बंगाल में बीजेपी की सरकार भी बनेगी, CAA भी लागू होगा : अमित शाह
नई दिल्ली
नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लागू करने का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद अब ये देशभर में लागू हो गया है. लेकिन विपक्षी दल लगातार सीएए के विरोध में आवाज उठा रहे हैं. ऐसे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि विपक्ष के पास कोई दूसरा काम नहीं है. सीएए को कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा.
सीएए के जरिए नया वोट बैंक तैयार करने के विपक्ष के आरोपों पर अमित शाह ने कहा कि उनकी हिस्ट्री है, जो बोलते हैं वो करते नहीं है, मोदी जी की हिस्ट्री है जो बीजेपी या पीएम मोदी ने कहा वो पत्थर की लकीर है. मोदी की हर गारंटी पूरी होती है.
शाह ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि विपक्ष के पास कोई दूसरा काम नहीं है. उन्होंने तो ये भी कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक में भी राजनीतिक लाभ है तो क्या हमें आतंकवाद के खिलाफ एक्शन नहीं लेना चाहिए था? विपक्ष ने तो आर्टिकल 370 हटाने को भी राजनीतिक लाभ से जोड़ा था. हम 1950 से कह रहे हैं कि हम आर्टिकल 370 हटाएंगे. उनकी हिस्ट्री है जो बोलते हैं करते नहीं है, मोदी जी की हिस्ट्री है जो बीजेपी या पीएम मोदी ने कहा वो पत्थर की लकीर है. मोदी की हर गारंटी पूरी होती है.
'CAA को लेकर विपक्ष के मंसूबे पूरे नहीं होंगे'
विपक्षी इंडिया गठबंधन के इस बयान पर कि केंद्र की सत्ता में वापसी करने पर वे सीएए को निरस्त कर देंगे. इसके जवाब में शाह ने कहा कि विपक्ष को भी पता है कि सत्ता में आने की उनकी संभावनाएं बहुत कम हैं.
शाह ने कहा कि विपक्षी गठबंधन को भी पता है कि उसकी सत्ता में वापसी नहीं होगी. सीएए को बीजेपी पार्टी लेकर आई है और मोदी सरकार में इसे लागू किया गया. इसे निरस्त करना नामुमकिन है. हम पूरे देश में इस कानून को लेकर जागरूकता बढ़ाएंगे ताकि जो लोग इसके निरस्त करना चाहते हैं, वे अपने मंसूबों में कामयाब ना हों.
'यह कानून असंवैधानिक नहीं है'
अमित शाह ने सीएए के असंवैधानिक होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता.
उन्होंने कहा कि वे हमेशा आर्टिकल 14 की बात करते हैं. लेकिन भूल जाते हैं कि इस आर्टिकल में दो क्लॉज हैं. यह कानून आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं करता. यह कानून उन लोगों के लिए है, जो बंटवारे के दौरान पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश में रहे और उन्हें वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और वे भारत आना चाहते हैं.
लोकसभा चुनाव से पहले सीएए का नोटिफिकेशन जारी करने के विपक्ष के दावे पर अमित शाह ने कहा कि सबसे पहले तो सीएए का नोटिफिकेशन जारी करने की टाइमिंग के बारे में बताना चाहूंगा. राहुल गांधी, ममता और केजरीवाल सहित पूरा विपक्ष झूठ की राजनीति कर रहा है इसलिए यहां टाइमिंग का सवाल नहीं उठता.
शाह ने कहा कि बीजेपी ने 2019 के अपने मैनिफेस्टो में भी स्पष्ट किया था कि हम सीएए लेकर आएंगे और पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेस के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देंगे. बीजेपी का एजेंडा स्पष्ट था और अपने वादे के तहत 2019 में संसद के दोनों सदनों में सीएए को पारित किया गया. लेकिन कोरोना की वजह से इसमें देरी हो गई. चुनाव में जनाधार मिलने से पहले से ही सीएए को लेकर बीजेपी का एजेंडा स्पष्ट था.
उन्होंने कहा कि नियम अब एक औपचारिकता है. इसमें टाइमिंग, राजनीतिक लाभ या हानि का कोई सवाल नहीं है. अब विपक्ष तुष्टिकरण की राजनीति कर अपना वोट बैंक बनाना चाहता है. मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि उनका पर्दा अब फाश हो चुका है. सीएए अब पूरे देश के लिए है और मैं पिछले चार साल में लगभग 41 बार कह चुका हूं कि सीएए एक वास्तविकता बनेगा.
'अल्पसंख्यकों को CAA से डरने की जरूरत नहीं है'
इस कानून को लेकर विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए शाह ने कहा कि मैं सीएए को लेकर कम से कम 41 बार अलग-अलग प्लेटफॉर्म से कह चुका हूं कि देश के अल्पसंख्यकों को इससे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस कानून में देश के नागरिकों की नागरिकता लेने का कोई प्रावधान नहीं है. सीएए का उद्देश्य तीन देशों के हिंदुओं, सिखों, जैनियों, बौद्धों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देना है.
अमित शाह की ममता बनर्जी को दो टूक
शाह ने सीएए नोटिफिकेशन को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर कहा कि वो दिन दूर नहीं है, जब बीजेपी बंगाल में भी सत्ता में आएगी और घुसपैठ को रोक देगी. अगर आप इस तरह की राजनीति करते हो और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर तुष्टिकरण की राजनीति कर घुसपैठ होने देते हो और शरणार्थियों को नागरिकता देने का विरोध करते हैं तो देश की जनता आपके साथ नहीं है.
उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी शरण लेने और घुसपैठ करने के अंतर को नहीं समझती. सीएए को कभी वापस नहीं लिया जाएगा. हमारे देश में भारतीय नागरिकता सुनिश्चित करना हमारा संप्रभु अधिकार है, हम इस पर समझौता नहीं करेंगे.
क्या है CAA?
नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया. और फिर चुनाव आ गए.
दोबारा चुनाव के बाद नई सरकार बनी, इसलिए दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में फिर पेश किया गया. इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 10 जनवरी 2020 से ये कानून बन गया था.
नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगा. कानून के मुताबिक, जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में बस गए थे, उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी.
CAA का विरोध क्यों?
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है. विरोध करने वाले इस कानून को एंटी-मुस्लिम बताते हैं. उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है? इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा?
इस पर सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है. इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं. इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है.
कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों.