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माघ मास का विशेष महत्व है स्वस्थ्य जीवन के लिए

इस महीने सूर्य पूजा और तिल खाने से बढ़ती है शरीर की ताकत

भोपाल, Real India News. पौष के बाद अब माघ महीना शुरू हो गया है। इस महीने नदी में स्नान और दान करना शुभ माना गया है। पुराणों के मुताबिक ये महीना मंगल कामों के लिए भी श्रेष्ठ बताया गया है। इस महीने भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे ग्यारहवां महीना माना गया है। ये 16 फरवरी को खत्म होगा। माघ मास हिंदू संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
सेहत के लिए खास
माघ महीने में धूप लेने से कई सेहत संबंधी समस्याएं धीरे-धीरे खत्म होने लगती हैं। इस महीने में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस दौरान सूर्य से निकलने वाली किरणों को सेहत के फायदेमंद बताया गया है। इससे शरीर को विटामिन डी मिलता है। बच्चों को धूप दिखाने से निमोनिया और सर्दी से जुड़ी बीमारियों से बचाया जा सकता है। वहीं बुजुर्गों को भी इस धूप में कुछ देर बैठना चाहिए। इससे उन्हें हड्डियों से जुड़ी परेशानियों में आराम मिलता है।
माघ महीना और तिल
इस महीने में सबसे ज्यादा तिल का इस्तेमाल किया जाता है। माघ मास में संकष्टी चतुर्थी, षट्तिला एकादशी, तिल द्वादशी, अमावस्या, तिलकुंद चौथ, अजा एकादशी और पूर्णिमा। ये व्रत-पर्व तिल के बिना अधूरे होते हैं। इनमें तिल खाने और दान करने का विधान है। इन तीज-त्योहारों के साथ ही पूरे महीने पानी में तिल डालकर नहाने का विधान बताया गया है। इस महीने तिल खाने से सेहत अच्छी रहती है। तिल में मौजूद पौष्टिक तत्व पूरे साल शरीर को तंदुरूस्त रखते हैं।
माघ महीने में स्नान-दान
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान विष्णु की निकटता प्राप्त करने के लिए माघ मास में स्नान, दान और पूजन करना चाहिए। इससे सभी दोषों से भी मुक्ति मिलती है। निर्णयसिंधु ग्रंथ का कहना है कि हर इंसान को माघ महीने के दौरान एक बार जरूर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। मत्स्य पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में माघ मास के दौरान दान और तप करने की बात कही गई है। साथ ही माघ महीने में पितरों के लिए श्राद्ध करने का भी विधान है।
पितरों के लिए खास महीना
माघ मास में कल्पवास किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माघ में ही महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए अपने सगे संबंधियों को सदगति दिलाने के लिए युधिष्ठिर ने कल्पवास किया था। जैसे कि माघ मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अन्वष्टका श्राद्ध होता है। उसी तरह से माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी मनाई जाती है। जिन्होंने अपने पूर्वजों को तर्पण न दिया हो, वे इस दिन तर्पण देकर लाभ प्राप्त कर सकते है। इस दौरान अनुशासित जीवन शैली अपनाने से कई प्रकार की समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।

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