छत्तीसगड़

छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूख मया के’ को नहीं मिला रिस्पॉन्स

रायपुर

जनवरी से अब तक तीन माह में 15 से 20 छत्तीसगढ़ी फिल्में रिलीज हुई लेकिन इनमें से कुछ ही फिल्मों को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला, बाकी फिल्मों को देखने के लिए सिनेमा प्रेमियों की रुचि दिखाई नहीं दी। शुक्रवार, 15 मार्च को एक और छत्तीसगढ़ी फिल्म भूख मया के रिलीज हुई जिसे भी देखने दर्शक नहीं पहुंचे, यह फिल्म पति के निधन के बाद एक माँ की संघर्ष पर आधारित मार्मिक फिल्म है।

अगर फिल्म की बात करें तो मध्यांतर तक यह समझ नहीं आता हैं कि भूख मया के टाइटल क्यों दिया है पर मध्यांतर के बाद पूरी कहानी समझने में दर्शकों को समय नहीं लगेगा। मध्यांतर के चंद मिनट पहले ही पति (दिलेश साहू) और गर्भवती पत्नी का रोड एक्सीटेंड हो जाता है और इलाज के दौरान पति का निधन और गर्भवती ज्योति (गरिमा शर्मा)  लड़की को जन्म देती है और इस दौरान उसकी आवाज हमेशा लिए चली जाती है। जिसे ससुराल पक्ष के लोग जलील कर घर से निकाल देते हैं और उसका भाई उसे अपने साथ ले आता है, लेकिन यहां उसकी भाभी ताने मारना शुरू कर देती है और वह घर से निकल जाती है। पुजारी की मदद से जैसे-तैसे वह अपनी बेटी को लेकर 18 साल बिताती है। बेटी भी बड़ी होकर अपनी गूंगी माँ का सहारा बनने के बजाए एकलड़के के चक्कर में पड़ जाती है जो लड़कियों को बेचने का काम करता है। जेठ की भूमिका निभा रहे रियाज खान लालच में इतना अंधा हो जाता है कि पूरे जयजाद को अपने नाम कर लेता है और जब ज्योति अपना हक मांगने जाती है तो उसे धुत्कार कर वहां से बेदखल कर देता है। इसी दौरान उसकी बेटी उन लड़कों के चंगुल से बचकर किसी तरह वहां पहुंचती है और उसकी माँ अपने जेठ के द्वारा मारे गए ताने को सहन नहीं कर पाती और जहर पीकर दोनों मौत को गले लगा लेते है।

निर्देशक फिरोज हसन रिजवी ने कहानी तो अच्छा चुना लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक और सीन में समन्यवय बैठाने में असफल रहे। बहुत जगह कलाकार कुछ और बोल रहा है और सीन कुछ और है। फिल्म के गाने तो अच्छे हैं लेकिन हीरो का किरदार निभा रहे दिलेश साहू ने एक्टिंग तो ठीक-ठाक किया है पर डांस परफार्मेंस बहुत ही कमजोर रहा। अन्य छत्तीसगढ़ी फिल्मों की तरह इसमें कॉमेडी भी खास नहीं हैं।

फिल्म के प्रीमियर शो के बाद पत्रकारों से चर्चा करते हुए अभिनेत्री गरिमा शर्मा ने कहा कि इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिलना चाहिए क्योंकि एक स्त्री के संघर्ष की गाथा है। उन्होंने फिल्म में अपनी भूमिका महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि एक गूंगी लड़की का किरदार निभाना बहुत ही कठिन था, पर मैंने इसे दिल से निभाया है। छत्तीसगढ़ी और राजस्थान बोली में कोई फर्क नहीं है, जहां की जैसी बोलचाल होती है वहां के बोलचाल में ढलना कलाकारों को बखूबी आता है।

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