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बॉम्बे हाई कोर्ट ने शराब पीकर न्यायिक अकादमी में पहुंचने वाले आरोपी जज को राहत देने से इनकार

मुंबई

बॉम्बे हाई कोर्ट ने शराब पीकर न्यायिक अकादमी में पहुंचने और अकसर अनुशासनहीनता करने के आरोपी जज को राहत देने से इनकार कर दिया है। जज की नौकरी गलत व्यवहार के चलते गई थी और इस मामले में उसने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था। जज अनिरुद्ध पाठक की अर्जी पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट बेंच ने कहा कि किसी भी न्यायिक अधिकारी को ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की छवि खराब होती हो। इस तरह अदालत ने नौकरी से हटाए गए जज अनिरुद्ध पाठक को कोई राहत देने से इनकार कर दिया।

हाई कोर्ट की बेंच ने कहा, 'जजों और न्यायिक अधिकारियों को गरिमापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की छवि पर विपरीत असर पड़ता हो।' अनिरुद्ध पाठक को जिन आरोपों में नौकरी से हटाया गया, उनमें टाइमिंग का पालन न करना, अकसर छुट्टी मार जाना और ज्युडिशियल अकैडमी में शराब पीकर जाना शामिल है। इससे पहले भी स्टाफ के कई लोगों ने शिकायत की थी कि अनिरुद्ध पाठक अकसर शराब पीकर कोर्ट पहुंचते हैं। इन आरोपों के चलते उन पर ऐक्शन हुआ था और उन्हें नौकरी से ही बर्खास्त कर दिया गया।

इस फैसले को चुनौती देते हुए अनिरुद्ध पाठक ने हाई कोर्ट का रुख किया था। उनकी अर्जी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस चंदूरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन ने कोई राहत नहीं दी। बेंच ने कहा कि यदि कोई न्यायिक अधिकारी गलत बर्ताव करता है तो उसे यह नहीं सोचना चाहिए कि अदालत उसके पक्ष में आएगी। बेंच ने कहा कि यह तो आम धारणा है कि जजों और न्यायिक अधिकारियों को गरिमा के साथ रहना चाहिए। उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की छवि खराब होती हो।

यदि किसी जज का व्यवहार ऐसा है कि उस पर सवाल उठ रहे हैं और गरिमा कम हो रही है तो उसे राहत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। ऐसे मामले में हाई कोर्ट की ओर से मदद नहीं की जा सकती। बता दें कि अनिरुद्ध पाठक को मार्च 2010 में सिविल जज जूनियर डिविजन के पद पर तैनाती मिली थी। इसके कुछ समय बाद से ही उनके खिलाफ शिकायतें आने लगी थीं और फिर महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के मुख्य जज ने पाठक के खिलाफ रिपोर्ट दाखिल की थी। अंत में पाठक पर ऐक्शन लेते हुए उन्हें जज की नौकरी से ही बर्खास्त कर दिया गया।

 

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