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पद्मावतीपुरी धाम पन्ना में देखने को मिल रहा 400 साल पुराना रंगपंचमी का अद्भुत संगम

शास्त्रीय राग रागनी का माह भर बरसता है रंग

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भोपाल। विश्व में हिन्दु धर्म के प्रमुख त्योहारों में एक रंगपंचमी का त्योहार अपना अलग स्थान रखता है। विश्व को आज से 400 वर्ष पूर्व निजानंद सम्प्रदाय के प्रमुख महामति प्रभु प्राणनाथ जी नें सर्वधर्म को जोडऩे का अमृत संदेश दिया था। इसी का एक सुन्दर स्वरूप मध्य प्रदेश में बुंदेल खण्ड में स्थित पद्मावती पुरी धाम पन्ना में स्थित प्राणनाथ जी मंदिर में एक माह तक लगातार चलने वाली रंग पंचमी का अनूठा इतिहास है। यह इतिहास आज से चार सौ साल पहले का है। आज भी यह परंपरा यहां जीवित है। आज भी वह स्वरूप देखने को मिलता है। जिस कारण देश विदेश से भक्त रंगपंचमी उत्सव में सम्मलित होने पद्मावतीपुरी धाम पन्ना जी आ जाते है। रिलयइंडिया न्यूज डॉट कॉम की टीम नें निजानंद सम्प्रदाय के वयोवृद्ध लेखक पं. ब्रजवासी लाल दुबे जी की पुस्तक इन विध साथजी जागिये के सहयोग से निजानंद सम्प्रदाय के प्रमुख त्योहारों को सरल शब्दावली के माध्यम से बताने का प्रयाश किया गया है। हम बताने जा रहे हैं चार सौ साल पुराने रंगोत्सव के बारे में विशेष रिपोर्ट।
होली दण्ड स्थापन -मोहन होली
ये त्यौहार होली आगमन की सूचना है । होली दण्ड स्थापना से पन्ना धाम में होलिका दहन की तैयारी शुरु हो जाती है। सुबह से चारों मंदिरों में प्रतिदिन की भाँति पूजा-पाठ और सेवा होती है । इस दिन सायंकाल से चारों मंदिरों में शुभ्र पोशाक में श्री राजजी का श्रृंगार किया जाता है । संध्या आरती के पश्चात दण्ड स्थापना की पंरपरा का पालन होता है। लंबे गीले बाँस में लाल रंग की पताका लगाकर उसे किलकिला नदी के किनारे एवं ग्वालनपुरा (वर्तमान गांधी चौक के आगे) में निर्दिष्ट स्थान हैं, जहाँ धाम मोहल्ले की होली रचाई जाती है। क्रमश: दोनों स्थानों पर पहुँचकर, हरे बाँस की जड़ में हल्दी की गाँठ, सुपारी, आदि पूजन सामग्री अर्पित करके होली दण्ड की स्थापना की जाती है। ठीक चौदह दिनों बाद फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा पर इन्हीं दोनों स्थानों पर धाम मोहल्ला की होली प्रज्ज्वलित होगी। इस दिवस से इस स्थान पर रोज कुछ लकडिय़ाँ, ईंधन सामग्री इकी की जाती रहेगी । आज के इस पर्व को प्रणामी परंपरा में (मोहन होरी) (होली=होरी: लोक भाषा में) के रूप में जाना जाता है। अद्भुत होली गीतों का गायन पुरानी परंपरा की याद दिलाती रात्रि के द्वितीय प्रहर के प्रारंभ में लगभग नौ बजे से साढ़े दस तक सर्वप्रथम गुम्मट जी के प्रांगण में सभी भक्त इके होकर होरी गीतों का गायन करते हैं। तत्पश्चात इसी प्रकार साढ़े दस से लगभग 12 बजे रात्रि तक बंगलाजी दरबार में होरी गीतों का गायन होता है । आज इत्र और गुलाल अपने वालाजी को अर्पित किया जाता है। फिर प्रसाद के रूप में समस्त सुंदरसाथ को भी लगाया जाता है। गुम्मट और बंगला दोनों मंदिरों में अलग-अलग प्रसाद वितरण होता है। रात्रि दस बजे के पश्चात क्रमश: दोनों मंदिरों में शयन आरती होती है।
भक्ति गीतों में शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम
आज की रात्रि में गाए जाने वाले गीतों का विशेष महत्व है। (मोहन होरी) की रात्रि में सबसे पहले जो गीत धमार में गाया जाता है, वह इस प्रकार है- मोहन खेलत होरी.. वृंदावन बंशीवट कुंजन, तरे ठाड़े वनमाली.. उते सखिन को मंडल जोरे, श्री वृषभान दुलारी…। इस गीत का भाव बहुत अद्भुत है। एक ओर कृष्ण, ग्वाल बालों के संग होली खेलने को तैयार खड़े हैं। दूसरी ओर राधिका जी भी अपनी सखी सहेलियों संग तैयार हैं। आज के खेल का नियम है कि जो जिस टोली की गिरफ्त में आ जायेगा, उस टोली के लोग उसके साथ मनमाना व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र होंगे। अब दोनों पक्ष के लोग अपने आपको एक दूसरे की पकड़ में आने से बचाते फिर रहे हैं। उधर एक सखी ने बलराम का भेष धारण कर लिया। कृष्ण धोखा खा गये और बलराम से जा मिले, इस प्रकार वे गोपिकाओं की पकड़ में आ गये। अब नियमानुसार गोपियों को उनके साथ मनमाना व्यवहार करना है। यहाँ गोपियों का आपसी संवाद गीत में बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त हुआ है। कोई गोपी कहती है, इन्होंने एक बार जमुना तट पर हमारे वस्त्र हरण किए थे, आज इनके वस्त्र हरण करने की बारी है। इस प्रकार सखियों में कोई उनका पीतांबर खींचती है, कोई उनका पटुका पकड़ के तानती है, कोई उनका मोर मुकुट ही लपक लेती है, कोई उनकी आँखों में गुलाल झोंक देती है और कोई गुलाल से उनका मुख मीड़ती है राधा कहती हैं-मानत कौन फाग में प्रभुता, मन मानो सो कीन्हो । कोई सखी अपने कान्हा से कहती है, आपके बहुत सुंदर बाल हैं, में आपकी चोटियाँ गूंध देती हैं और उसमें बढिय़ा माँग निकाल देती हूँ । कोई सखी कहती है इन्हें नचाओ और हम सब ताली बजाते हैं । सखियाँ कान्हा से कहती हैं, अब बुलाओ अपने हलधर भैया को… किसी को पर भेजो, जसोदा मैया को बुला लाए। तुमने हमसे बहुत छल बल किया है। अब राधा जी से विनती ये ही तुम्हें छुड़ा सकती हैं। हलधर आए और कृष्ण के साथ राधा जी से विनती करने लगे-
जोए जोए इच्छा होए तुम्हारी, सोई सोई फगुआ लीजे
अब छोड़ो पर जाएँ आपने, पीताम्बर मोहे दीजे ॥

ब्रह्मा विष्णु और महेश यह लीला देखकर ब्रजवनिताओं के भाग्य की सराहना कर रहे हैं और कह रहे हैं-
ध्यान धरत हैं, ध्यान में आवत नाहीं ।
सो देखो ब्रज वनितन आगे, ठाड़े जोरे बाहीं ।।

इस प्रकार मोहन होरी का यह धमार पद श्री कृष्ण और गोपिकाओं के अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त करता है। इसके बाद (नारदी) गीतों का गायन होता है । नारदी मुख्य रूप से तीन भागों में गाई जाती है। रात्रि के द्वितीय प्रहर में अर्थात 12 बजे तक (जद) के रूप में गाते हैं। फिर तृतीय प्रहर में रात्रि 3 बजे तक (परज) के रूप में गाई जाती है। तत्पश्चात अंतिम प्रहर में प्रात: 6 बजे तक (विहाग) के रूप में गाई जाती है। (जद, परज, और विहाग ये गायन की समयवार राग शैलियाँ हैं) आज का कार्यक्रम क्योंकि रात्रि 12 बजे का है अत: समस्त (नारदी) पद (जद) शैली में गाए जाते हैं। एक नारदी गीत देखिए- (मोहन बाँसुरी बजाई, माधुरी धुन तानन छाई ….। स्मृतियों में मोहन की बाँसुरी की तान सब ओर छा रही है। उधर माधव नें संदेश भेजे हैं, जिन्हें सुनकर हृदय फटा जा रहा है। लेकिन जब से कानों में मुरली की भनक पड़ी है, अब कुछ नहीं सुहाता गोपियाँ अलसाकर इस प्रकार उठकर गिरती हैं, मानो काले नाग ने इस लिया हो।
एक और नारदी गीत-डोलन बादुर की, हिय माँझ खुमी खुरसी..
इस प्रकार प्रणामी पर्व परंपरा में संतों ने कई नारदी गीत रचे हैं, जिनमें राधा,
कृष्ण और गोपियों के प्रेम प्रसंगों का बहुत मनोहारी चित्रण हुआ है।

(मोहन होरी) की तिथि में इन भक्ति गीतों को रात्रि के समय गुम्मट जी, फिर बंगला जी में सब भक्तगण मिलकर बड़े चाव से गाते हैं।
परिवा प्रथम (कृष्ण पक्ष ) मंदिरों में फाग उत्सवों की शुरुआत हो जाती है
जैसा कि विदित है कि मोहन होरी के साथ परना धाम के मंदिरों में फाग उत्सवों की शुरुआत हो जाती है। अब कृष्ण पक्ष की परिवा प्रथम के दिन भी गुम्मट जी एंव बंगला जी दरबार में होरी गीतों का सुमधुर गायन होता है। सुबह नित्य प्रतिदिन के अनुसार पूजा-पाठ और सेवा होती है शुभ वस्त्रों में श्री जी का श्रृंगार होता है। रात्रि नौ बजे गुम्मट जी के प्रांगण में भक्तगण इके होते हैं और परिवा प्रथम का उत्सव प्रारंभ होता है इत्र, गुलाल और पान का बीरा श्री जी को अर्पित किया जाता है और इसका प्रसाद बँटता है। आज की रात्रि में जो विशेष गीत गाए जाते हैं, वे इस प्रकार हैं- परमा प्रथम कुँवर दोऊ, बेहरत गोपिन संग ताल मुरज डफ वाजत, अरू आनक मुख चंग….। दरअसल परिवा प्रथम को जसोदा माता की तरफ से सबको फाग खेलने का आमंत्रण है। तब मन हरप जसोदा रानी सबको आसन दीनों… कुंकम घोर सरस कर, सब मुख माइन कीन्हो ….। अंत में सब आशीष देते हैं- तुम्हरो कुंवर जसोदा रानी, जिए जुग कोट बरीस….। इसके बाद नारदी गायन होता है। जैसे- ऐरी पॅडे ही परो नंद नंदन मेरे पेंडे ही परो…. । इस गीत में राधा कहती हैं- माखन खात, चित्तै चित चोरत, उर में रहत अरो। अर्थात वह नंद नंदन चुराकर माखन खाता है तथा चित्त भी चुराता है, और अब हृदय में आकर अड़ गया है। दूसरा नारदी गीत देखें बन बीच बिहारी जिन रार करो….छोड़ो छैल गेल जिन रोको, बहियां न पकरो। इस प्रकार कई नारदी गीत हैं परंतु आज का उत्सव रात्रि ग्यारह बजे तक होता है इसलिए सभी नारदी गीत (जत) शैली में ही गाए जाते हैं। इस प्रकार परिवा प्रथम के इस फागोत्सव में क्रमश: गुम्मट जी और बंगलाजी में अर्धरात्रि तक नारी गायन का कार्यक्रम चलता है । परिवा प्रथम (शुक्ल पक्ष) ठीक पंद्रह दिन बाद शुक्ल पक्ष की परिवा प्रथम का आगमन हो जाता है। इस दिन भी पूर्व परिवा प्रथम के अनुसार रात्रि नौ बजे से क्रमश: गुम्मट जी, फिर बंगलाजी में फागोत्सव का कार्यक्रम होता है उसी प्रकार इत्र, गुलाल, पुष्प श्री जी को अर्पित किए जाते हैं। भक्तगण उत्साहपूर्वक सर्वप्रथम परिवा प्रथम का गीत- परिवा प्रथम कुँवर दोऊ, बेहरत गोपिन संग गाने के बाद नारदी जत शैली में गाते हैं। प्रणामी संत कवियों ने बहुत नारदी गीत लिखे हैं, जो पन्ना धाम के अधिकांश सुन्दरसाथ को भली भाँति याद हैं। इनका संकलन भी उपलब्ध है । इस प्रकार बदल-बदल कर विभिन्न नारदी गीत गाने की परंपरा है। कुछ बानगी देखिए- अहे नंद लाल सखि, नित ढीठ…, अनीए हो पलक नहीं लागे, मन मोहन रूप लख्यो पिया आओ मेरे धाम, हों बलिहारी… कहियो दिल खोल पिया तुम जात कहाँ को… ऐ री मनमोहन रैन जगाई, या मुरली छवि…. आदि। इन नारदी गीतों में श्री कृष्ण एवं गोपिकाओं के संग हास-परिहास, प्रेम, मनुहार एवं हर्ष के अनगिनत क्षणों का वर्णन है परा प्रेमलक्षणा भक्ति की यह पराकाष्ठा है। इन गीतों को गाना, सुनना और पन्ना धाम के मंदिरों में भक्तों को झूमते हुए गाते देखना, एक अद्भुत अनुभव है। महामति श्री प्राणनाथ कहते हैं- रोम रोम विच रम रह्या, पिउ आसक के अंग । इसके ले ऐसा किया, कोई हो गया एकै रंग ॥ श्री महारानी जी के मंदिर में फागोत्सव (गोकुल सकल ग्वालिनी घर घर खेलें फाग) यह होलिका दहन के एक दिन पूर्व की फाग है। कान्हा, ग्वाल बाल संग राधिका जी के यहाँ फाग खेलने जाते हैं और उन्हें अपने यहाँ फाग खेलने का निमंत्रण भी देते हैं। इस दिन श्री महारानी जी के मंदिर में विशेष श्रृंगार होता है। रात्रि में भोग लगने के पश्चात लगभग 10 बजे महारानी जी मंदिर के प्रांगण में सुन्दरसाथ इके होने लगते हैं। फिर फाग गायन का कार्यक्रम प्रारंभ होता है। इस दिन गाए जाने वाले फाग गीत इस प्रकार हैं- गोकुल सकल ग्वालिनि, घर घर खेलें फाग, बेंदा भाल बन्यो राधा प्यारी को…तू वेदी भाल न दे री.. नैयनन श्याम रो लग जैहे… अचरा न काहे कैसे हो मतवारे..जो कबू आत्मा जग जैहे… रतियां जागे बालम कौन त्रिया… (प्रात: कालीन बेला में) अखियां अलसानी पिया सेज चलो…हमसे हंस बोल पिया तुम जात कहां..कजरारे नैन तीरे करत कजा की..झूमत गागर ले चली अलबेली नई पनिहार…नैना नींद भरे हमसों हंस बोल पिया..आदि नारदी गीत विशेष रूप से गाए जाते हैं। ये पद रात्रि 12 से 3 बजे तक (परज) शैली में, 3 से 6 बजे तक (विहाग) शैली में गाए जाते हैं सुबह सुबह समस्त सुन्दरसाथ गाते-बजाते हुए मंदिर के बाह्य परिक्रमा में आ जाते हैं। परिक्रमा लगाते हुए ये विशेष गीत गाने की परंपरा है, सुघर सवानी हो… सज के डगरी रंगीली खेलन होरी…कागा बोलत री… इत्यादि ।
फाग उत्सव में राधिकाजी केन्द्र में
आज के फाग उत्सव में राधिकाजी केन्द्र में हैं। सारे फाग गीत उनकी और उनकी सखी-सहेलियों के हास परिहास, खेल एवं उनकी महिमा के लिए गाए गए हैं। बीच-बीच में कृष्ण एवं उनके साथ हास-परिहास के गीत भी हैं। परंतु आज का पर्व राधिका जी का पर्व है, इसलिए विशेष रूप से उनके रूप सौंदर्य और फाग खेलों का वर्णन गाया जायेगा गोकुल सकल ग्वालिनी घर घर खेलें फाग। तामें श्री श्यामाजी लाड़ली, जाको परम सुहाग। कोई सखी राधा से कहती है- तू बंदी भाल न दे री, तेरो ऊसे है जग बैरी आगे अनुपम सौंदर्य का वर्णन देखिए-ले मुख चंद्रहि ढांक अली, दुत चंद्रहि मंद करेरी । राधिका जी के मुख के सामने, चंद्रमा का सौंदर्य कुछ भी नहीं है। हास-परिहास और होली के छेड़छाड़ के मध्य आध्यात्मिक रंग भी है – जो कबू आतम जग जैहे….। तारतम मंत्र पर विचार करो, इसका मनन करो। इस मंत्र के एक एक शब्द का भाव ग्रहण करो, उसे अपने हृदय में सहेज कर रखो तारतम मंत्र के स्मरण से, इसके मनन से एक दिन अपना प्रीतम मन भावना जरूर आएगा तब आओ री सखी मिल मंगल गाइये, – मोतियन चौक पुरावना । और अंत में राज रसिक की अद्भुत लीला….तारी दे दे खेलन नंद को लाल….।
तरह-तरह के फाग गीत रस विभोर होकर गाए जाते
इस प्रकार महारानी जी के मंदिर में रात भर फागोत्सव मनाया जाता है। तरह-तरह के फाग गीत रस विभोर होकर गाए जाते हैं। फिर सुबह की आरती होती है । स्वरूप पढ़ा जाता है परिक्रमा गीत गाए जाते हैं तत्पश्चात परदा लगा दिया जाता है। दूसरा दिन प्रारंभ हो गया। चौदस के दिन से सभी मंदिरों में अब नियमित सफेद पोशाक में श्रृंगार होगा । दूसरे पुजारी पूजा में आ जाते हैं। एक घंटे बाद पुन: नये साज-श्रृंगार के साथ महारानी जी की पूजा शुरु हो जाती है
होलिका दहन (धुरेड़ी) – धंन धंन ब्रज की ब्रज बघू, धंन यह गोकुल ग्राम
महारानी जी के मंदिर से गाते बजाते हुए भक्तगण बंगलाजी मंदिर में आते हैं। कुछ देर यहाँ पुन: फागोत्सव के गीत गाए जाते हैं। सभी मंदिरों में आज पूर्णिमा घुरेड़ी का श्रृंगार हो गया है। दिन भर अब विधि विधानुसार पूजा अर्चना होगी। आज रात्रि में होलिका दहन का कार्यक्रम होगा। परना धाम की जहाँ-जहाँ होलिका रचाई गई है। सायंकाल अंधेरा घिरते ही लोग वहाँ इके होने लगेंगे। धाम मंदिरों के होली पर्व में यह चौदस की रात्रि में महारानी जी के यहाँ होली का बहुत महत्व है। यह राधिका जी का पर्व है । प्रणामी धर्म में प्रत्येक त्यौहार के केन्द्र में हमारे प्रीतम श्री कृष्ण हैं । पराप्रेमलक्षणा भक्ति द्वारा ही हम उन्हें प्राप्त कर सकते हैं। मैं तो गिरधर के घर जाणा । गिरधर म्हारो सांचो प्रीतम, वासों प्रेम निभाणा । इस प्रकार हम श्री कृष्ण भक्ति में सराबोर होकर होलिका दहन के कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं और मन ही मन कामना करते हैं कि हमारे अंदर के सारे विकार होलिका की तरह जल जाएँ और एक शुद्ध भक्ति भाव प्रहलाद की तरह बचा रहे तदनन्तर गेहूँ, चने, जी तथा तीसी के पौधों को लेकर उनकी बालियों को होली की आँच में सेंकने की परंपरा है। अब से यह नवान्न उपयोग में लाया जायेगा। माताएँ, बहनें, अपने प्रियजनों, घर के सदस्यों और शिशुओं की राई, नमक, मिर्च से नजर उतार कर उसे होली की आग में झोंक देती हैं। जन विश्वास है कि इस प्रकार सारी अलाएँ बलाएँ होली के साथ भस्म हो जाती हैं और एक सुंदर स्वस्थ जीवन हमें प्रभु की भक्ति के लिए उपलब्ध होता है सचमुच होली के साथ सारा झाड़ झंकाड़, जीवन की समस्त बुराइयाँ धू-धू कर जलने लगती हैं। होली की लपटों में हमें अपनी बुराइयों- काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ आदि को जलते हुए देखना चाहिए जब ये विकार जलने लगते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आनंद का झरना बह निकलता है। इसलिए होली दहन के साथ ही ढोल, मंजीरे, झांझर आदि बज उठते हैं और लोग आनंद उत्सव मनाने के लिए मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। गुम्मट जी के सामने फाग गायन का अलग आनंद रात्रि लगभग साढ़े नौ बजे से गुम्मट जी के सामने फाग गायन का कार्यक्रम प्रारंभ होता है। पूर्णिमा का दिन है। आसमान में चाँद अपने पूरे निखार पर है। चारों ओर चाँदनी बिखरी हुई है। आज शुभ्र वस्त्रों में श्री राजजी का श्रृंगार सुशोभित है इत्र, गुलाल और पान का वीरा श्रीजी को अर्पित किया जाता है। फिर इसका प्रसाद सुंदरसाथ में वितरित होगा लोग भाव विभोर होकर गा उठते हैं-‘धन धन व्रज की व्रजवधू, धंन यह गोकल ग्राम…..। प्रणामी मत के अनुसार श्री कृष्ण ही इस युग में महामति श्री प्राणनाथ के रूप में आए। उनके साथी भक्तगण, जिन्हें सुंदरसाथ कहते हैं, सब गोपिका रूप हैं और परनाथाम गोकुल-वृंदावन धाम है इसलिए इस गीत का एक भाव यह भी है कि धन धन सुन्दरसाथ, धन धन परना धाम । इस अवसर पर गाए जाने वाले अन्य गीत इस प्रकार हैं- डोलन बादुर की, हिय मांझ खुभी खुरसी….वन बीच बिहारी जिन रार करो…. इत्यादि। फागोत्सव (परिवा प्रथम) राधा हिरा गई कुंजन में आज चारों मंदिरों में विशेष श्रृंगार होता है। आज रसिक राज अपनी सखियों सहित फागोत्सव में भाग लेंगे। बंगला जी में आज खट छप्पर के झूले में श्री जी की सेवा आती है। सुबह नौ बजे ही सभी भक्तगण झांझ, मजीरे और ढोलक के साथ मंदिर के मुख्य द्वार पर इके हो जाते हैं । सबसे पहले गाते-बजाते हुए मंदिर का बाह्य परिक्रमा पूरा किया जाता है। बाह्य परिक्रमा में ही किनारे किनारे सैकड़ों भक्तजन बसे हुए हैं। ढोलक की थाप सुनकर सब लोग अपने अपने घरों से निकल कर होलिहारों में शामिल होते जाते हैं। लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं, गले मिलते हैं और मुँह मीठा कराते हैं। इस प्रकार धाम मोहल्ले की यह टोली गाते-बजाते आगे बढ़ती जाती है। मंदिर का बाह्य परिक्रमा पूरा करने के बाद यह टोली शहर का परिक्रमा पूरा करके राज महल पहुँचती है, जहाँ महाराज छत्रसाल के वंशज राज परिवार के सदस्यों को गुलाल लगाकर लोग आगे बढ़ते हैं। यहाँ मुख्य रूप से महाराज छत्रसाल के पद गाए जाते हैं। पूरे शहर का चक्कर लगाते हुए, सबको रंग गुलाल लगाते हुए दोपहर तक यह टोली मंदिर के परिक्रमा में पहुँचकर विसर्जित होती है।
राधा हिरा गई कुंजन में… गीता पर सभी भक्त झूम उठते हैं
इस दौरान जो प्रमुख गीत गाए जाते हैं, वे इस आदि प्रकार हैं- राधा हिरा गई कुंजन में..राधा सों हो राधा सों.. राधा भक्ति की प्रतिमा हैं। जीवन में भक्ति ही तो हिरा गई है, गुम गई है कुंजन में भक्ति माया में, जंजालों में खो गई है उसे ढूँढना है राधा की निरंतर तलाश जीवन का परम उद्देश्य है, और राधा मिल जाएँ, तो होरी खेलत मोहन राधा सों…। तत्पश्चात जीवन की परम उपलब्धि इस प्रकार है- मोहन सों हो मोहन सों, होरी खेलत राधा मोहन सों…। दरअसल राधा मोहन दो हैं ही नहीं। वे तो सदा सर्वदा एक हैं । दोपहर बारह बजे के बाद सब लोग नहाकर शुभ्र वस्त्रों में बंगला जी मंदिर में एकत्रित होते हैं। भाव यह है कि राधा रानी बरसाने से सज धज कर गोकुल (बंगला जी) में अपने मनमोहन से होली खेलने आ गई हैं। चारों ओर इत्र गुलाल और फूलों की वर्षा हो रही है ढोलक और झाँझ मजीरे के साथ झुमकरा शैली में गीत गूंज उठते हैं- धंन धंन ब्रज की व्रजवधू…. कुँवर लड़ती रंग भरी…, श्री गोकुल राज कुमार…, तुम लंगर कन्हैया हो.., फाग रंगीली खेलिए…, फूलन की बरसा हो रही…, हमारे झूले कन्हैया… श्याम ले मुकुट संवारो… कन्हैया ने मोरी कही मानी…… हमें पत राख लिए पंजे वाले… आदि।
विशेष पाँच घरों वाली आरती का विशेष महत्व
राधा और कृष्ण परस्पर एक दूसरे पर रंग गुलाल डाल रहे हैं। सखियाँ भी कृष्ण को रंगगुलाल में सराबोर कर रही हैं। गोकुल (बंगलाजी) में फागोत्सव हो रहा है, जहाँ खेलें नवल किशोर मुकुट धारी… ग्वालन में ठाड़े मन मोहन….. सखियन में श्यामा प्यारी…। इस प्रकार यहाँ आनंदोत्सव शाम पाँच बजे तक चलता है। इस बीच दोपहर दो बजे गुम्मट जी में आरती (विशेष पाँच घरों वाली आरती) लगभग ढाई बजे यही विशेष आरती बंगला जी में तत्पश्चात ऐसी ही भव्य आरती सद्गुरु मंदिर में की जाती है। आरती के बाद पीढ़ावनी हो जाती है। उधर बंगला जी से गाते बजाते हुए पुरुष लोग परिक्रमा में आ जाते हैं। दरवार हाल में महिलाओं की मण्डली में फाग गीतों का मुक्त गायन देर तक होता रहता है। श्री राजजी को अर्पित करने के पश्चात् केसर का पुजारी द्वारा सभी पर छिड़काव किया जाता है। अंत में बूँदी और चने का प्रसाद प्राप्त कर रंग-गुलाल से सराबोर सभी अपने अपने घर जाते हैं। अभी रात में सभी भक्तगण फिर जुटेंगे। पुन: बंगला जी में रात भर फागोत्सव मनाया जायेगा। शाम हो गई है। सभी मंदिरों के पुन: पट खुले प्रभु के महाश्रृंगार की तैयारी चल रही है। नित्य की तरह सेवा पूजा होती है। लगभग साढ़े नौ बजे गुम्मट जी प्रांगण में भक्त इके होते हैं। धनी जी को इत्र, गुलाल और पान का बीरा अर्पित किया जाता है। फिर झाँझ, ढोल, मजीरों के साथ फागोत्सव प्रारंभ होता है। दिन के फागोत्सव में प्राय: नारदी नहीं गाई जाती । रात्रि फागोत्सव में नारदी गायन की पुरानी प्रथा रात्रि के फागोत्सव में ही नारदी गायन की प्रथा है। दिन में विभिन्न प्रकार के फाग गीत गाये जाते हैं। रात्रि में नारदी गायन के अन्तर्गत 12 बजे तक (जत) 3 बजे तक (परज) और सुबह 6 बजे तक (बिहाग) शैली में फाग गीत गाए जाते हैं। लगभग एक-डेढ़ बजे तक गुम्मट जी में गाने बजाने के पश्चात समस्त सुंदरसाथ बंगला जी मंदिर में आ जाते हैं यहाँ सुबह सात बजे तक फागोत्सव मनाया जाता है इस अपसर पर गाए जाने वाले प्रमुख गीत इस प्रकार हैं, मोहन बांसुरी बजाई….चंदा भाल बनो… ऐरी पेढों ही परो…. ऐरी मोहन मोपे… ढोलन बादुर की नैयन श्याम रो…जागनी आई…. जिन रार करो… आदि । मान्यता है कि आज की फाग राधा, कृष्ण एवं सखियाँ मिलजुल कर एक संग खेल रहे हैं। कलांतर में इस भाव का विकास इस प्रकार है कि महामति श्री प्राणनाथ कृष्ण वर हैं। उनकी अद्धांगिनी तेजकुँवर, श्यामाजी (राधिका जी) एवं सभी सुंदरसाथ सखियाँ हैं। यह ज्ञान की होली का समय है इसलिए तो भक्त कवि श्री अर्जुन सिंह लिखते हैं- प्राणनाथ पिउ खेलत होरी, वेद कतेब को सार, भर भर के मारत हमको झोरी। हमारे पिउ प्राणनाथ ने हमारे ऊपर ज्ञान की वर्षा कर दी। उन्होंने वेद और कतेब (कुरान) के ज्ञान को झोरी भर भर कर हमारे ऊपर उड़ेल दिया। आगे थे कहते हैं- अबीर गुलाल प्रेम, ज्ञानमय सनमुख सबके ऊपर मेलो। अर्थात अब श्री प्राणनाथ जी के संग रहते हुए हमें सबके चेहरों पर प्रेम और ज्ञान का अबीर गुलाल पूरी तरह मल देना है अर्थात अब जागृत होने की बेला है। यह जागनी की होली है। भक्ति गीत के साथ परिक्रमा का विशेष आनंद गाते बजाते हुए सब लोग बाह्य परिक्रमा में आ जाते हैं। यहाँ भी देर तक विभिन्न प्रकार के फाग गीत गाए जाते हैं.. सुघर सयानी हो.., सज के डगरी रंगीली खेलन होरी.., कागा बोलत री.. आदि। ये सारे गीत समय के अनुसार शास्त्रीय रागों में निबद्ध हैं। इसलिए समयानुसार निर्धारित गीत ही गाए जाते हैं। गायन की विविध शैलियों के अन्तर्गत बसंत, धमार, दहका, नारदी और झुमकारा फाग गीत समय-समय पर गाए जाते हैं। बीच बीच में महामति श्री प्राणनाथ की वाणी एवं विभिन्न भक्त कवियों के पद (इन्हें प्रणामी परंपरा में दास वाणी कहते हैं) भी बड़े चाव से गाए जाते हैं । सुबह साढ़े सात बजे शयन आरती होती है। तत्पश्चात प्रसाद वितरण होता है और सभी लोग अपने घरों की ओर प्रस्थान करते हैं। पन्ना धाम की होली का विशेष महत्व शहरों में माताओं-बहिनों का यह दिन रसोई में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने में या फिर घर में यूँ ही बैठे-बैठे कटता है। ऐसी स्थिति में पन्ना धाम में होली का पर्व एक आदर्श परंपरा के रूप में स्वीकृत है। यहाँ कोई कीचड़ और गाढ़े रंगों की होली नहीं होती। लोग नहाकर, सफेद वस्त्र पहन कर मंदिर जाते हैं। मंदिर से दी जाने वाली गुलाल, जो श्रीजी का प्रसाद ही है, उसे ही एक दूसरे पर लगाया जाता है केशर घोल कर वासंती रंग बनाया जाता है । उसे ही प्रसाद रूप में पुजारी जी चाँदी की पिचकारी द्वारा सभी पर छिड़कते हैं। दिन और रात सुमधुर कीर्तन चलता रहता है। महिलाएँ बुजुर्ग और बच्चे समान रूप से इस भक्ति उत्सव में सम्मिलित होते हैं होली के इस आदर्श उदाहरण के कारण प्रतिवर्ष इस पर्व पर दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु पन्ना धाम की होली में सम्मिलित होने आते हैं, और इस पर्व को यहाँ आनंद पूर्वक मनाते हैं। सभी फागोत्सव के रंग में रम जाते है फागोत्सव तृतीया श्री गुम्मट जी एवं बंगला जी में फागोत्सव, परिवा प्रथम की तिथि को मनाया जाता है परंतु इस उत्सव की उमंग और रसाभिव्यक्ति चैत्र मास की पूर्णिमा तक कायम रहती है। रंगपंचमी के बाद तो कभी खेजड़ा मंदिर में, कभी चौपड़ा मंदिर में कभी किसी धर्मशाला में, भक्तों का जब जैसा मन हुआ या किसी न किसी पवित्र स्थल पर फागोत्सव का आमंत्रण मिला, तो पन्ना धाम की फाग मंडली वहीं आनंदोत्सव मनाने चल देती है । खाले बाजार में सचमुच का बाजार लगा करता था पन्ना धाम में एक जगह है जिसे खाले बाजार कहते हैं। कभी यहाँ सचमुच का बाजार लगा करता था। निश्चित है कि यहाँ समाज के संपन्न लोग रहते रहे होंगे। आज भी इस क्षेत्र में समाज के प्रतिष्ठित और संपन्न लोग रहते हैं। कभी अतीत में तृतीया का फागोत्सव खाले बाजार के भक्त साथियों के अनुरोध पर शुरु हुआ था। वहीं के सुंदरसाथ द्वारा इस आयोजन की व्यवस्था होती रही है। कमोवेश आज भी इस तिथि में फागोत्सव का आयोजन उन्हीं के प्रबंधन में होता चला आ रहा है। इस तिथि में फागोत्सव का स्वरूप वही है, लगभग साढ़े नौ बजे से गुम्मट जी के प्रांगण में भक्तगण इके होने लगते हैं। श्री जी को इत्र, गुलाल और पान का बीरा अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात तृतीया का फागोत्सव प्रारंभ हो जाता है।
प्रणामी भक्त कवियों ने सैकड़ों होली गीत, नारदी, धमार और फागें लिखी हैं। इनमें से अधिकांश रचनाओं के संग्रह प्राणनाथ एवं बाईजूराज के रूप में प्रतिष्ठित हुए । इनके जीवन काल की भी अनेक लीलाएं हैं। क्योंकि घोर कलिकाल में माया के वशीभूत हो अज्ञान के अंधकार में पवित्र आत्माएँ सुप्तावस्था में थीं उन्हें जागृत करने के लिए, उन्हें होश में लाने के लिए महामति श्री प्राणनाथ ने ज्ञान की वंशी बजाई, जिसे सुनकर जगह जगह से ब्रह्म आत्माएँ ( वही गोपिकाएँ) अपना सब कुछ छोड़ कर उनके पास दौड़ी चलीं आई । अत: यह इस युग में जागनी लीला कहलाई महामति श्री प्राणनाथ के जीवन काल की समस्त घटनाएँ इसी प्रकार जागृत लीला के अन्तर्गत ही मानी जाती हैं। इस जागनी लीला उत्सव में 18758 चौपाइयों का अवतरण हुआ । साथ ही विभिन्न जागृत ब्रह्ममुनियों द्वारा समय-समय पर सैकड़ों भक्ति पद गाए गये, इन पदों का पुनर्पाठ पन्ना धाम के पर्वों और उत्सवों में देखा जा सकता है । तृतीया की इस फाग में भी इसी प्रकार के विभिन्न पारंपरिक होली गीतों का गायन उत्साह पूर्वक किया जाता है
रंगपंचमी रात्रि जागरण
वैसे तो रंग पंचमी फागोत्सव का अंतिम चरण है परंतु जब मन में उमंग है, फाग का मौसम है, तो फिर आनंद का अंत कहाँ आज रंग पंचमी है, रात्रि जागरण का अवसर । आज पुन: गुम्मट जी में फिर बंगला जी में फागें गाते हुए पूरी रात व्यतीत होगी रात्रि दस बजे से एक बजे तक गुम्मट जी के प्रांगण में फिर बंगला जी दरबार हाल में सुबह तक फाग गायन का कार्यक्रम चलता रहता है। शास्त्रीय संगीत की परंपरानुसार रात्रि बारह बजे तक (जत) शैली का गायन होता है । तत्पश्चात (परज) फिर प्रात: काल तक (विहाग) में होली गीत गाए जाते हैं। मुख्य रूप से रात्रि में नारदी गायन होता है। आज रात श्री राजजी के महाश्रृंगार में विशेष प्रकार की शोभा होती है। पान का बीड़ा, गुलाल, इत्र आदि श्रीजी को अर्पित किया जाता है। रात भर लोग पूरे उत्साह और उमंग में नारदी एवं अन्य होली गीत गाते हैं।
वैसे तो कृष्ण लीलाओं में उनकी सारी लीलाएँ प्रेम और आनंद से ओत-प्रोत हैं। कृष्ण लीलाओं से जुड़े सारे उत्सव एवं त्यौहार (रेस) की साधना का महत्व प्रतिपादित करते हैं। परंतु फागोत्सव का कृष्ण लीलाओं में विशेष महत्व है इसलिए इस त्यौहार को बहुत विस्तार से मनाया जाता है। प्रणामी मंदिरों में कई दिनों तक फागोत्सव चलता रहता है । साहित्य, संगीत और नृत्य कला का ऐसा सम्मिश्रण अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देता। सारे शास्त्रों ने एक स्वर में कहा है कि कृष्ण रसिकेन्द्र हैं। रस का सर्वाधिक विस्तार फागोत्सव जैसे पर्व में यहाँ धाम के मंदिरों में सहजता से देखा जा सकता है। सुबह सात बजे तक यह रंगारंग कार्यक्रम चलता रहता है । तत्पश्चात शयन आरती और प्रसाद वितरण होता है। इस प्रकार रंगपंचमी का यह फागोत्सव संपन्न होता है।
श्री सद्गुरु मंदिर में फागोत्सव – चैत्र कृष्ण सप्तमी
प्रणामी धर्म परंपरा में सद्गुरु का महत्व सर्वोपरि है। महामति श्री प्राणनाथ जामनगर गुजरात से अपनी यात्रा प्रारंभ करके देश के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण करते हुए पन्ना में आकर अपना स्थाई निवास बनाते हैं । इस पूरी यात्रा में उनके सद्गुरु श्री देवचंद्र जी का स्मरण एक क्षण के लिए भी उनसे अलग नहीं होता। वे क्षण-क्षण अपने गुरू को याद करते हैं । उनके प्रतीक चिन्हों को सदा अपने पास रखते हैं। पन्ना में आकर वे अपने सद्गुरु के प्रतीक चिन्हों को स्थापित करते हैं। फिर यहाँ सद्गुरु श्री देवचंद्र जी के नाम से एक विशाल मंदिर बनता है, जो सद्गुरु मंदिर के नाम से विख्यात है पन्ना धाम के सारे पर्व परंपराएँ और संस्कार सद्गुरु मंदिर से गहरे रूप में जुड़े हुए हैं। प्रणामी धर्म में कई तीर्थ एवं पुरियाँ हैं परंतु इधर इस उत्सव ने शहरों में विकराल रूप ले लिया है। इस दिन अद्र्ध रात्रि तक बड़े-बड़े होटलों में पार्टियाँ होती हैं आधुनिक नाच गाने का आयोजन रहता है और आतिशबाजी होती है । उस रात सड़कों पर लोग हुल्लड़ करते हैं व्यर्थ का शोर शराबा होता है। इस प्रकार हमारे कस्बों और नगरों में नव वर्ष आगमन दिवस बड़े ही भाँडे तरीके से मनाया जाता है, जिसमें शरीफ और सज्जन लोग सम्मिलित होना ठीक नहीं समझते । उस रात सड़कों पर निकलना असुरक्षित होता है और भले लोग डरे और सहये हुए रात काटते हैं इस भयावह स्थिति से निकलकर प्रभु के चरणों में बैठकर भजन कीर्तन करते हुए नव वर्ष का स्वागत करने की परंपरा पन्ना धाम के मंदिरों में शुरू हुई है। देश के विभिन्न कस्बों और महानगरों में रहने वाले प्रणामी धर्मावलंबी प्राय: 31 दिसंबर को पन्ना धाम में आ जाते हैं। रात्रि में गुम्मट जी के सामने भव्य पंडाल सजाया जाता है। पंजाब, गुजरात, ऊ.प्र., बिहार, मुंबई और दिल्ली आदि से आई भजन मंडलियाँ और सुंदरसाथ आज की रात अपने प्रभु का गुणगान करते हुए नववर्ष का स्वागत करते हैं। नववर्ष की शुरुआत के समय रात्रि बारह बजे आतिशबाजी होती है, नारियल फोड़े जाते हैं और पूरे साल सादा सात्विक जीवन बिताने के लिए यहाँ श्री राजजी के सामने संकल्प दोहराया जाता है। यह एक स्वस्थ और सुंदर परंपरा है। नये वर्ष का स्वागत पर्व ऐसा ही मनाया जाना चाहिए । पन्ना धाम में यह प्रथा प्रचलित है। लोग दूर-दूर से आते हैं, धामधनी का स्मरण करते हैं, बीते साल हुई भूलों के लिए श्री राजजी से क्षमा माँगते हैं और नए वर्ष का संकल्प यहाँ दोहराते हैं। इस प्रकार नए वर्ष की शुरुआत अपने प्राणनाथ प्यारे को याद करते हुए, उनके गुणानुवाद करते हुए की जाती है।
नोट: इन विध साथजी जागिये पुस्तक से यह सामग्री प्राप्त की है।

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