भांजियों के लिए सीएम द्वारा बनाया गया छात्रावास 7 साल में हो गया बूढ़ा
प्राचार्य और यूजीसी इंचाज बदलने के बाद कुछ नहीं हो रहा

Realindianews.com । मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की भांजियों के लिए महाविद्यालय परिसर में रहकर पढ़ाई करने का विचार कर छात्रावास तैयार कराए थे लेकिन महाविद्यालय प्रबंधन की अदूरदर्शिता के चलते यह आज भी बंद पड़े। हालत यह हो चुकी है कि छात्रावास की खिड़की, दरवाजे, टाइल्स और दीवारें खराब हो चुकी हैं। प्रदेश के अकेले सतना के सबसे बड़े महाविद्यालय की बात करें तो यहां करीब 7 साल पहले छात्रावास बनाया गया था। यह छात्रावास जब से खड़ा है तब से इसमें भांजियों को प्रवेश नहीं दिया गया है। इसमें कभी तकनीकी पेंच तो कभी महाविद्यालय प्रबंधन की अनदेखी भारी पड़ती रही। इन दिनों हॉस्टल खुलने के कोई आदेश नहीं है लेकिन इससे पहले भी यह नहीं खोला जा सका है। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2015 में शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय सतना में कन्याओं के लिए छात्रावास बनाया गया है। इस छात्रावास के तन जाने के बाद भी यह कन्याओं को उपलब्ध नहीं हो सका है। इस बीच तीन प्राचार्य बदल गए और इतने ही यूजीसी इंचार्ज। मजेदार बात तो यह है कि छात्रावास बन जाने के बाद ही इसमें प्रबंधक की नियुक्ति कर दी गई थी तब से उनके भी मजे हैं। बताया जा रहा है कि छात्रावास प्रबंधक के तौर पर उग्रसेन त्रिपाठी की पोस्टिंग की गई है। इन्हें महाविद्यालय प्रबंधन बिना काम के तनख्वाह दी जा रही है। पिछले दिनों इनके पास जनभागीदारी और स्वशासी मदों से रखे गए अतिथि विद्वानों की हाजिरी का काम दिया गया था लेकिन प्रबंधन ने यह भी छीन लिया। लंबे समय से छात्रावास प्रबंधक त्रिपाठी को महाविद्यालय ने कोई काम नहीं दिया है। गौरतलब है जब छात्रावास बन कर तैयार हुआ तब डॉ रामबहोरी त्रिपाठी प्राचार्य की कुर्सी में थे। इनके बाद डॉ ज्ञान प्रकाश पांडेय फिर डॉ नीरजा खरे प्राचार्य बनी वर्तमान में डॉ राधेश्याम गुप्ता प्राचार्य की कुर्सी संभाल रहे हैं। यूजीसी इंचार्ज पहले डॉ. अखिलेश मणि त्रिपाठी फिर डॉ सुरेश चंद राय और वर्तमान में डॉ पी के चमडिय़ा इंचार्ज हैं। डॉ.चमडिया प्रबंधन के खास भी बताए जा रहे हैं।
पेंचों की एबीसी में उलझी बात
कन्या छात्रावास के बन जाने के बाद लंबे समय तक महाविद्यालय के हाथ में नहीं आया। इसमें तकनीकी पेंच ए, बी और सी ब्लॉक को लेकर फंसी रही। जिस निकाय को निर्माण की जिम्मेदारी दी थी उसने कथित रूप से नक्शा के विपरीत निर्माण कर दिया। इस पर लंबे समय तक जंग छिड़ी रही। अंत में महाविद्यालय ने अपने खाते से धन देकर निर्माण निकाय का बकाया चुकता कर दिया। असल में हॉस्टल तीन ब्लाक में बनना था। जिसमें ए और बी ब्लाक ही बन सके हैं। सी ब्लाक आज भी तैयार नहीं बताया गया है।
प्रपोजल में लगा था नागौद का नक्शा
स्वशासी महाविद्यालय के लिए कन्या छात्रावास का प्रपोजल भेजा गया था तभी से ही लफड़े शुरू हो गए थे। महाविद्यालय प्रबंधन से जुड़े सूत्रों की मानें तो जलद त्रिमूर्ति महाविद्यालय नागौद में कन्या छात्रावास बन चुका था। यही कारण था कि स्वशासी महाविद्यालय ने इसकी नकल को अपने प्रपोजल में लगा कर भेज दिया था। इसके बाद जब यहां यूजीसी की टीम जांच के लिए आई तो नक्शा ही नहीं मिला। बात फंस गई और अटक भी गई।
जनभागीदारी से चुकाई शेष राशि
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्वशासी महाविद्यालय को कन्या छात्रावास बनाने के लिए 80 लाख रूपए की स्वीकृति मिली थी। लेकिन 72 लाख रुपए ही आए। इन पैसों में निर्माण निकाय ने 35 सीटर छात्रावास तैयार कर दिया। जब पेंच फंसी थी स्टाफ काउंसिल ने जनभागीदारी मद से शेष राशि चुकता कर हॉस्टल अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद भी चालू नहीं कर सका। हालांकि अभी ओपन करने के आदेश नहीं आए बताया जा रहा है।