देश

झारखण्ड-की रसीता-ललिता ने महाकुंभ में बिछुड़ने से बचने एक-दूसरे के हाथ में बांधा रिबन

रांची।

कुंभ मेले में अलग होना और दशकों बाद फिर से मिलना बॉलीवुड फिल्मों की एक आम कहानी है। मगर, ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ फिल्मी कहानियां हैं, बल्कि ऐसी कई घटनाएं वास्तव में हुई हैं, जहां लोग बड़े पैमाने पर मेले में खो गए।

मगर इस बार के महाकुंभ मेले में ऐसी किसी भी स्थिति से बचने के लिए दो बहनों ने एक नई तरकीब निकाली। वह एक दूसरे से बंधीं नजर आईं।

हर 12 साल में मनाया जाता महाकुंभ
यूपी की संगम नगरी में हर 12 साल में मनाया जाने वाला भव्य महाकुंभ मेले का दिव्य और भव्य आगाज हो गया है। पौष पूर्णिमा के साथ ही 26 फरवरी तक चलने वाले महाकुंभ की शुरुआत हो गई है। इस बार महाकुंभ में 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने का अनुमान लगाया जा रहा है। महाकुंभ के पहले दिन से प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट रही है। हजारों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र डुबकी लगा रहे हैं। अभी तक 60 लाख श्रद्धालुओं ने संगम तट पर डुबकी लगा ली है। यह गंगा, यमुना और 'रहस्यमय' सरस्वती नदियों का पवित्र संगम है।

लाल रिबन से बांधा
झारखंड की रहने वाली बहनों गीता और ललिता ने एक दूसरे के हाथ में पहनी चूड़ियों को लाल रिबन से बांध दिया है। वे पिछले दो दिनों से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक-दूसरे से बंधकर घूम रही हैं। उनका कहना है कि वे रिबन को सिर्फ शौचालय जाने के समय खोलती हैं। जब तक महाकुंभ में रहने वाली हैं तब तक वह ऐसे ही बंधी रहेंगी।

144 साल बाद दुर्लभ संयोग
144 साल बाद दुर्लभ संयोग में रविवार की आधी रात संगम पर पौष पूर्णिमा की प्रथम डुबकी के साथ महाकुंभ का शुभारंभ हुआ। विपरीत विचारों, मतों, संस्कृतियों, परंपराओं स्वरूपों का गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी के तट पर महामिलन 45 दिन तक चलेगा। इस अमृतमयी महाकुंभ में देश-दुनिया से 45 करोड़ श्रद्धालुओं, संतों-भक्तों, कल्पवासियों और अतिथियों के डुबकी लगाने का अनुमान है।

कोहरा-कंपकंपी पीछे छूटी, आगे आस्था का जन ज्वार
घना कोहरा, थरथरा देने वाली कंपकंपी आस्था के आगे मीलों पीछे छूट गई। संगम पर आधी रात लाखों श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। कहीं तिल रखने की जगह नहीं बची। आधी रात से ही पौष पूर्णिमा की प्रथम डुबकी का शुभारंभ हो गया। इसी के साथ संगम की रेती पर जप, तप और ध्यान की वेदियां सजाकर मास पर्यंत यज्ञ-अनुष्ठानों के साथ कल्पवास भी आरंभ हो गया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button