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ग्लोबल साउथ की चिंताओं पर विचार के लिए पिछले साल दो बैठकों में चीन शामिल नहीं हुआ : जयशंकर

तोक्यो
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 'ग्लोबल साउथ' में भारत के नेतृत्व पर जोर देते हुए कहा कि इस मंच के 125 देशों ने भारत पर अपना विश्वास जताया है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ की चिंताओं पर विचार के लिए पिछले साल भारत द्वारा आहूत दो बैठकों में चीन शामिल नहीं हुआ।

यहां भारत-जापान साझेदारी पर 'निक्की फोरम' को संबोधित करते हुए भारत के शीर्ष राजनयिक ने कहा कि 'ग्लोबल साउथ' के देश कई मुद्दों पर एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखते हैं। 'ग्लोबल साउथ' शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।

जयशंकर ने कहा, ''कई मुद्दों पर ये देश एक-दूसरे के प्रति सहानूभूति रखते हैं। कोविड से यह भावना बढ़ गयी, क्योंकि ग्लोबल साउथ के कई देशों को लगा कि वे टीका मिलने के मामले में कतार में सबसे पीछे खड़े हैं। जब भारत जी20 का अध्यक्ष बना, तब भी उन्हें लगा कि उनकी चिंताएं जी20 के एजेंडे में भी नहीं है।''

उन्होंने कहा, ''इसलिए हमने ग्लोबल साउथ के नेताओं के साथ दो बैठकें कीं, क्योंकि हम इन 125 देशों की आवाज सुनना चाहते थे और फिर जी20 के समक्ष कई मुद्दे रखे, जो इन 125 देशों के सामूहिक विचार थे।'' उन्होंने कहा कि 'ग्लोबल साउथ' के देश जानते हैं कि असल में क्या हो रहा है, उनके लिए कौन बोल रहा है और उनके मुद्दों पर कैसे बातचीत की जा रही है।

जयशंकर ने कहा, ''वे यह नहीं मानते कि यह महज संयोग है कि भारत की अध्यक्षता में अफ्रीकी संघ को जी20 की सदस्यता मिली। इसलिए ग्लोबल साउथ हम पर यकीन करता है।'' उन्होंने जी20 शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के शामिल न होने के संदर्भ में कहा, ''पिछले साल उनकी (ग्लोबल साउथ की) चिंताओं को सुनने के लिए हमने जो दो शिखर सम्मेलन आयोजित किए, मुझे नहीं लगता कि चीन उसमें उपस्थित हुआ था।''

रूस के साथ भारत के संबंधों और यूक्रेन में युद्ध की उसकी आलोचना पर विदेश मंत्री ने कहा, ''कई बार विश्व राजनीति में, देश एक मुद्दा, एक स्थिति, एक सिद्धांत चुनते हैं और वे इसपर इसलिए जोर देते हैं कि वह उनके अनुकूल होता है। लेकिन अगर कोई सिद्धांत पर गौर करे तो भारत में हमलोग किसी अन्य देश के मुकाबले बेहतर जानते हैं।''

उन्होंने कहा, ''आजादी मिलने के तुंरत बाद, हमने आक्रमण देखा, हमारी सीमाओं में बदलाव की कोशिश हुई और बल्कि आज भी भारत के कुछ हिस्सों पर एक अन्य देश का कब्जा है, लेकिन हमने इसपर दुनिया को यह कहते नहीं देखा कि चलो हम सभी भारत का साथ दें।''

जयशंकर ने कहा, ''आज हमें बताया जा रहा है कि यह सिद्धांतों का मामला है। काश, मैं यह सिद्धांत पिछले 80 वर्ष में देखता। मैंने इन सिद्धांतों को मनमाने ढंग से इस्तेमाल करते हुए देखा है।'' उन्होंने कहा, ''मैं कहूंगा कि हमारे साथ अन्याय किया गया। मैं इसकी पैरवी नहीं कर रहा हूं कि हर किसी के साथ ऐसा किया जाना चाहिए। हमारा रुख बहुत स्पष्ट रहा है। मेरे प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बगल में खड़े होकर कहा है कि हम इस संघर्ष को खत्म होते देखना चाहते हैं।''

 

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