बच्चों की आंख, कान, दिमाग एवं व्यवहार को लील रहा मोबाईल
जाने माने चिकित्सकों नें चिंता जताई, बच्चों के माता-पिता नहीं चेते तो हालत बिगड़ेंगी
Realindianews.com
भोपाल। तेजी से बड़े मोबाईल के चलन नें बच्चों का सब कुछ छीन सा लिया है। प्रदेश के सत्तर फीसदी बच्चे मोबाईल के गुलाम से हो गये है। उन्हें हर वक्त अपने पास मोबाईल चाहिए। जिस कारण बच्चों के आंख, कान, दिमाग के साथ शरीर के सभी अंग तेजी से खराब होते जा रहे हैं। यह बात रियल इंडिया न्यूज के संवाददाता से एक मुलाकात में प्रदेश के प्रतिष्ठित चिकित्सकों नें कही है। उनका कहना है कि जिस तेजी से मोबाईल का चलन बढ़ा है उसी तेजी से बच्चों के शरीर के सभी अंगों में बदलाव आया है। इस समस्या से जूझ रहे बच्चों के परिजन परेशान है। अधिकतर परेशान बच्चों के परिजन चिकित्सकों का सहारा ले रहे हैं।
बच्चों को कम उम्र में मोबाईल देना
जानकारों ने बताया कि गेम खेलने के लिए बच्चों के हाथ में कम उम्र में मोबाइल थमा देते हैं। मोबाइल-वीडियो गेम का स्वभाव बच्चों पर अधिक प्रभाव डालता है क्योंकि गेम खेलते समय आपका पूरा ध्यान टास्क पर होता है। ऐसे में अगर इसकी प्रवृत्ति हिंसक पिटाई गोली चलाने की हो तो यह बच्चे के मन को उसी के अनुसार बदलने लगती है।
बचपन में जो देखा या सुना जाता उसका असर दिमाग पर पड़ता
जानकार का कहना है कि बचपन में हम जिस तरह की चीजें ज्यादा देखते, सुनते और पढ़ते हैं, उसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बच्चों की मोबाइल फोन पर अधिक समय बिताने की आदत को कई तरह से हानिकारक मानते हैं। मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से मस्तिष्क और शरीर के अन्य हिस्सों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
मोबाईल पर अधिक समय देना बच्चों के लिए हानि कारक
प्रदेश के सतना में रहने वाले शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश अग्रवाल बताते हैं कि बच्चों में नया सीखने की क्षमता अधिक होती है। बच्चे स्वाभाविक रूप से कुछ समझने की तुलना में चीजों को देखने में अधिक कुशल होते हैं। ऐसे में अगर बच्चा मोबाइल फोन पर ज्यादा समय बिता रहा है, साथ ही वह गेम पर ज्यादा समय बिताता है तो इसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है।
उनका कहना है कि मोबाइल-वीडियो गेम का स्वभाव बच्चों पर अधिक प्रभाव डालता है क्योंकि गेम खेलते समय उनका पूरा ध्यान टास्क पर होता है। ऐसे में अगर इसकी प्रवृत्ति हिंसक, पिटाई, गोली चलाने की हो तो यह बच्चे के मन को उसी के अनुसार बदलने लगती है। रोजाना घंटों मोबाइल में ऐसे गेम्स पर समय बिताने से बच्चे इसके आदी हो जाते हैं। वे उस खेल के बिना नहीं रह सकते, जिसके दौरान जो कोई भी उन्हें उस खेल से दूर भगाने की कोशिश करता है, वह बच्चों का दुश्मन बन जाता है। बच्चों को इस तरह के विकारों से मुक्त रखने के लिए जरूरी है कि माता-पिता बच्चों की निगरानी करते रहें। आप देखें कि बच्चे कैसा व्यवहार कर रहे हैं, वे किस तरह के खेल खेल रहे हैं, वे दूसरों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं।
बच्चों को कम नींद आ रही
डॉ. राकेश अग्रवाल का कहना है कि मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में नींद की कमी और नींद की गुणवत्ता में गिरावट जैसी समस्याएं ज्यादा देखी गई हैं। सेल फोन से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन में बाधा डालती है। मेलाटोनिन वह हार्मोन है जो नींद-जागने के चक्र को नियंत्रित करता है। जब यह हार्मोन असंतुलित हो जाता है तो इससे नींद संबंधी विकारों की शिकायत बढ़ जाती है। नींद की कमी कई तरह की गंभीर बीमारियों का कारक बनती है।
सभी वर्गों के लिए भी हानिकारक मोबाईल का अधिक इस्तेमाल
प्रदेश के जाने माने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण श्रीवास्तव का कहना है कि सभी आयु वर्ग के लोगों में मोबाइल के बढ़ते इस्तेमाल को मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी हानिकारक माना गया हैं। पहले के जमाने में बच्चे बाहर खेलते थे, प्रकृति से जुड़ाव रखते थे, एक-दूसरे से मिलते थे। वहीं अब मोबाइल ने इन सभी आदतों को सीमित कर दिया है, ऐसे में बच्चों में कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं विकसित होने लगी हैं। यही कारण है कि आज के बच्चे एक दशक पहले के बच्चों की तुलना में अधिक आक्रामक, झगड़ालू, सुस्त और बातूनी और चिड़चिड़े प्रवृत्ति के होते जा रहे हैं।
भूलकर भी माता-पिता ना करें ये गलती
चिकित्सक डॉ. ज्ञानेश गौतम के मुताबिक माता-पिता कुछ आराम करने, बच्चों को खिलाने या बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल दे देते हैं। यह धीरे-धीरे बच्चों की लत बन जाती है, एक ऐसी लत जिसके बिना बच्चे नहीं रह सकते। पता ही नहीं चलता कि विश्राम के लिए विनाश की चाबी बच्चों के हाथ में रख दी है। मोबाइल ने बच्चों के जन्मजात स्वभाव को खत्म कर दिया है। बच्चे, बच्चे कम परिपक्व होते जा रहे हैं। मसलन हमने अपने छोटे से आराम की तलाश में बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है, इसके दुष्परिणाम आए दिन सामने आते रहते हैं।
सोशल मीडिया बना नींद का दुश्मन
अच्छी सेहत का राज होता है, एक अच्छी नींद लेकिन आजकल लोगों के लिए एक अच्छी नींद लेना मुश्किल हो गया है। कम नींद आने की मुख्य वजह फोन की लत बताई जा रही है। आज-कल सोशल मीडिया के बहुत अधिक इस्तेमाल की वजह से बच्चे लगभग एक पूरी रात की नींद खोते जा रहे हैं। एक अध्ययन में बच्चों की नींद को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। आमतौर पर बच्चे 12 घंटे की बजाए मात्र 8 घंटे की ही नींद ले पाते हैं।
कौन सी सोशल मीडिया पर बच्चे रहते है सक्रिय
शोध में ये बात भी पता चली कि बच्चे अलग-अलग मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुद को व्यस्त रखते है। इनमें वीडियो शेयरिंग ऐप टिक-टॉक भी है। 57 प्रतिशत लोगों ने फोटो-शेयरिंग साइट इंस्टाग्राम, 17 प्रतिशत रेडिट फोरम और 2 प्रतिशत से कम लोगों ने फेसबुक का इस्तेमाल किया।
इनका कहना है-
- मोबाईल का उपयोग बच्चों के लिए घातक है। दिमाग, आंख एवं शरीर की ग्रोथ व गर्दन में दर्द, रीड़ की हड्डी टेड़ी होना है। मोबाईल से निकलने वाली रेज से आंखे कमजोर हो जाती है। बच्चें मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। बच्चों को भोजन ग्रहण करते समय मोबाईल एवं टीव्ही देखने से रोकना चाहिए। क्योंकि बच्चों का ग्रोथ रुक जाता है। बच्चों के परिजनों को इस ओर ध्यान देने की जरुरत है।
-डॉ. प्रवीण श्रीवास्तव, सीनियर हड्डी रोग विशेषज्ञ
-मोबाईल का उपयोग अधिक होने से बच्चों का सब कुछ बिगड़ गया। जिस कारण माताएं जब सब कुछ बिगड़ जाता है तब परेशान होकर चिकित्सकों के पास आती हैं। बच्चों को प्रारंभ में ही मोबाईल के दुष्परिणामों को परिजनों को बताना चाहिए। मोबाईल लेकर बच्चे भोजन करते हैं जिस कारण उनका ग्रोथ नहीं होता है। बच्चे शोषल कार्यों से दूर हो गये हैं। बच्चों को मोबाईल से कम खेलकूद से जुडऩा होगा। मोबाईल से जुडऩे के कारण बच्चे शारीरिक, मानसिक के साथ शोसल एक्टिविटी से दूर होते जा रहे हैं।
-डॉ. राकेश अग्रवाल, शिशुरोग विशेषज्ञ - बच्चों में मोबाईल की लत नें सब कुछ बिगाड़ दिया है। मेरे पास ऐसे बच्चे आते हैं जो बिना मोबाईल के न पढ़ते हैं और न कुछ खाते हैं जिस कारण उनके दिमाग एवं शरीर पर विपरीत असर पड़ता है। जरुरत है बच्चों को मोबाईल से धीरे-धीरे दूर करने की। उन्हें जरुरत के हिसाब से कुछ समय दें लेकिन अधिक समय पर रोक लगाकर उन्हें शारीरिक खेलकूद से जोडऩे की जरुरत है।
- डॉ. ज्ञानेश गौतम, चिकित्सक