धर्म/ज्योतिष

मानसिक अस्वस्थता और आंतरिक शांति के लिए ये उपाय

जिसकी कुंडली के द्वितीय, पंचम, नवम व एकादश भाव में शुभ ग्रह विराजमान हों, तो वह व्यक्ति समृद्ध और सामर्थ्यवान होता है। अगर लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होकर केंद्र या त्रिकोण में उच्च का होकर या स्वगृही बनकर विराजमान हो, तो व्यक्ति ऐश्वर्यवान व राजकीय पद पर आसीन होता है।

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यदि मानसिक कष्ट हो, आंतरिक शांति का अभाव हो, तो गुलाबी सेंधा नमक मिश्रित जल से स्नान करें। लाभ होगा, ऐसा मान्यताएं कहती हैं।

शनि अगर नवम भाव यानी भाग्य में हो, तो मिश्रित फल प्रदान करता है। बातचीत में ये लोग मधुर होते हैं। ऐसे लोगों की आध्यात्म और तीर्थयात्राओं में रुचि जागृत होती है। इन्हें जीवन में अपार ख्याति मिलती है। ये अपने जीवनकाल में कुछ ऐसा विलक्षण कार्य करते हैं, जिसे लोग इनके जीवन के पश्चात भी याद करते हैं। ये लोग बेहद चतुर होते हैं। ये स्वभाव से निडर और स्थिरचित्त होते हैं। अपने काम के प्रति ये बेहद जिम्मेदार और प्रतिबद्ध होते हैं। ज्ञान को हर जगह फैलाने का प्रयास करते हैं। इनमें उत्साह, जुनून और विद्वता कमाल की होती है। शुभकर्म में इनकी सहज रुचि होती है। ये लोग भ्रमण करते रहते हैं। परोपकार, दान और सहायता में ये सदैव सहयोग करते हैं। भाई-बहन से इनकी अनबन रहती है। ये लोग जीवन में बड़े अधिकार प्राप्त करते हैं। जीवन में उत्तम प्रकार का वाहन का सुख इन्हें हासिल होता है। शरीर के किसी अंग में किसी विकार की संभावना होती है। इन्हें विरासत में संपत्ति मिलती है। पिता-पुत्र के संबंध तनावपूर्ण होते हैं। निम्न लोगों की संगति भाग्य वृद्धि में सहायक हो सकती है। किसी का तिरस्कार अवनति का कारक बन सकता है। ज्योतिष, शिक्षा और कानून के क्षेत्र में कामयाबी हासिल करते हैं।

प्रश्न: वह कौन सा योग है, जो अपना घर प्रदायक है?

उत्तर: अपने घर का सुख देने वाले कोई एक नहीं, वरन अनेक योग हैं। सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि अगर केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह आसीन हो, या सुख भाव में चर राशि यथा मेष, कर्क, तुला, मकर हो अथवा चतुर्थ भाव का स्वामी चार राशियों में हो, साथ ही शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, अथवा भाग्येश चौथे में व चतुर्थेश भाग्य भाव में विराज रहा हो, तो उसे स्वगृह का सुख प्राप्त होगा। अगर सप्तमेश चतुर्थ में उच्च का होकर बैठ जाए, तो उसे जीवनसाथी के सहयोग से घर की प्राप्ति होगी। यदि सुखेश स्वग्रही हो या मित्र राशि में हो, तो पैतृक संपत्ति मिलती है। यदि पराक्रमेश चतुर्थ भाव में हो, तो भ्राता के सहयोग से घर का सुख मिलता है। सुखेश उच्च का होकर कहीं बैठा हो एवं जिस भाव में उच्च का हो व उसका स्वामी भी उच्च का हो, तो भव्य कोठी या उत्तम बंगले का सुख मिलता है। सुखेश यदि पराक्रम में हो, तो व्यक्ति अपने बलबूते पर साधारण मकान बना पाता है।

प्रश्न: क्या पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे लोगों के संतान सुख में कमी होती है।

उत्तर: नहीं। कदापि नहीं। सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म लेने वाले संतान का पूर्ण आनंद प्राप्त करते हैं। इनका जीवन सुख, आनंद और समृद्धि से परिपूर्ण होता हैं। समाज में प्रशंसनीय और स्वभाव से बेहद शांत होते हैं। इन्हें लोगों का स्नेह और आदर प्राप्त होता है। भोग विलास में इनकी स्वाभाविक रुचि होती है। उत्तम मित्रों का इनको सुख हासिल होता है।

प्रश्न: कुलिक योग कौन सा योग है?

उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि कुलिक कालसर्प योग का एक प्रकार है। जब कुंडली में राहु द्वितीय भाव, केतु अष्टम स्थान में हों एवं बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के बीच में हों, तो यह योग कुलिक कालसर्प योग कहलाता है। यह अपार श्रम के बावजूद सफलता से वंचित रखता है और बड़ी आर्थिक क्षति का सृजन करता है। यह काल सर्प योग रिश्तों में धोखा, सामाजिक निंदा, शारीरिक व मानसिक कष्ट, विवाह में रुकावट व वैवाहिक जीवन में कष्ट का भी कारक है।

प्रश्न: सूर्य अगर प्रथम भाव में हो, तो क्या होता है?

उत्तर: प्रथम भाव यानी लग्न में सूर्य हो, तो ऐसे व्यक्ति भावुक होते हैं। ये सुनी-सुनाई बातों पर सरलतापूर्वक यक़ीन नहीं करते। इनके स्वभाव में नाटकीय रूप से उग्रता और मृदुता दोनों दृष्टिगोचर होती है। सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि इनकी देह में अक्सर भारीपन आने लगता है और लचीलापन कम होने लगता है, जिससे इन्हें कभी-कभी मांसपेशियों में पीड़ा की शिकायत होती है। यह स्थिति पिता के सुख में कुछ कमी का कारक बनती है। ऐसे लोगों को श्रेय ज़रा देर से मिलता है।

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