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51 शक्तिपीठों में से एक है कांगड़ा का ब्रजेश्वरी धाम

भौणावाली माता के नाम से भी जाना जाता

Real India News. देव भूमि हिमाचल प्रदेश में अनेक देवी-देवताओं के मंदिर है जिनका अपना इतिहास, परंपरा और मान्यताएं हैं। इन्हीं में एक है, माता ब्रजेश्वरी मंदिर, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर का वर्णन दुर्गा स्तुति में किया गया है। ब्रजेश्वरी माता का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नगरकोट में स्थित है। ब्रजेश्वरी देवी मंदिर को नगरकोट, कोट कांगड़े वाली माता, भौणावाली माता (भवनवाली) के नाम से भी जाना जाता है।
पांडवों से ऐसे संबंधित है मंदिर
मंदिर से जुड़ी लोक कथा के मुताबिक, महाभारत काल में पांडवों ने स्वप्न में मां दुर्गा को देखा था। दुर्गा मां ने उन्हें बताया कि वे नगरकोट गांव में स्थित हैं, उन्हें इस क्षेत्र में उनका एक मंदिर बनाना चाहिए तभी वे सुरक्षित रहेंगे। कहते हैं उसी रात पांडवों ने नगरकोट गांव में माता का यह मंदिर बनवाया था। बाद में इस मंदिर को मुगल शासकों ने अनेक बार लूटा। जबकि अकबर ने इनसे हटकर मंदिर निर्माण में अपना योगदान दिया। महाराजा रणजीत भी कई बार मंदिर आए। 1905 में यह मंदिर भूकंप के कारण पूरी तरह से नष्ट हो गया था, जिसे प्रशासन द्वारा 1920 में दोबारा बनवाया गया था।
पिंडी रूप में विराजमान हैं मां
ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं, मंदिर के गर्भगृह में तीन पिंडी हैं, पहली मां ब्रजेश्वरी, दूसरी मां भद्रकाली, तीसरी सबसे छोटी पिंडी एकादशी माता के रूप में है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन चावल नहीं खाने चाहिए पर इस मंदिर में मां एकादशी खुद मौजूद है, इसलिए उन्हें प्रसाद के रूप में चावल ही चढ़ाए जाते हैं। मंदिर में विशालकाय मुख्यद्वार है, इसके भीतर जाते ही नगाड़े, पीपणी, ढोल तथा दूसरे वाद्य वादकों के बैठने का ऊंचा स्थान है। मंदिर का सभा मंडप कई खंभों पर टिका है। मंदिर के गुंबद, कलश, स्तंभ, और मुख्य द्वार मध्यकाल की वास्तु कला का परिचय देते हैं। मुख्यद्वार चांदी से मढ़े हैं, जिन पर देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। द्वार के निकट ही गंगा और यमुना की मूर्तियां स्थापित हैं।
मां ने किया था मक्खन का लेप
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दैत्य महिषासुर के वध के बाद देवी मां ने यहां अपने शरीर के जख्मों पर मक्खन का लेप किया था। जिस दिन मां ने मक्खन लगाया था, उस दिन देवी की पिंडी को पूरी तरह मक्खन से ढंका जाता है और सप्ताह भर उत्सव मनाया जाता है। एक कक्ष में जालंधर दैत्य को कुचलने की मुद्रा में देवी प्रतिमा है। मंदिर के इसी प्रांगण में भैरव बाबा की पांच हज़ार साल पुरानी मूर्ति भी है। मंदिर के मुख्य द्वार पर ध्यानु भगत ने अकबर के समय देवी को अपना शीश चढ़ाया था।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी सती अपने पिता द्वारा अपने पति शिव के अपमान के कारण यज्ञ कुंड में कूद गईं थीं, जिसके कारण शिव ने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाया और क्रोधित हो तांडव करने लगे। तब शिव के क्रोध से सृष्टि का संहार रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती का शरीर 51 भागों में काटा। जहां-जहां सती के अंग कट कर गिरे वहां शक्तिपीठ बने। इस स्थान पर सती का अंग कट कर गिरा था और यह शक्तिपीठ बना। यहां माता, भगवान शिव के रूप भैरवनाथ के साथ विराजमान हैं। मंदिर के पास ही बाणगंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है।

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