देश

श्रीवृंदावन धाम में साल में केवल एक बार होती है मंगला आरती

वृंदावन.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्री वृंदावन धाम के कण-कण में बसी भक्ति पूरे चरम पर है। वैसे तो देशभर के साथ-साथ विदेशों में भी जन्माष्टमी के पर्व की धूम है, लेकिन बात जब वृंदावन की हो, तो यहां श्रीकृष्ण की भक्ति का महासागर उमड़ पड़ता है। देश-विदेश के श्रद्धालुओं का यहां पहुंचने का क्रम हर क्षण बढ़ता जा रहा है। वृंदावन की गलियों में बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों, सभी के हृदय से उठने वाला राधे-राधे का स्वर एक नाद का स्वरूप लेता जा रहा है।

कान्हा के जन्मोत्सव की तैयारियों में वृंदावन की रज, पताकाएं और हवाएं सभी भगवान श्रीकृष्ण भक्ति को नित नई ऊंचाइयां प्रदान कर रही हैं। धार्मिक नगरी वृंदावन और श्री बांके बिहारी जी मंदिर एक-दूसरे के पर्याय हैं। सबसे खास बात यह है कि हर मंदिर में मंगला आरती (सुबह चार बजे के बाद होने वाली आरती) अनिवार्य रूप से होती है, लेकिन श्री बांके बिहारी जी मंदिर में वर्ष में केवल एक बार ही मंगला आरती की जाती है, वह भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर। श्री बांके बिहारीजी मंदिर के प्रवक्ता श्रीनाथ गोस्वामी के अनुसार पांच दशक पहले तक यहां भी मंगला आरती होती थी, लेकिन उनके पूर्वजों ने यह निर्णय किया कि सुर-संगीत के आधार पर ही प्रभु का प्राकट्य हुआ है और भगवान श्रीकृष्ण निधि वन में राधा रानी, सखियों के साथ नियमित रूप से रास रचाते हैं। ऐसे में मंगला आरती के कारण भगवान को रासलीला छोड़कर बीच में ही मंदिर आने में कष्ट होता है। इसीलिए मंदिर में हर रोज होने वाली मंगला आरती बंद कर दी गई। प्रवक्ता गोस्वामी ने बताया कि श्री विष्णु स्वामी संप्रदाय (सखी) के स्वामी हरिदासजी ने भगवान श्रीकृष्ण की इस छवि को निधि वन में अनुभव किया। श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और तानसेन व बैजू बावरा के गुरु रहे स्वामी हरिदासजी ने संगीत के स्वरों के आधार पर अपने आराध्य का प्राकट्य कराया। वर्ष 1860 में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। निम्बार्क पंथ के स्वामी हरिदासजी ने भक्ति मार्ग में सुर-संगीत को अपनाया और प्रभु की प्राप्ति की। इसके बाद स्वामी हरिदासजी के अनुयायियों ने वर्ष 1921 में श्री बांके बिहारी जी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। वंश परंपरा के तहत वर्तमान में यहां 18, 19 व 20वीं पीढ़ी के परिजन सेवा-सुश्रुषा कर रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button