छत्तीसगड़

कठपुतली की भांति है जीवन, जिसका नचाने वाला सूत्रधार कोई और है

रायपुर

एक कठपुतली की भांति हैं हमारा और आपका जीवन, कठपुतली में कोई प्रेरणा नहीं होती और उसका जो सूत्रधार होता है वह उंगलियों पर उसे नचाता है। वैसे ही हम – आपको नचाने वाला भी कोई ओर है, इस कृतत्व से जब ऊपर उठकर बोध करेंगे तभी प्रभुत्व (पूर्णता) की प्राप्ति होगी। विडंबना आज के आधुनिक युग में लोग मोबाइल के इशारे पर नाच रहे है और उसे ही अपना सूत्रधार मान बैठे है।
श्री रामकिंकर जन्मशती महा-महोत्सव की श्रृंखला में सिंधु भवन शंकर नगर में आयोजित श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ में मानस मर्मज्ञ दीदी माँ

मंदाकिनी ने बताया कि रामचरित मानस की एक चौपाई क्या एक शब्द पर भी 9 दिन तक व्याख्या की जा सकती है। महाराज रामकिंकर जी अपनी कथा में मनोरंजन नहीं बल्कि गंभीर और सूक्ष्म तत्वों की व्याख्या हमारे जीवन से जोड़कर बताते थे। मानस सिर्फ भगवान राम की कथा नहीं है। हम जब भी कोई कार्य करते है तो इससे पहले प्रार्थना-वंदना करते है, कुछ भी बोलने या लिखने जा रहे है तब कहते है कि हे प्रभु हमें शक्ति प्रदान कर दें कि प्रतिफल आपकी कृपा से सफल हो सकें। भाव ऐसा हो कि शून्यता का भाव हो तभी उसी कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर सकेंगे।
दीदी माँ मंदाकिनी ने इसी संदर्भ में आगे कहा कि मोबाइल के आधुनिक काल में आज कठपुतली का खेल तो खो गया है। यहां तक कि आज कल तो कथाओं में भी नृत्य-संगीत से मनोरंजन का आनंद लेते है। जिस प्रकार एक कठपुतली में स्वयं की कोई प्रेरणा नहीं होती है वह तो उंगलियों के इशारे पर नाचती है ठीक उसी प्रकार हम जब समझ जाएं कि जीवन में हमें नचाने वाला सूत्रधार कोई और है तभी आनंद मिलेगा। वहां कठपुतली नहीं बल्कि नचाने वाला थकता है और यहां नाचने वाला थकता है। जब कृतत्व के अहंकार से मुक्त होकर ऊपर उठ गया, तभी ये जो खेल नाच का चल रहा है उसमें आनंद मिलेगा।

सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रम्हा जी के पास दानव, मानव और देवता पहुंचे कि हमारे कल्याण के लिए कोई संक्षिप्त उपदेश दें। तब उन्होंने एक शब्द से जो उपदेश दिया, उसकी व्याख्या से ही कई ग्रंथों की रचना हो गई। आज भी हमारे जीवन के प्रादुर्भाव में वो संदेश है, जब कोई व्यक्ति सृजनकर्ता है तो उसे प्रशंसा भी मिल सकती है और निंदा भी।  दोनों ही प्रकार संभावनाएं हमेशा बनी रहती है। किसी को प्रसन्नता हो सकती है और दुखी भी होना पड़ सकता है। सहज रुप से निर्माणकर्ता होने का अहंकार भी आ सकता है।

शब्द भी एक सृजन है, जब अक्षर और मात्रा मिलते है तब शब्द बनता है। निर्धारित शब्द कोष में इसका अर्थ है, पर अक्षर का कोई अर्थ नहीं है, जब तक इसमें मात्रा नहीं जोड़ेंगे। यह तो उन्हें संदेश देना था आज हर घर में यही तो झंझट मात्रा का है कि मुझे कम मिला, मुझे ज्यादा क्यों मिला। निर्गुण ब्रम्ह है, अक्षर है और जब माया का मिलन होगा तभी सृजन होगा। ये संदेश उन तीनों के लिए ही नहीं हमारे जीवन में भी वही वृत्तियां आती है और तीनों का समाधान एक ही है। जब अहंकार से मुक्त होंगे तभी प्रभुत्व की कृपा और आनंद मिलेगा।

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