए सुगरा बेगम व अन्य का नाम चढ़ा दिया। लेकिन आदेश में यह भी स्पष्ट लिखा गया कि यह नामांतरण सिविल सूट के आने वाले फैसले के आधीन रहेगा। अर्थात जमीन निजी स्वामित्व की होगी लेकिन मालिकान बिक्री या गहन नहीं कर सकेंगे।
क्या है मामला
कोलगवां क्षेत्र का मामला 1959 से शुरू होता है जब तत्कालीन समय मे शेख बब्बू को मिली जमीन दूसरों को व्यावसायिक उपयोग पर दिये जाने पर बेदखल करते हुए मध्यप्रदेश शासन कर दिया। इसके बाद इसके विरुद्ध शेख बब्बू कलेक्टर न्यायालय, कमिश्नर न्यायालय, राजस्व मंडल और हाईकोर्ट तक गए। सभी जगह फैसला शासन के पक्ष में ही रहा। इस दौरान शेख बब्बू की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सुगरा और बेटे बेटिया पार्टी बन गए। जब ये सभी लोग हाईकोर्ट से केस हार गए तो तथ्य छिपाते हुए नए सिरे से लोवर कोर्ट में वापस इस जमीन के लिये केस दायर किया। इसमें लड़की पक्ष को अलग कर दिया गया। पहला केस शासन का पक्ष नहीं होने पर एक पक्षीय सुगरा बेगम व अन्य के पक्ष में हुआ। फिर डीजे कोर्ट में फैसला शासन के पक्ष में गया। इसके बाद हाईकोर्ट में सही पक्ष नहीं रखे जाने से वापस सुगरा बेगम के पक्ष में गया। लेकिन यहां से खेल शुरू हो चुका था। राजस्व अधिकारी समय पर सुप्रीम कोर्ट नहीं गए। जिससे समय निकलने पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकी अपील खारिज कर दी। इस तरह सुगरा बेगम व अन्य बिना गुण दोष की सुनवाई के सुप्रीम कोर्ट से जमीन स्वामी बन गए। लेकिन अब सिविल सूट के आने वाले फैसला के अधीन होने से एक बार फिर मामले में शून्य से मुकदमा शुरू हो गया है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक से निजी पक्ष में फैसला हो गया था। लेकिन जिला प्रशासन ने इसके बाद भी जमीन बचाने प्रयास जारी रखा। जिससे एक बार फिर से शहर के बीचों बीच स्थित बेसकीमती सरकारी जमीन को शासन के नामे बचाये रखने की उम्मीद और आशा जागी है।
इनकी कहना है-
माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार राजस्व अभिलेखों में की गई प्रविष्टियों से विवादित अराजियात में कथित दावाकर्ता एवं शासन के समस्त अधिकार व स्वत्व का प्रश्न शासन की ओर से प्रस्तुत एवं व्यवहार न्यायालय में विचाराधीन वाद क्रमांक 147/23 शासन वि.सुगरा बेगम वगैरह के निर्णय के अधीन रहेगा ,स्पष्ट है आराजी के संबंध में समस्त संव्यवहार स्थगित रहेगा। सामान्य भाषा में समझे तो क्रय विक्रय नही कर सकेगा।
रमेश मिश्रा, शासकीय अभिभाषक, जिला सतना मप्र

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