‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता पर मस्क के समर्थन में अमेरिका
वॉशिंगटन.
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत सभी यूएन निकायों में सुधार का समर्थन किया है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रधान उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल से बुधवार को एक प्रेसवार्ता के दौरान यूएनएससी में भारत की स्थाई सीट को लेकर टेस्ला के सीईओ एलन मस्क के बयान पर सवाल किया गया था। इस दौरान उन्होंने जवाब दिया कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस पर पहले भी बात की है।
यूएन के सचिव ने भी इसके बारे में बताया है। हम निश्चित तौर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत यूएन निकायों में सुधार का समर्थन करते हैं। इसके लिए क्या कदम उठाए जाएंगे? इसे लेकर मेरे पास ज्यादा जानकारी नहीं है। हमें लगता है कि इसमें सुधार की जरूरत है। दरअसल, मस्क ने जनवरी में यूएन में भारत को स्थाई सीट न मिलने को बेतुका बताया था।
स्थाई सदस्यता न मिलने पर एलन मस्क ने की थी टिप्पणी
यूएन में भारत को स्थाई सीट न मिलने पर एलन मस्क ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा था, 'कुछ पहलुओं पर सुधार की जरूरत है। समस्या यह है कि जिनके पास अधिक ताकत है, वह इसे छोड़ना नहीं चाहते हैं। भारत के पास यूएन में स्थाई सीट नहीं है। सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद परिषद में भारत को स्थाई सीट नहीं दी गई है। यह बेतुका है। अफ्रीका को भी एक स्थाई सीट दी जानी चाहिए।'
लंबे समय से हो रही मांग
भारत लंबे समय से ही विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 15 देशों से मिलकर बना है। उनमें से पांच स्थाई देशों के पास वीटो ताकत है, जबकि 10 अस्थाई देशों को दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। पांच स्थाई देशों में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन शामिल हैं।
भारत ने भी स्थाई सदस्यता पर दिया जोर
भारत में लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की तरफ से जारी घोषणा-पत्र (संकल्पपत्र) में पार्टी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सीट को लेकर भी बात की गई है। इससे पहले जनवरी में केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता पर जोर दिया था। उन्होंने इस पर कहा था कि कभी कभी चीजें उदारता से की जाती है और कभी इसे हर हाल में हासिल करना पड़ता है।