मध्यप्रदेश कोर्ट ने पीड़िता को नहीं दी गर्भपात की अनुमति
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भोपाल
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के प्रेग्नेंसी का गर्भपात करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। पीड़िता के साथ कथित तौर पर उसके जीजा ने रेप किया था। लड़की और उसकी मां ने अदालत में गवाही दी थी कि वे मुकदमे में आरोपी को बचाने की कोशिश करेंगे। इसके बाद जस्टिस जी एस अहलूवालिया ने 22 अप्रैल को अपने आदेश में कहा कि किसी को भी अनचाहे बच्चे की हत्या करने के लिए लुका-छिपी खेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नाबालिग ने अपनी बड़ी बहन के पति पर बलात्कार का आरोप लगाया है।
कोर्ट के अधिकार का दुरुपयोग
अदालत ने एक ऐसे मामले का हवाला दिया, जिसमें अनचाहे बच्चे से छुटकारा पाने के लिए अदालत के अधिकार का दुरुपयोग किया गया था। साथ ही पीड़िता की मां से हलफनामा दाखिल करने को कहा था कि वह मुकदमे के दौरान अपने बयान पर कायम रहेगी और अपने बयान से पलटेगी नहीं। मां ने हलफनामा तो दिया, लेकिन जब जज ने कोर्ट रूम में उससे इसके बारे में पूछा, तो उसने और पीड़िता ने कहा कि वे आरोपी को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे, जिसके बाद अदालत ने गर्भपात की चिकित्सीय याचिका खारिज कर दी।
गर्भपात की अनुमति नहीं
जस्टिस अहलूवालिया ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि, यह कोर्ट इस तथ्य से अवगत है कि गवाहों को उनके बयानों से बाध्य नहीं किया जा सकता है और वे मुकदमे में जो चाहें कह सकते हैं, लेकिन उन्हें अजन्मे बच्चे को मारने के लिए इस अदालत के वैध अधिकार का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी
जस्टिस जी एस अहलूवालिया के आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ता अपने दामाद की दोषसिद्धि सुनिश्चित करना चाहती है या नहीं, यह इस कोर्ट की चिंता का विषय नहीं है। एकमात्र चिंता यह है कि क्या इस न्यायालय का इस्तेमाल एक अवांछित बच्चे से छुटकारा पाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है और उसके बाद यह दावा किया जा सकता है कि कोई अपराध नहीं हुआ था। किसी को भी अनचाहे बच्चे की हत्या करने के लिए लुका-छिपी का खेल खेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने खारिज कर दी याचिका
अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिका दायर करने के पीछे की वास्तविक मंशा और याचिकाकर्ता की इस स्वीकारोक्ति को देखते हुए कि वह और अभियोक्ता मुकदमे में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करेंगे। साथ ही आरोपी को बचाने का हर संभव प्रयास करेंगे। इस अदालत का यह मत है कि हालांकि अवांछित बच्चे का लड़की की मानसिक स्थिति पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन यदि अभियोक्ता और उसकी मां यह दावा करके पलटी मारने जा रही हैं कि कोई अपराध नहीं हुआ है, तो यह अदालत उस पहलू को नजरअंदाज करना चाहेगी। इसके बाद गर्भावस्था के गर्भपात की अनुमति देने का कोई मामला नहीं बनता है।