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फ्रांस गर्भपात को संवैधानिक अधिकार का दर्जा देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया

फ्रांस की महिलाओं को मिला गर्भपात का संवैधानिक अधिकार

फ्रांस गर्भपात को संवैधानिक अधिकार का दर्जा देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया

अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने ट्रंप को कैपिटल दंगों के लिए जवाबदेह ठहराने के प्रयासों को खारिज किया

पेरिस
 फ्रांस महिलाओं को विशेष अधिकार देते हुए गर्भपात को संवैधानिक अधिकार का दर्जा देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां द्वारा बुलाए गए संसद के दोनों सदनों के विशेष सत्र में गर्भपात को संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक फ्रांस की संसद में इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया गया। इससे पहले राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने कहा कि उन्होंने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने का वादा किया था। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद प्रधानमंत्री गेब्रियल अटाल ने पेरिस में वर्सेल्स पैलेस में एकत्र हुए सांसदों और सीनेटरों से कहा कि हम सभी महिलाओं को एक संदेश भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं का शरीर उनका है और कोई भी उनके बदले निर्णय नहीं ले सकता है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका और कई अन्य देशों की तुलना में फ्रांस में गर्भपात के अधिकारों को बहुत अधिक स्वीकार्यता प्राप्त है। फ्रांस की करीब 80 प्रतिशत आबादी इस तथ्य का समर्थन करती है कि उनके देश में गर्भपात कानूनी है।

अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने ट्रंप को कैपिटल दंगों के लिए जवाबदेह ठहराने के प्रयासों को खारिज किया

वाशिंगटन
अमेरिका के कैपिटल (संसद परिसर) दंगे के लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जवाबदेह ठहराने संबंधी प्रयासों को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके बाद अब ट्रंप का नाम प्राथमिक मतपत्र पर दिखाई देगा।

अदालत ने ट्रंप को कोलोराडो के रिपब्लिकन प्राथमिक मतदान से अयोग्य घोषित कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने सुपर मंगलवार प्राइमरी से एक दिन पहले यह फैसला सुनाया।

न्यायाधीश ने सर्वसम्मति से निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया कि ट्रंप को छह जनवरी, 2021, कैपिटल दंगा मामले में उनकी कथित भूमिका के कारण 14 वें संशोधन के तहत सार्वजनिक पद धारण करने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

कोलोराडो के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी तरह के पहले फैसले में कहा था कि प्रावधान, धारा 3, ट्रंप पर लागू की जा सकती है। इससे पहले किसी भी अदालत ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर धारा 3 लागू नहीं की थी। कोलोराडो, मेन और इलिनोइस में ट्रंप का नाम मतपत्रों से बाहर कर दिया गया था, लेकिन तीनों फैसलों पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आना था। ट्रंप के वकीलों ने दलील दी कि छह जनवरी का दंगा विद्रोह नहीं था और अगर ऐसा था भी, तो ट्रंप दंगाइयों में शामिल नहीं हुए थे।

 

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