1998 में लोकसभा चुनाव लड़े थे एमपी के दो पूर्व सीएम, दोनों की हुई थी हार
भोपाल
1998 के बाद पहली बार, मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए दो पूर्व मुख्यमंत्री मैदान में हैं। कांग्रेस ने राजगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को टिकट दिया है तो बीजेपी ने विदिशा से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारा है। इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में 7 मई को तीसरे चरण में वोटिंग है। विदिशा लोकसभा सीट से उम्मीदवार शिवराज सिंह चौहान चार बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। कुल मिलाकर उनका शासन 17 वर्षों से अधिक रहा है। वहीं, दिग्विजय सिंह भी दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने 10 सालों तक एमपी में शासन किया है। 1998 वाले लोकसभा चुनाव में दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की हार हो गई थी। अब इस बार नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
1998 में लोकसभा चुनाव लड़े थे एमपी के दो पूर्व सीएम
वहीं, 1998 में आखिरी बार मध्य प्रदेश के दो पूर्व सीएम लोकसभा चुनाव लड़े थे। बीजेपी के पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि इस चुनाव में पटवा 1,53,398 वोटों से चुनाव हार गए थे। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी इसी साल होशंगाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। वह बीजेपी के सरताज सिंह से 68,981 वोटों के अंतर से हार गए थे।
शुरुआत में चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे दोनों
बताया जाता है कि शुरुआत में दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह चौहान चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे। विदिशा लोकसभा सीट से बीजेपी के दिग्गज नेता चुनाव लड़ते रहे हैं। यहां यह माना जाता है कि बीजेपी से उतरने वाला कोई भी सख्श विदिशा से सांसद बन सकता है। लोग यह सोच रहे थे कि फिर बीजेपी शिवराज सिंह चौहान को क्यों उतारेगी जो प्रदेश में बीजेपी का सबसे लोकप्रिय चेहरा है। कयास थे कि कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में पार्टी किसी बड़े चेहरे को मौका देगी।
शिवराज सिंह चौहान को विदिशा क्यों?
राज्य बीजेपी के एक नेता ने इसके पीछे तर्क दिया कि पार्टी ने अभी-अभी राज्य के मुख्यमंत्री को बदला है। मोहन यादव अभी भी राजनीति के बुनियादी सिद्धांतों को सीख रहे हैं जो एक मुख्यमंत्री के लिए जानना जरूरी है। इन परिस्थितियों में पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को एक सुरक्षित सीट दी है। इससे वह राज्य की 28 अन्य सीटों पर प्रचार के लिए स्वतंत्र होंगे। पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए एमपी में स्टार प्रचारक भी बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अनुभवी नेता भानु प्रताप शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है क्योंकि वह यहां के सांसद रह चुके हैं।
राजगढ़ से क्यों लड़ रहे दिग्विजय सिंह?
वहीं, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इसे लेकर कांग्रेस के एक विधायक ने तर्क दिया कि दिग्विजय सिंह चुनावी राजनीति से सम्मानजनक निकास के लिए यह चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भोपाल में हार के बाद भी दिग्विजय सिंह लड़ रहे हैं ताकि वह एक विजेता के रूप में राजनीति से संन्यास ले सकें। भोपाल लोकसभा सीट से वह 2003 और 2019 में हार चुके हैं, इस बार वह इसे मिटाना चाहते हैं। टिकट की घोषणा के बाद वह राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं। पहले यह माना जा रहा था कि वह अपने भतीजे और पूर्व मंत्री प्रियव्रत सिंह की उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उन्हें ही उम्मीदवार बना दिया है।
राज्य कांग्रेस के प्रवक्ता अब्बास हफीज ने दावा किया कि दिग्विजय सिंह हमेशा कांग्रेस पार्टी के वफादार सिपाही रहे हैं। वह हर निर्देश का पालन करते हैं। पिछले 40 सालों से एक योद्धा की तरह पार्टी के आदेशों का पालन कर रहे हैं। यकीन है कि उनका राजगढ़ में शानदार प्रदर्शन रहेगा।
बीजेपी का गढ़ है विदिशा
बीजेपी ने विदिशा से शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारा है। यह भगवा का सबसे बड़ा गढ़ है। शिवराज सिंह चौहान 1991 से मुख्यमंत्री बनने तक लगातार सांसद रहे हैं। पहली बार वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सीट छोड़ने के बाद चुनाव लड़े थे। वहीं, कांग्रेस सिर्फ यहां 1980 और 1984 में चुनाव जीती है। दोनों बार भानु प्रताप शर्मा यहां से सांसद रहे हैं। कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हीं को उतारा है। वह 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज यहां से 2009 और 2014 में सांसद रह चुकी हैं। यह बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट है।
राजगढ़ में रहा है दिग्विजय सिंह का दबदबा
वहीं, राजगढ़ लोकसभा सीट पर 32 साल बाद दिग्विजय सिंह की वापसी हुई है। वह 1984 में यहां से पहली बार सांसद चुने गए थे। 1989 में चुनाव हार गए और 1991 में फिर से चुन लिए गए। इसके बाद 1993 में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री चुन लिए तो उन्होंने यह सीट छोड़ दी। इसके बाद उनके भाई लक्ष्मण सिंह उपचुनाव में जीत गए। लक्ष्मण सिंह इस सीट से तीन बार सांसद रहे। एक बार वह बीजेपी में भी गए। 2014 और 2019 में इस सीट से बीजेपी उम्मीदवार रोडमल नागर को जीत मिली है। दिग्विजय सिंह के खिलाफ भी वहीं उम्मीदवार हैं।