लैंसेट चाइल्ड एंड एडोल्सेंट हेल्थ मैगजीन में आई स्टडी में खुलासा
एक अध्ययन के मुताबिक, युवाओं को मोटापे के इलाज के लिए कराया गया ऑपरेशन उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर नहीं बनाता है, भले ही उनका वजन काफी कम हो जाए। यह अध्ययन लैंसेट चाइल्ड एंड एडोल्सेंट हेल्थ नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में स्वीडन के लुंड यूनिवर्सिटी और कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने 2007 से 2017 के बीच मोटापे के ऑपरेशन कराने वाले सभी युवाओं के ऑपरेशन से पहले और बाद के मानसिक स्वास्थ्य का अध्ययन किया।
नतीजों से पता चला कि ऑपरेशन कराने वाले युवाओं को ऑपरेशन से पांच साल पहले ही मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इलाज और दवाइयां लेनी पड़ रही थीं। लुंड यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर काजसा जार्व्होलम ने कहा, हालांकि आमतौर पर 15 से 21 साल की उम्र के बीच मानसिक बीमारी बढ़ती है, लेकिन इस समूह के लिए इलाज की जरूरत आम युवाओं की तुलना में तेजी से बढ़ी। दुर्भाग्य से, यह पैटर्न मोटापे के ऑपरेशन के बाद भी जारी रहा, जिन युवाओं का ऑपरेशन हुआ था, उन्हें अपने साथियों की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य उपचार की अधिक आवश्यकता थी।
कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में क्लिनिकल महामारी विज्ञान के प्रोफेसर मार्टिन नियोवियस ने कहा, मोटापे के ऑपरेशन से वजन, ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर कंट्रोल पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, लेकिन जब मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है, तो यह मोटापे के ऑपरेशन के बाद बेहतर या बदतर नहीं होता है। इसके अलावा, निष्कर्षों में ऑपरेशन कराने वाले समूह में शराब की लत लगने की समस्या में भी बढ़ोतरी दिखाई दी, दोनों ऑपरेशन से पहले की तुलना में और सामान्य युवाओं की तुलना में।