गाजीपुर सीट से अफजाल अंसारी ने पारसनाथ राय को हराया
गाजीपुर
गाजीपुर लोकसभा सीट एक बार फिर मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी ने जीत ली है। अफजाल ने भाजपा प्रत्याशी पारसनाथ राय को करीब सवा लाख वोटों से हराया है। अफजाल पिछली बार बसपा के टिकट पर उतरे और सांसद बने थे। इस बार सपा ने अफजाल को टिकट दिया था। अफजाल अंसारी को 527339 वोट मिले। भाजपा के पारसनाथ राय को 403892 वोट मिले। इस तरह अफजाल अंसारी ने 123447 वोटों से जीत हासिल की है। अफजाल अंसारी मतगणना के पहले ही दौर से आगे चल रहे हैं। पोस्टल बैलेट की गितनी से ही अफजाल अंसारी लीड बनाए हुए थे।
पिछली बार मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर नेता के उतरने के बाद भी यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई थी। सपा-बसपा गठबंधन से उतरे अफजाल अंसारी ने मोदी लहर के बाद भी मनोज सिन्हा को हरा दिया था। मनोज सिन्हा के कश्मीर का एलजी बनने के कारण उन्हीं के खास पारस नाथ राय को भाजपा ने टिकट दिया है।
इससे पहले गाजीपु में 2014 के चुनाव में भाजपा के मनोज सिन्हा करीब 33 हजार वोटों से जीतकर सांसद चुने गए थे। लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन से न सिर्फ उनकी 33 हजार वोटों की लीड खत्म हो गई बल्कि वह करीब सवा लाख वोटों से पिछड़ भी गए। 2014 में मनोज सिन्हा को 3,06,929 वोट मिले थे। उनके खिलाफ मैदान में उतरीं सपा की शिवकन्या कुशवाहा को 2,74,477 वोट ही हासिल हुए थे। बसपा के कैलाश नाथ सिंह यादव 2,41,645 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे।
2019 में सपा-बसपा के मिलने से उसके वोटों की संख्या भी मिल गई। इससे सपा बसपा के संयुक्त प्रत्याशी अफजाल अंसारी को 5,66,082 वोट हासिल हो गए। मनोज सिन्हा पिछली बार से करीब डेढ़ लाख ज्यादा 4,46,690 वोट पाकर भी पीछे रह गए। सुभासपा के रामजी को 33,877 और कांग्रेस के अजीत प्रताप कुशावाहा को 19,834 वोट मिले।
पिछली बार से पहले भी अफजाल 2004 से 2009 यहां से सांसद रह चुके हैं। गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें है। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और ओपी राजभर की सुभासपा ने गठबंधन किया था। सभी पांच सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगियों को हार मिली और सपा-सुभासपा ने सभी सीटें जीत ली थीं।
गाजीपुर लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ। कांग्रेस के हर प्रसाद सिंह यहां से सांसद चुने गए। अगले लोकसभा चुनाव में उनकी सीट बरकरार रही। 1962 कांग्रेस के ही वीएस गहमरी ने सीट जीती। अगले चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। 1967 और 1971 में लगातार दो बार भाकपा के सरजू पांडे सांसद चुने गए। इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव में यह सीट जनता पार्टी के पास चली गई। जनता पार्टी के गौरी शंकर राय सांसद चुने गए। 1980 में कांग्रेस ने वापसी की औऱ उसके प्रत्याशी जैनुल बशर सांसद बने।
1984 में जैनुल बशर दोबारा सांसद चुने गए। 1989 में निर्देल प्रत्याशी जगदीश कुशवाहा ने सीट जीती। 1991 में भाकपा के विश्वनाथ शास्त्री ने सीट जीती। 1996 भाजपा के मनोज सिन्हा पहली बार सांसद बने। 1998 में सपा के ओमप्रकाश सिंह और 1999 में दोबारा भाजपा के मनोज सिन्हा सांसद चुने गए। 2004 में सपा के टिकट पर अफजाल अंसारी सांसद बने।
अगले चुनाव में सपा ने राधे मोहन सिंह को उतारा औऱ वह सांसद बने। मोदी की लहर में भाजपा के मनोज सिन्हा ने वापसी की। अगले चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के आगे मनोज सिन्हा को हार का सामना करना पड़ा। बसपा के अफजल अंसारी से मनोज सिन्हा हार गए।