राजनीति

यूपी में कैसे योगी फैक्टर भी नहीं बचा पाया बीजेपी की जमीन, तीन वजहों से खटाखट घटीं सीटे

नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में भगवा दल की सीटें कम हुई हैं। दोपहर 12 बजे तक के आंकड़ों के अनुसार, सबसे बड़ा सियासी उलटफेर यूपी में दिख रहा, जहां पर सपा और कांग्रेस वाले इंडिया गठबंधन ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है। सपा 35, कांग्रेस आठ सीटों पर आगे चल रही है, जबकि बीजेपी को बंपर नुकसान होते हुए महज 34 सीटों पर ही बढ़त हासिल है। बड़ी संख्या में सीटें घटने की वजह से बीजेपी 272 का बहुमत का आंकड़ा भी पार करती नहीं दिख रही। हालांकि, एनडीए गठबंधन जरूर सरकार बनाता दिख रहा है। यूपी में बीजेपी के बड़े सियासी उलटफेर के पीछे कई वजहें दिखाई दे रही हैं। आम चुनाव के दौरान सपा और कांग्रेस ने जिस तरह से संविधान, आरक्षण, बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाए, नतीजों से साफ लग रहा है कि जमीन पर यह सब काम कर गया। वहीं, बीजेपी जिस राम मंदिर मुद्दे के सहारे देशभर में 400 पार की उम्मीद लगाए बैठी थी, वो यूपी में भी काम नहीं कर सका।   

यूपी में योगी फैक्टर भी नहीं आया काम!
साल 2017 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का ग्राफ तेजी से बढ़ा। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बैक-टू-बैक दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने यूपी में बंपर बहुमत हासिल किया। इसी वजह से वर्तमान लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए यूपी सबसे आसान राज्यों में से एक था, जहां पर पार्टी ने 80 में से 80 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया था। राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो यूपी में बीजेपी की जमीन खिसकने के पीछे एक वजह योगी फैक्टर का काम न करना भी है। पूरे चुनाव के दौरान राजपूत समाज भी केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला के बयान से काफी नाराज दिखा और बीजेपी के खिलाफ वोट डालने की अपील करता रहा। क्षत्रियों की नाराजगी के पीछे एक वजह योगी आदित्यनाथ को लेकर समय-समय पर चल रहीं बातें भी थीं। यह चर्चाएं आम थीं कि फिर से मोदी सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को यूपी सीएम के पद से हटाया जा सकता है। खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कई बार यह दावा किया। इन चर्चाओं की वजह से भी राजपूत वोटबैंक बीजेपी के खिलाफ दिखाई दिया।

चुनाव में खूब उछला संविधान और आरक्षण का मुद्दा
यूपी में बीजेपी की जमीन खिसकने और सपा व कांग्रेस के इंडिया गठबंधन की सीटें बढ़ने के पीछे राहुल गांधी, अखिलेश यादव के वादे भी हैं। दोनों नेता हर चुनावी रैली में दावा करते रहे कि यदि मोदी सरकार 400 से ज्यादा सीटें जीतती है तो संविधान में बदलाव करके आरक्षण को हटा दिया जाएगा। इसके साथ ही, राहुल गांधी ने जितनी आबादी उतना हक का नारा देकर पिछड़ों को अपने और सपा के साथ जोड़ लिया। अखिलेश का पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फॉर्मूला भी काम कर गया और पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक समुदाय का वोट इंडिया गठबंधन की ओर चला गया। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा का वोटबैंक ने मायावती के उम्मीदवारों की बजाए सपा और कांग्रेस के कैंडिडेट्स को जमकर वोट दिया।

महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने बिगाड़ा बीजेपी का खेल
पिछले एक दशक में कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष बीजेपी सरकार पर महंगाई बढ़ाने का आरोप लगाता रहा। गैस सिलेंडर, पेट्रोल-डीजल समेत रोजमर्रा की जरूरतों के सामान की बढ़ती कीमतों के जरिए भी बीते दस सालों में विपक्ष ने मोदी सरकार को जमकर घेरा है। इस चुनाव में प्रचार के दौरान भी राहुल गांधी, अखिलेश यादव समेत इंडिया गठबंधन के नेताओं ने महंगाई का मुद्दा पूरे जोर-शोर से उठाया, जिसका असर आज आए चुनावी नतीजों में भी दिखाई दिया। वहीं, विपक्षी नेता बेरोजगारी बढ़ने का भी दावा करते रहे और कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में सरकार बनने पर 30 लाख नौकरियों का वादा कर दिया। नतीजों को देखकर लगता है कि उनका यह वादा युवा वोटरों को अपनी ओर जोड़ने में कामयाब रहा।  

महिलाओं को लुभा गया एक लाख का वादा
कांग्रेस ने इस बार अपने मेनिफेस्टो में कई अहम वादे किए। इसमें से एक वादा गरीब महिलाओं को हर महीने साढ़े आठ हजार रुपये और सालाना एक लाख रुपये देने का था। राहुल गांधी हर रैली में यह वादा दोहराते नजर आए, जिससे दूर-दराज गांवों में रह रहे परिवारों तक यह पहुंच गया। मंच से राहुल द्वारा कहे गए खटाखट जैसे नारों ने भी लोगों का काफी ध्यान आकर्षित किया और लोगों के दिमाग में एक लाख रुपये हर साल दिए जाने की बात बैठ गई। यह सब मुद्दे और वादे आखिरकार इंडिया गठबंधन के पक्ष में गए और सपा व कांग्रेस, दोनों की ही सीटों पर काफी फायदा हुआ।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button