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देश में खाना-पीना हो रहा महंगा, नवंबर 2023 के बाद से खाद्य महंगाई दर 8 फीसदी के ऊपर स्थिर

नईदिल्ली

भारत में खाना-पीना महंगा हो रहा है. नवंबर 2023 के बाद से खाद्य महंगाई दर 8 फीसदी के ऊपर बनी हुई है. एक साल में ही ये लगभग तीन गुना बढ़ गई है. मई 2023 में 2.91% थी, जो मई 2024 में बढ़कर 8.69% हो गई.

खाने का सामान कितना महंगा या सस्ता हुआ, इसे कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (CFPI) से मापा जाता है. मई 2024 में CFPI 8.69% था. इसका मतलब हुआ कि एक साल पहले जो सामान खरीदते थे, अब वही खरीदने के लिए 8.69% ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है.

इसे ऐसे समझिए कि अगर एक साल पहले खाने का कोई सामान खरीदने के लिए आपने 177.2 रुपये खर्च किए थे, तो अब उतना ही सामान खरीदने के लिए आपको 192.6 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.

क्यों महंगा हो रहा है खाना?

इसकी कई वजहें हैं. न्यूज एजेंसी के मुताबिक, फूड एक्सपोर्ट पर रोक और इम्पोर्ट पर टैरिफ कम करने का भी कुछ खास फायदा नहीं दिखा.

पिछले साल कई इलाकों में सूखा पड़ा था और इस साल ज्यादातर राज्यों में गर्मी ने कहर बरपाया, जिस कारण दालें, सब्जियां और अनाज जैसी खाद्य पदार्थों की सप्लाई में काफी कमी आई.

हालांकि, आमतौर पर गर्मियों में सब्जियों की सप्लाई कम हो जाती है, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही कमी आई. उसकी वजह ये रही कि देश के ज्यादातर हिस्से में तापमान सामान्य से 4 से 9 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा रहा.

चिलचिलाती गर्मी के कारण सब्जियां भी खराब हुईं और प्याज, टमाटर, बैंगन और पालक जैसी फसलों की बुआई में रुकावट आ रही है. आमतौर पर किसान मॉनसूनी बारिश से पहले सब्जियों की बुआई शुरू कर देते हैं, लेकिन इस साल गर्मी के कारण इस पर असर पड़ा है. इस कारण सब्जियों की कमी और बढ़ गई है.

एक साल में सब्जियां और दालें ही सबसे ज्यादा महंगी हुई हैं. इस साल मई में सब्जियों की महंगाई दर 27.33% और दालों की 17.14% रही. एक साल पहले तक जितनी सब्जियां 161 रुपये में खरीद सकते थे, अब उतनी ही खरीदने के लिए 205 रुपये रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.

क्या मॉनसून से मिलेगी कोई मदद?

भारत में जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में मॉनसून का सीजन होता है. इसे साउथ वेस्ट मॉनसून कहते हैं. भारत की सालभर की बारिश की लगभग 75% जरूरत साउथ वेस्ट मॉनसून से ही पूरी होती है.

इस साल मॉनसून ने समय से पहले एंट्री मारी. लेकिन अब भी देश के ज्यादातर हिस्सों तक मॉनसून पहुंचा नहीं है. यही कारण है कि अब भी ज्यादातर हिस्सा सूखा ही है. कमजोर मॉनसून के कारण फसलों की बुआई में भी देरी हो रही है.

जून में भले ही मॉनसून कमजोर रहा हो, लेकिन मौसम विभाग ने बाकी सीजन में सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान लगाया है.

अगर मॉनसून अच्छा होता है तो अगस्त में सब्जियों की कीमतों में गिरावट आने की उम्मीद है. हालांकि, जुलाई और अगस्त में अच्छी बारिश होती है और बाढ़ के हालात बनते हैं तो इससे प्रोडक्शन साइकल पर असर पड़ सकता है.

जल्द राहत की उम्मीद नहीं!

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सप्लाई चेन प्रभावित होने के कारण दूध, अनाज और दालों की कीमत में जल्द गिरावट आने की संभावना नहीं है. गेहूं की सप्लाई भी प्रभावित हो रही है और सरकार ने अब तक इसके इम्पोर्ट करने का कोई प्लान घोषित नहीं किया है, इसलिए गेहूं की कीमतें और बढ़ने का अनुमान है.

चावल की कीमतें भी कम होने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि सरकार ने हाल ही में इस पर एमएसपी 5.4% बढ़ा दी है. पिछले हफ्ते ही सरकार ने चावल पर मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) 2,183 रुपये से बढ़ाकर 2,300 रुपये की है.

अरहर जैसी दालों की आपूर्ति भी पिछले साल के सूखे की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई थी और जब तक नए सीजन की फसलों की कटाई नहीं जाती, तब तक इसमें सुधार होने की गुंजाइश नहीं है. चीनी की कीमतें भी ऊंची ही रहेंगी, क्योंकि कम बुआई के कारण अगले सीजन में प्रोडक्शन में गिरावट की आशंका है.

कितना महंगा हो रहा खाना?

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल हर महीने वेज और नॉनवेज थाली की कीमतों पर एक रिपोर्ट जारी करती है. रिपोर्ट बताती है कि वेज थाली महंगी तो नॉनवेज थाली सस्ती होती जा रही है.

क्रिसिल की रिपोर्ट बताती है कि मई में वेज थाली की औसत कीमत बढ़कर 27.8 रुपये हो गई. इससे पहले अप्रैल में वेज थाली की औसत कीमत 27.4 रुपये थी. जबकि, एक साल में वेज थाली की कीमत 9% महंगी हो गई है.

दूसरी तरफ, नॉन वेज थाली की औसत कीमत एक साल में 7% सस्ती हो गई है. मई में नॉनवेज थाली की औसत कीमत 55.9 रुपये रही, जबकि मई 2023 में ये 59.9 रुपये थी.

क्रिसिल ने वेज थाली में रोटी, सब्जी (प्याज, टमाटर और आलू), चावल, दाल, दही और सलाद शामिल किया है. वहीं, नॉनवेज थाली में दाल की जगह चिकन को शामिल किया गया है.

वेज थाली महंगी होने का कारण सब्जियां हैं. एक साल में टमाटर 39%, आलू 41% और प्याज 43% तक महंगा हो गया है. जबकि, नॉनवेज थाली के सस्ते होने की वजह ब्रॉयलर की कीमतों में गिरावट है. एक साल में ब्रॉयलर की कीमत 16% तक गिर गई हैं.

महंगाई के कारण ज्यादातर लोग ढंग का खाना भी नहीं खा पाते. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि 70% भारतीयों को हेल्दी डाइट नहीं मिल रही है. रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर भारत में एक दिन एक व्यक्ति हेल्दी डाइट लेता है, तो उसके लिए 2.9 डॉलर यानी 240 रुपये से ज्यादा खर्च करना होगा. इस हिसाब से हर दिन हेल्दी डाइट लेने के लिए एक व्यक्ति को महीनेभर में 7 हजार रुपये से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा.

 

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