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मध्यप्रदेश में आदिवासी सियासत और मोदी का शहडोल दौरा

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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की अनुमानित तस्वीर कांटेदार मुकाबले की दिख रही हो, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रदेश दौरा खासा मायने रखता है, विशेषकर उस राज्य के लिए जहां सत्ता की चाबी आदिवासी समुदाय के हाथों में हो। शहडोल के पकरिया और लालपुर में प्रधानमंत्री मोदी आदिवासी समुदाय को संबोधित करने सहित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होंगे। जैसा कि उनका अंदाज है वह आदिवासियों के साथ भोजन और संवाद भी कर सकते हैं। मोदी मैजिक की आस में भाजपा है, तो कांग्रेस खेमा पूरी तरह सतर्क, क्योंकि बीते राष्ट्रपति चुनाव से लेकर विभिन्न आदिवासी मुद्दों पर मोदी की मजबूत किलेबंदी से कांग्रेस को खासी मात खानी पड़ी है। आदिवासी समुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों और विभूतियों की स्मृतियों को नमन करने की कवायद जनजातीय गौरव दिवस की शुरुआत करनी थी, तब भी करीब डेढ़ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश को चुना था। भोपाल में इसके शुभारंभ के साथ देश के पहले विश्वस्तरीय सुविधाओं वाले रेलवे स्टेशन का नामकरण गोंड रानी कमलापति के नाम पर किया था।
भाजपा ने 51 प्रतिशत वोट शेयर को बनाया लक्ष्य
दरअसल, चुनावों में अजेय बनने की दिशा में भाजपा ने 51 प्रतिशत वोट शेयर को लक्ष्य बना लिया है, ऐसे में मध्यप्रदेश सहित कई ऐसे राज्य हैं, जहां आदिवासी समुदाय को अपने पाले में लाना अनिवार्य होगा। आदिवासी आबादी के लिहाज से देखें तो ये मणिपुर में 41 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 34 प्रतिशत, त्रिपुरा में 32 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 23 प्रतिशत और गुजरात में 15 प्रतिशत है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आदिवासी का साथ भाजपा के लिए बेहद जरूरी होगा। 2014 में भाजपा ने एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 47 में से 27 सीटें जीती थीं। 2019 में बढ़कर 31 हो गईं। 2009 में भाजपा को 13 सीटें ही आई थीं। अब भाजपा की नजर लोकसभा की एसटी आरक्षित उन सीटों पर है, जहां वह दूसरे नंबर पर या बहुत कम अंतर से हारी थी। जैसे छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट भाजपा महज 4.3 प्रतिशत के अंतर से हारी थी। इसी तरह ओडि़शा की क्योंझर सीट भाजपा 5.6 प्रतिशत के अंतर से हार गई। इसी राज्य में कोरापुट सीट भाजपा 0.3 प्रतिशत के मामूली अंतर से हार गई थी।
प्रधानमंत्री मोदी का मध्यप्रदेश दौरा खास मायने रखता
राष्ट्रीय फलक पर विपक्ष की एकजुटता के प्रयासों के बीच भी प्रधानमंत्री मोदी का मध्यप्रदेश दौरा खास मायने रखता है। याद कीजिए जनजातीय गौरव दिवस के शुभारंभ पर मोदी का भाषण, जिसमें आदिवासी योद्धाओं का याद करते हुए उन्होंने आजादी के बाद जनजातीय गौरव को विस्मृत करने के आरोपों से कांग्रेस पर जमकर हमले किए थे। मोदी ने कहा था कि आजादी के संग्राम में देशभर के आदिवासी समुदायों ने संघर्ष किया था, लेकिन स्वतंत्रता के इतिहास में इन नायकों को महत्व न देकर एक ही परिवार को महिमामंडित किया गया। अब नजर राष्ट्रपति पद के चुनाव पर भी डालें तो भाजपा की मजबूत रणनीति का सामना होता है। इस चुनाव में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को उतारना भी प्रधानमंत्री मोदी का मास्टर स्ट्रोक था, जिसे विपक्षी दलों में क्रॉस वोटिंग के रूप में देश ने देखा था। तीसरे दौर के मतदान तक मुर्मू के लिए 17 सांसदों और 104 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी। असम में 22, छत्तीसगढ़ में 6, झारखंड में 10, मध्य प्रदेश में 19, महाराष्ट्र में 16, गुजरात में 10, अरुणाचल में एक, बिहार में 6, गोवा में 4, हरियाणा में एक, हिमाचल प्रदेश में 3 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी। ये संकेत करता है कि भाजपा ने आदिवासी समुदाय में पैठ के साथ दूसरा निशाना विपक्षी एकता में खलल के रूप में लगाया था। इस चुनाव के प्रभाव को समझने के लिए देखना होगा कि कैसे 2017 में रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाकर भाजपा को चुनावी लाभ मिल सका था। श्री कोविंद एससी समुदाय से हैं। उनके निर्वाचन के बाद 2019 आम चुनावों में इस वर्ग का भाजपा के लिए समर्थन करीब 10 प्रतिशत तक बढ़ा था। 2014 में एससी से 24 प्रतिशत वोट भाजपा को मिले थे, जबकि 2019 के चुनाव में बढ़कर करीब 34 प्रतिशत हो गया था। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के मुताबिक 2019 के आम चुनाव में भाजपा को एसटी से 38 प्रतिशत समर्थन मिला था, वहीं श्रीमती मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद भाजपा को उम्मीद है कि ये आंकड़ा 50 प्रतिशत को सहजता से पार कर जाएगा। कौन इनकार कर सकता है कि आदिवासी मतों के झुकाव गैर एनडीए दलों के समीकरण भी बदल दे।
राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाजपा ने अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित देखते हुए कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी होने के आरोप लगाए थे और इसे उन राज्यों में धार दी थी, जहां आदिवासी समुदाय की आबादी सत्ता के लिहाज से निर्णायक स्थिति में है। मध्यप्रदेश ही देखें तो आदिवासी लगभग 23 प्रतिशत हैं। यहां इस समुदाय का बड़ा चेहरा न होना पार्टी की कमजोर कड़ी है, जिसकी पूर्ति की कोशिशें जारी हैं। भाजपा अच्छी तरह जानती है कि आदिवासी समुदाय साथ न आने से उसे नुकसान हो सकता है। आंकड़ों में देखें तो वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का कुल वोट शेयर 42.5 प्रतिशत, वर्ष 2008 में 37.6 प्रतिशत, वर्ष 2013 में 45.7 प्रतिशत एवं वर्ष 2018 में घटकर 41.5 प्रतिशत हो गया था। अब भाजपा का लक्ष्य आदिवासी वोट को भी दस प्रतिशत बढ़ाने का है। इन आंकड़ों के आधार पर पुख्ता संकेत मिलते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्यप्रदेश दौरा भाजपा की उम्मीदें और कांग्रेस की धड़कनें बढ़ाने वाला हो सकता है।

  • आदित्य दीक्षित (स्वतंत्र लेखक)

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