धर्म/ज्योतिष

क्या आप जानते है कुछ लोग करते हैं होलाष्टक का इंतजार, जानें क्यों

होलाष्टक यानी होली के आठ दिन हिंदू धर्म में तपस्या के दिन हैं, इसे आमतौर पर लोग भले ही अशुभ मानते हैं, लेकिन कुछ लोग हैं जिन्हें होलाष्टक का इंतजार रहता है, ये अपने लिए होलाष्टक शुभ मानते हैं…आइये जानते हैं Holashtak 2024 का किसको है इंतजार

तपस्या के दिन होते हैं होलाष्टक

हिंदू धर्म में होलाष्टक तपस्या के दिन होते हैं। ये आठ दिन दान पुण्य के लिए विशेष होते हैं। इसलिए इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए। इससे विशेष पुण्य फल मिलता है। इसके अलावा इस समय आध्यात्मिक कार्यों में समय बिताना चाहिए और सदाचार, संयम, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
तांत्रिक करते हैं होलाष्टक का इंतजार

धर्म ग्रंथों के अनुसार होलाष्टक तांत्रिकों के लिए अनुकूल मानी जाती है, क्योंकि इस समय वे साधना के माध्यम से अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। होली का उत्सव होलाष्टक की शुरुआत के साथ शुरू होता है और फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन धुलेंडी पर समाप्त होता है।

होलाष्टक की कहानी

विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार (holashtak kahani ) राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे। वे नियमित भगवान की पूजा आराधना में खोए रहते थे। इसके खिलाफ हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को चेतावनी दी थी। लेकिन प्रह्लाद ने पिता की बात नहीं मानी। इससे हिरण्यकश्यप गुस्सा आ गया, उसने प्रह्लाद को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। पिता पुत्र के संबंध इतने खराब हो गए कि राक्षस राज हिरण्यकश्यप को मारने का फैसला कर लिया। उसने फाल्गुन माह की अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों तक अलग-अलग तरीकों से प्रताड़ित किया। आखिरी दिन हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का काम सौंपा।

होलिका को जन्म से वरदान प्राप्त था कि उसे आग से कोई नुकसान नहीं होगा। भाई के आदेश पर होलिका ने भतीजे प्रह्लाद को अपनी गोद में उठा लिया और उसे मारने के इरादे से आग पर बैठ गई। लेकिन ईश्वर पर प्रह्लाद की अटूट आस्था और भक्ति के कारण भगवान विष्णु ने उसे सुरक्षा दी और वे पूरी तरह से सुरक्षित बाहर आ गए। जबकि होलिका आग में जलकर मर गई। प्रह्लाद को यातना देने वाली होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। मान्यता है कि इसी कारण हिंदू धर्म में इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है।

होलाष्टक की कहानी नंबर 2

शिवपुराण की एक कथा (holashtak kahani) के अनुसार सती द्वारा आग में प्रवेश किए जाने के बाद भगवान शिव ने ध्यान समाधि में जाने का निर्णय ले लिया था। बाद में उनका देवी पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ, पुनर्जन्म के बाद सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन महादेव उनकी भावनाओं को नजरअंदाज कर समाधि में चले गए। इस पर देवताओं ने भगवान काम देव को भगवान शिव को देवी पार्वती से विवाह करने के लिए प्रेरित करने का काम सौंपा।

भगवान काम देव ने भगवान शिव पर कामबाण से प्रहार कर दिया, जिससे भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया। इससे वे क्रोधित हो गए और उन्होंने फाल्गुन अष्टमी के दिन कामदेव पर अपनी तीसरी आंख खोल दी। इसके कारण कामदेव भस्म हो गए। हालांकि भगवान कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना पर भगवान शिव ने कामदेव को राख से पुनर्जीवित कर दिया। लेकिन तभी से इस समय को होलाष्टक माना जाता है।

होलाष्टक को अशुभ मानने का ज्योतिषीय कारण

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अक्सर इस समय सूर्य, चंद्रमा, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनि, राहु और शुक्र जैसे ग्रह परिवर्तन से गुजरते हैं और परिणामों की अनिश्चितता बनी रहती है। इस समय ग्रहों में उग्रता बनी रहती है। इसलिए इस समय शुभ कार्यों को टाल देना अच्छा माना जाता है।

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