राजनीति

पहले चरण के चुनाव में बचे 10 से भी कम दिन, ना तो कोई मुस्लिम संगठन, ना ही कोई उलेमा नहीं कर रहे वोटिंग अपील

नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में अब 10 दिन से भी कम समय रह गया है, बावजूद इसके ना तो कोई मुस्लिम संगठन, ना ही कोई उलेमा और ना ही कोई मौलवी अब तक समुदाय के लोगों से यह अपील कर सका है कि किस दल या गठबंधन के पक्ष में वोट करना है। यहां तक कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और दारुल उलुम देवबंद ने भी इस बार के चुनाव में अब तक इससे अपने को दूर रखा है। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी अब तक इस मामले पर चुप्पी साध रखी है।

दरअसल, ये चुप्पी एक रणनीति के तहत बनाई गई है। जानकारों का कहना है कि मुस्लिम संगठनों, मौलवी और उलेमाओं ने अब तक समुदाय के लोगों से किसी खास राजनीतिक दल या गठबंधन के पक्ष में प्रचार करने, या वोट देने की अपील इसलिए नहीं की है कि उन्हें ऐसा लगता है कि ऐसा करने से विपक्षी समुदायों के बीच धार्मिक ध्रुवीकरण हो सकता है।

देशभर के 50 से अधिक मुस्लिम निकायों के संगठन, ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व प्रमुख नावेद हामिद ने TOI से कहा, "मुस्लिम संगठन और उनके मौलवी इस बार अब तक कोई सामूहिक मतदान की मुखर अपील नहीं की है क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसी अपील  का कोई भी कदम बहुसंख्यक (हिन्दू) मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकता है। इसीलिए, मौलवियों ने बयान या अपील करने के बजाय चुप्पी साध रखी है।"

बता दें कि पहले के कई चुनावों में कई मौलवियों ने अलग-अलग राजनीतिक दलों के पक्ष में वोट करने की अपील और बयान जारी किए थे। ऐसा करने के लिए उन्हें कई बार समुदाय की आलोचना का सामना भी करना पड़ा है लेकिन इस बार वे सभी चुप हैं। अंजुमन-ए-इस्लाम के प्रमुख ज़हीर काज़ी इसे मौलवियों की "राजनीतिक परिपक्वता" कहते हैं। उनके मुताबिक, मौलवी या उलेमा अब मुद्दों पर नहीं जा रहे हैं बल्कि इसे समुदाय के विवेक पर छोड़ रहे हैं। दूसरी तरफ हैदराबाद स्थित कार्यकर्ता मजहर हुसैन ने कहा कि सामूहिक मतदान की अपील का दौर अब खत्म होता दिख रहा है।

 

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