बुरहानपुर में पचास हजार पावरलूम पूरी तरह बंद, विभागीय अफसर की उदासीनता बनी कारण
बुरहानपुर
शहर की धड़कन कहे जाने वाले पावरलूम कारखानों गड़गड़ाहट रविवार से पूरी तरह बंद हो गई है। अपने हक की पूरी मजदूरी हासिल करने के लिए पावरलूम बुनकर रविवार से अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले गए हैं। जिसके चलते करीब पचास हजार पावरलूम पूरी तरह बंद हो गए हैं। अब इन कारखानों में काम करने वाले करीब एक लाख बुनकरों, मजदूरों व हम्मालों आदि के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
पावरलूम बुनकर संघ के अध्यक्ष रियाज अंसारी ने बताया कि टैक्सटाइल एसोसिएशन के साथ हुए अनुबंध के अनुसार बुनकरों को प्रति कोन प्रति मीटर 25.25 रुपये के मान से मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए, लेकिन टैक्सटाइल फैक्ट्री संचालक 20 से 22 रुपये का भुगतान ही कर रहे हैं। बुनकर संघ लंबे समय से पूरी मजदूरी का भुगतान करने की मांग करता आया है, लेकिन व्यापारी मनमानी कर रहे हैं। जिसके चलते शनिवार शाम पावरलूम बुनकर संघ की बैठक बुलाई गई थी। जिसमें अपना हक पाने के लिए सभी बुनकरों ने अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है।
श्रम विभाग की उदासीनता पड़ रही भारी
बुनकरों ने बताया कि टैक्सटाइल फैक्ट्रियों और बुनकरों के बीच सामंजस्य बना कर उनका हक दिलाने की जिम्मेदारी श्रम विभाग और जिला प्रशासन की है, लेकिन विभागीय अफसर उदासीन बने हुए हैं। अब तक उन्होंने न तो मध्यस्थता का प्रयास किया और न ही बुनकरों को उनका हक दिलाने के लिए व्यापारियों से चर्चा की है। इस संबंध में पावरलूम बुुनकर संघ ने कलेक्टर भव्या मित्तल को भी ज्ञापन सौंपा है। संघ के अध्यक्ष ने श्रम पदाधिकारी के स्थान पर एसडीएम अथवा किसी अन्य अधिकारी को मध्यस्थता के लिए नियुक्त करने की मांग की है। जिससे बुनकरों की समस्या का जल्द निराकरण हो सके।
हजारों परिवारों का जलता है चूल्हा
पावरलूम कारखानों के चलने से शहर के हजारों परिवारों के घर का चूल्हा जलता है। बुनकरों के अलावा पावरलूम में कांडी भरने वाले, कोन ढोने वाले आटो व तांगा चालक, माल चढ़ाने वाले हम्माल व अन्य लोग जुड़े होते हैं। लूम जब पूरी क्षमता के साथ चलते हैं, तो सभी को पर्याप्त राशि मिलती है। बुनकरों के अनुसार वर्तमान में व्यापारी कच्चा माल भी पूरा नहीं दे रहे हैं। जिसके चलते कारखाने पूरी क्षमता के साथ नहीं चल पा रहे हैं। जिससे बुनकरों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। कपड़ा बनाने पर जो राशि मिलती थी वह बिजली बिल व मजदूरों को भुगतान करने में जा रही थी। यही वजह थी कि हड़ताल का निर्णय लेना पड़ा।