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सरकारी डॉक्यूमेंट्स पर मां का नाम अनिवार्य, दिल्ली-महाराष्ट्र में हुए ये बड़े फैसले

मुंबई

मातृ दिवस (Mother's Day) हर साल मई के महीने में मनाया जाता है. लेकिन इस बार मदर्स डे मार्च महीने से ही सेलिब्रेट किया जा रहा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने सामाजिक महत्व का मुद्दा बताते हुए स्टूडेंट्स के डॉक्यूमेंट्स पर मां का नाम अनिवार्य करने का फैसला सुनाया है. वहीं महाराष्ट्र सरकार ने भी सभी सरकारी डॉक्यूमेंट्स पर बच्चे के नाम के बाद माता का नाम, फिर पिता का नाम और सरनेम लिखने का बड़ा फैसला सुनाया है.

महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को कैबिनेट मीटिंग में सरकारी दस्तवेजों जैसे जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल की मार्कशीट- सर्टिफिकेट्स, प्रॉपर्टी डॉक्यूमेंट्स, आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि में मां का नाम अनिवार्य करने का फैसला लिया है. वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने स्टूडेंट्स की डिग्री-सर्टिफिकेट पर पिता के साथ मां का नाम शामिल करना फैसला सुनाया है.

पहले अपना नाम, मां का नाम, फिर पिता का नाम और सरनेम
महाराष्ट्र में 01 मई 2014 या उसके बाद पैदा हुए बच्चों को अपना पहला नाम, उसके बाद मां का पहला नाम और फिर पिता का पहला नाम और सरनेम बताना होगा. विवाहित महिलाओं के मामले में महिला के नाम के बाद उसके पति का पहला नाम और सरनेम लिखने की व्यवस्था ही जारी रहेगी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट 'एक्स' (पहले ट्विटर) के माध्यम से इसकी सूचना दी है. साथ ही मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों ने अपनी माता के नाम के साथ वाली नेम प्लेट की फोटो भी शेयर की.

01 मई 2024 से लागू होगा नियम
कैबिनेट का यह फैसला 01 मई 2024 से लागू किया जाएगा. सरकार ने कहा कि 1 मई या उसके बाद जन्म लेने वालों के स्कूल, परीक्षा प्रमाण पत्र, पे स्लिप और रेवेन्यू डॉक्यूमेंट के लिए इसी फॉर्मेट में अपना नाम रजिस्टर कराना होगा. इसके अलावा हेल्थ डिपार्टमेंट को केंद्र से बातचीत करने के लिए कहा गया है कि क्या मां का नाम भी जन्म या मृत्यु रजिस्ट्रेशन में शामिल किया जा सकता है. महिला एवं बाल विकास विभाग ने पहले कहा था कि इस फैसले को माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचान देने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि सरकारी डॉक्यूमेंट में पहले से ही पिता का नाम प्राथमिक तौर पर लिखा जाता रहा है.

दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
इससे एक दिन पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने एक लॉ स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि शैक्षणिक प्रमाण-पत्रों और डिग्रियों पर जहां अभिभावक का नाम होता है, वहां माता का नाम भी लिखा होना चाहिए. जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि जिस तरह एक बेटी और बेटा एक जोड़े के बच्चों के रूप में मान्यता के समान रूप से हकदार हैं, उसी तरह माता और पिता भी बच्चे के माता-पिता के रूप में मान्यता के समान रूप से हकदार होने चाहिए. इसमें बहस की जरूरत नहीं है.

डिग्री पर मां का नाम नहीं होने पर कोर्ट पहुंची थी छात्रा
दरअसल, दिल्ली की गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिट से लॉ की पढ़ाई कर रही एक छात्रा ने जब अपनी डिग्री पर मां का नाम नहीं देखा तो उसके दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिकाकर्ता रितिका प्रसाद लॉ ग्रेजुएट हैं, उनका कहा था कि उन्होंने पांच साल पहले बीए एलएलबी कोर्ट में एडमिशन लिया था. जब कोर्स पूरा हुआ और डिग्री दी गई है तो उस पर केवल पिता का नाम लिखा था मां का नहीं. रितिका का कहना था कि डिग्री पर मां और पिता दोनों का नाम होना चाहिए.

यह एक बड़ा सामाजिक महत्व का मुद्दा है: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि यह एक बड़ा सामाजिक महत्व का मुद्दा है. इस संबंध में यूजीसी ने 06 जून 2014 को एक सर्कुलर जारी किया था लेकिन इसकी अनदेखी की गई है. कोर्ट ने इस पर भी खेद जताया है. कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को 15 दिन के अंदर मां के नाम के साथ दूसरा सर्टिफिकेट जारी करने का समय दिया है.

 

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