राम मंदिर के लिए करीब 500 वर्षों तक चले संघर्ष के बाद मंदिर आंदोलन के ये 21 चेहरे किए गए याद, पर जीते जी साकार नहीं हुआ सपना, कार्ड में सबका जिक्र
नई दिल्ली
राम मंदिर के लिए करीब 500 वर्षों तक चले संघर्ष के बाद अब 22 जनवरी, 2024 को ऐतिहासिक अवसर आ रहा है। इस दिन पीएम नरेंद्र मोदी की यजमानी में रामलला की प्रतिष्ठा होगी और वे भव्य मंदिर में विराजेंगे। इस आयोजन में करीब 6000 लोगों को आमंत्रित किया गया है और उन तक कार्ड पहुंचने लगे हैं। इस कार्ड के साथ एक पुस्तिका भी दी जा रही है, जिसमें राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख स्तंभ रहे लोगों को याद किया गया है। इनमें कुछ ऐसे चेहरे भी हैं, जो आंदोलन में नींव की ईंट की तरह अहम थे, लेकिन कभी ज्यादा चर्चा में नहीं रहे।
देवरहा बाबा
पुस्तिका के अनुसार 7 अक्टूबर, 1984 से शुरू हुआ मंदिर आंदोलन राम जन्मभूमि के लिए चला 77वां संघर्ष था। उससे पहले भी 76 संघर्ष हो चुके थे। 1984 के बाद और उससे पहले जिन लोगों ने योगदान दिया, उनमें से कई विभूतियां अब जिंदा नहीं हैं। लेकिन उनका सपना आज करोड़ों लोग साकार होते देख रहे हैं। इनमें से ही एक हैं, देवरहा बाबा। वह विश्व हिंदू परिषद में भी रहे थे और 1989 के प्रयाग महाकुंभ में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को गति देने का आह्वान किया था।
महंत अभिराम दास
रामलला की प्रतिमा 22-23 दिसंबर, 1949 की रात को श्रीरामजन्मभूमि पर प्रकट हुई थी। इस प्रतिमा के प्राकट्य के महानायाक महंत अभिरामदास जी महाराज माने जाते हैं। वह अयोध्या के हनुमानगढ़ी में उज्जैनिया पट्टी के नागा साधु थे। वह रामानंदी संप्रदाय के उन युवा साधुओं में अग्रणी थे, जिन्होंने आजादी के तुरंत बाद रामलला की जन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्रयास किए।
महंत रामचंद्र दास
रामानंदी दिगंबर अनी अखाड़े के श्रीमहंत रामचंद्रदास परमहंस महाराज को भी इसमें शामिल किया गया है। उन्होंने श्रीरामजन्मभूमि पर लगे ताले को न खोलने पर आत्मदाह की धमकी दे दी थी और फिर 1949 से लगा ताला 1 फरवरी, 1986 को खुला था।
आरती का आदेश देने वाले केके नायर
केके नायर 1949-50 के दौर में फैजाबाद के जिलाधीश थे। इसी समय जन्मभूमि रामलला की प्रतिमा प्रकट हुई थी। उनके ही आदेश पर जन्मस्थान पर भोग आरती शुरू हुई थी और एक पुजारी की नियुक्ति हुई थी।
मंदिर के पक्ष में रिपोर्ट देने वाले सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त
ठाकुर गुरुदत्त सिंह फैजाबाद के 1950 में सिटी मजिस्ट्रेट थे। उन्होंने 10 अक्टूबर 1950 को कलेक्टर को यह रिपोर्ट सौंपी थी कि तथाकथित मस्जिद को हिंदू समाज श्रीराम जन्मभूमि मानता है। वहां मंदिर बनाना चाहते हैं। नजूल की जमीन है और उसमें मंदिर निर्माण के लिए देने में कोई रुकावट नहीं है।
गोपाल विशारद ने किया था पहला मुकदमा
जन्मभूमि पर रामलला की प्रतिमा मिलने के बाद पहला मुकदमा गोपाल सिंह विशारद ने ही दायर किया था। वह हिंदू महासभा के कार्यकर्ता थे। 16 जनवरी, 1950 को उन्होंने पूजा के अधिकार के लिए केस फाइल किया था।
दाऊ दयाल खन्ना के 1983 वाले ऐलान का स्मरण
दाऊ दयाल खन्ना ने 1983 में यूपी के ही मुजफ्फरनगर में हुए हिंदू सम्मेलन में अयोध्या के अलावा मथुरा और काशी को भी मुक्त कराने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद 1984 में दिल्ली में हुई धर्म संसद में इसे मंजूर किया गया और आंदोलन का फैसला हुआ।
सीएम योगी के गुरु को भी किया गया याद
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के गुरु रहे महंत अवैद्यनाथ ने रामजन्मभूमि मुक्तियज्ञ की अध्यक्षता की थी। उनके नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ता का आंदोलन चला। उनके गुरु महंत दिग्विजय नाथ भी हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक थे।
कौन थे ओंकार भावे, जो आंदोलन की नींव में रहे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रचारक रहे और फिर बाद में वीएचपी का हिस्सा बने ओंकार भावे को भी याद किया गया है। वह श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष भी थे। उन्हें पर्दे के पीछे रहकर आंदोलन के लिए बड़े काम करने वाले लोगों में शुमार किया जाता है।
HC के चीफ जस्टिस जो बाद में बन गए रामसखा
इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे देवकीनंदन अग्रवाल भी इसमें शामिल हैं। वह रिटायरमेंट के बाद वीएचपी से जुड़ गए थे और उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने 1989 में रामसखा बनकर केस दायर किया था, जिसे कोर्ट ने मंजूर किया था। इसी केस में राम मंदिर निर्माण का फैसला अंत में आया।
स्वामी शिवरामाचार्य
श्रीरामजन्मभूमि ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष और अधिष्ठाता स्वामी शिवरामाचार्य महाराज थे। उनके ही नेतृत्व में 1989 में रामजन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास हुआ था।
शांतानंद सरस्वती और मध्वाचार्य विश्वेश तीर्थ
इस पुस्तिका में स्वामी शांतानंद सरस्वती और स्वामी मध्वाचार्य विश्वेश तीर्थ जी महाराज को भी याद किया गया है।
विष्णुहरि डालमिया ने कृष्णजन्मभूमि के लिए भी किया योगदान
कारोबारी और वीएचपी के अध्यक्ष रहे विष्णुहरि डालमिया को भी याद किया गया है। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन के अलावा कृष्ण जन्मभूमि के लिए भी योगदान दिया। वहां आसपास की जमीन को खरीद कर उसमें मंदिर बनवाया।
स्वामी वामदेव और सत्यमित्रानंद गिरी
अखिल भारतीय संत समिति के संस्थापक स्वामी वामदेव को भी इसमें जगह मिली है। उनके अलावा स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी का भी स्मरण किया गया है।
RSS के तीसरे सरसंघचालक बालासाहेब देवरस
आरएसएस के तीसरे सरसंघचालक रहे बालासाहेब देवरस का भी स्मरण किया गया है। उनका वास्तविक नाम मधुकर दत्तात्रेय देवरस था। उनके ही नेतृत्व में आरएसएस राम मंदिर आंदोलन में कूदा था। वह इस पूरे आंदोलन के मार्गदर्शक माने जाते हैं।