ताजिकिस्तान: मुस्लिम देश ने हिजाब और दाढ़ी पर लगाया बैन, मुस्लिम समुदाय के बीच व्यापक चर्चा और असंतोष का कारण बना
ताजिकिस्तान
ताजिकिस्तान ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और विवादित कानून लागू किया है जो देश के मुस्लिम समुदाय के बीच व्यापक चर्चा और असंतोष का कारण बन गया है। इस नए कानून के तहत, महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं है और पुरुषों को दाढ़ी बढ़ाने की अनुमति नहीं दी गई है। इस कानून के उल्लंघन पर भारी जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान है।
धार्मिक कट्टरपंथ को रोकने का उद्देश्य
राष्ट्रपति इमामाली रहमोन के नेतृत्व में, ताजिकिस्तान सरकार ने यह कदम धार्मिक कट्टरपंथ को रोकने के उद्देश्य से उठाया है। रहमोन का मानना है कि इस्लामिक पहचान को सीमित करने से देश में बढ़ते कट्टरपंथ और चरमपंथ को नियंत्रित किया जा सकेगा। ताजिकिस्तान, एक मुस्लिम बहुल देश है जहां लगभग 98 प्रतिशत आबादी इस्लाम धर्म को मानती है।
नए कानून के तहत नियम और सजा
नए नियम के अनुसार, महिलाओं को अब हिजाब पहनने की अनुमति नहीं होगी और पुरुषों को सार्वजनिक स्थानों पर दाढ़ी रखने की इजाजत नहीं होगी। अगर कोई व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करता है, तो उसे भारी जुर्माना और जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है। जुर्माना राशि एक लाख रुपये से भी अधिक हो सकती है, जबकि ताजिकिस्तान में औसत मासिक वेतन केवल 15 हजार रुपये के आसपास है। इस कारण से, जुर्माना राशि को लेकर जनता में व्यापक असंतोष है।
जनता ने व्यक्त की तीव्र प्रतिक्रिया
नए कानून के लागू होने के बाद, ताजिकिस्तान की जनता ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राजधानी दुशांबे की एक शिक्षिका निलोफर ने साझा किया कि पुलिस ने उन्हें हाल ही में तीन बार हिजाब उतारने के लिए कहा। जब उन्होंने हिजाब उतारने से इंकार किया, तो पुलिस ने उन्हें रातभर थाने में रखा। उनके पति को भी दाढ़ी काटने से मना करने के कारण पांच दिनों तक जेल में रहना पड़ा। इन घटनाओं ने निलोफर और उनके परिवार के जीवन पर गंभीर असर डाला है और कई लोग इस कानून के खिलाफ खुलकर विरोध जता रहे हैं।
क्या है इस कानून पर विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह नया कानून कट्टरपंथ को रोकने में अधिक विफल साबित हो सकता है। वे मानते हैं कि सरकार के द्वारा उठाए गए इस कदम से कट्टरपंथ की समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि यह और अधिक असंतोष और सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है। मानवाधिकार विशेषज्ञ लरिसा अलेक्जांडरोवा ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि देश को गरीबी, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता जैसे असली मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, बजाय इसके कि वे केवल सतही उपायों पर ध्यान केंद्रित करें।
धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर गंभीर चिंता
ताजिकिस्तान का यह नया कानून अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कर रहा है, खासकर उन देशों में जहां धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई जाती है। अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमाओं से घिरा यह देश, आतंकवादी घटनाओं के कारण अंतरराष्ट्रीय निगरानी में है। मार्च 2024 में मॉस्को में हुए आतंकी हमले में ताजिक मूल के आतंकवादियों के शामिल होने के बाद, ताजिकिस्तान ने इस्लामिक पहचान पर लगाम लगाने की कोशिश की है। इस नए कानून के लागू होने के बाद ताजिकिस्तान में सामाजिक और धार्मिक विवादों का बढ़ना तय है, और इसके प्रभावों पर भविष्य में बहस जारी रह सकती है। यह कानून देश की सामाजिक धारा को बदलने का प्रयास है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली समस्याएं और विवाद यह दिखाएंगे कि क्या यह उपाय वास्तव में सफल होता है या नहीं।