मध्यप्रदेश

हमारे शहरों को चाहिए मास्टर प्लानर

भोपाल
भोपाल के प्रस्तावित मास्टर प्लान को निरस्त कर नया मास्टर प्लान बनाने को लेकर जो निर्णय लिया गया है, उसके तहत अब 2047 तक का नया मास्टर प्लान लोकसभा चुनाव के बाद बनाया जाएगा। करीब दो साल की तैयारियों के बाद भोपाल का मास्टर प्लान तैयार हुआ था जिसे लेकर करीब 5 हजार आपत्तियां आई थीं जिसे दखते हुए जनप्रतिनिधियों की राय पर सरकार ने निर्णय लिया कि नए सिरे से मास्टर प्लान बनाया जाए। उधर, जबलपुर और इंदौर के भी मास्टर प्लान पाइप लाइन में हैं। सिर्फ ग्वालियर में नया मास्टर प्लान लागू हुआ है। भोपाल मास्टर प्लान 2031 को जन प्रतिनिधियों के विरोध के कारण कैंसिल किया गया लेकिन इससे पहले भी चार बार इसका प्रस्ताव खारिज किया जा चुका है

रसूखदार अधिकारियों-नेताओं का खेल!
भोपाल मास्टर प्लान के वास्तविकता के धरातल पर नहीं आने की कई वजहें है। इसकी खास वजह है रसूखदार अधिकरियों और नेताओं का खेल जिनकी लेक के कैचमेंट एरिया में जमीनें हैं जिनके कारण बार बार मास्टर प्लान में रोड़े आते रहे। उसके अलावा इसकी प्लानिंग करने वाले अफसरों ने कभी जमीन पर उतर कर योजना बनायी ही नहीं। दावे आपत्तियों के मामले में भी इसकी औपचारिकता ही पूरी की जाती रही। भोपाल मास्टर प्लान को ग्लोबल जीआईएस मेपिंग के जरिए बनाना था। यह जरूरी था क्योंकि इसकी लेयर को अगर क्लियर नहीं किया जाता तो इसके लिये शहर को केन्द्र से अमृत -2 योजना का पैसा नहीं मिल पाता। पर इसकी भी औपचारिकता की गयी। कहीं भी न तो रोड्स की मेपिंग की गयी और न ही ट्रैफिक की। इसी के कारण शहर का सीवेज मैनेजमेंट सिस्टम भी लेयरिंग नहीं हो पाया।

भोपाल में 33 साल से चल रहा है यही सिलसिला?
भोपाल मास्टर प्लान को सबसे पहले 1991 में एमएन बुच ने बनवाया था। उसे बाद 1995 में भोपाल विकास योजना आयी , उसके बाद 2009 में भोपाल विकास योजना आयी जो 2021 तक के लिये थी।  फिर 2021 में इसको 2031 के लिये प्लान करने की योजना बनायी गयी।  हालांकि, बीच में तीन बार मास्टर प्लान को लेकर कवायदें होती रहीं। 2021 में तो इसे लेकर दावे-आपत्ति भी बुलाए गए थे। हालांकि, इसमें कई बड़े संशोधन किए जाने थे।  बड़ा तालाब के कैचमेंट एरिया, टाइगर मूवमेंट एरिया, सड़कों आदि को लेकर यह संशोधन थे। इसके चलते यह ड्राफ्ट जारी नहीं हो सका था। इस साल फिर से मास्टर प्लान को लेकर सारी कवायदें हुईं, लेकिन फिर से यह खारिज कर दिया गया।

इंदौर का ड्राफ्ट मार्च तक तैयार करने का लक्ष्य
इंदौर सहित प्रदेशभर में डिजीटल मास्टर प्लानिंग पर काम चल रहा है। इंदौर के मास्टर प्लान में भी मार्च तक ड्राफ्ट प्लान को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। नीति आयोग की सिफारिश के मुताबिक भी 260 से अधिक पद मंजूर हैं, जिन पर नियुक्ति होना है। इंदौर जैसे बढ़ते शहर के लिए अब मेट्रो पोलीटन मास्टर प्लानर की जरूरत है, जिसकी मांग तमाम विशेषज्ञ और जनप्रतिनिधि भी करते रहे हैं। इंदौर का आगामी मास्टर प्लान बनाया जा रहा है, उसके चलते ही देवास, पीथमपुर, महू, उज्जैन सहित अन्य क्षेत्रों को उसमें शामिल करने की भी मांग की जाती रही है, क्योंकि भविष्य में मेट्रो प्रोजेक्ट भी आएगा। इंदौर सहित मध्यप्रदेश में ही नगर तथा ग्राम निवेश विभाग का स्टाफ का भारी टोटा है।

तीन महानगरों का हाल

  • ग्वालियर लागू: ग्वालियर निवेश क्षेत्र का गठन वर्ष 1974 में किया गया था। उस समय नगरीय क्षेत्र के अलावा आसपास के 28 गांवों को शामिल कर 20699.41 हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल किया था। नए मास्टर प्लान में अब यह क्षेत्र बढ़ाकर 53420.57 हेक्टेयर कर दिया गया है। ऐसे में पिछले 49 वर्षों में शहर का दायरा 32 हजार 721 हेक्टेयर बढ़ गया है।
  • इंदौर, 200 साल में तीन: वर्ष 1818 में होलकर महाराज ने पैट्रिक गिडीज से इंदौर का पहला मास्टर प्लान बनवाया था। उसे मास्टर प्लान के हिसाब से राजवाड़ा और आसपास के क्षेत्र का विकास हुआ।  दूसरा मास्टर प्लान वर्ष 1975 में बना। तीसरा मास्टर प्लान 1993 में बनना था, लेकिन नही बन पाया। 1 जनवरी 2008 का इंदौर का तीसरा मास्टर प्लान लागू हुआ।
  • जबलपुर: 1979 से बन रहा मास्टर प्लान सिर्फ कागज का पुलिंदा साबित हो रहा है। मास्टर प्लान में शामिल दर्जनों सड़कों की जो चौड़ाई तय हुई थी वो 36 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई है। उधर मास्टर प्लान  अधिकारियों का कहना है कि उनका काम सिर्फ प्लान तैयार करना है पालन कराना नहीं।

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