इंदौर बीआरटीएस पर बनेंगे पांच ब्रिज, जनवरी से शुरू होगा सर्वे
इंदौर
इंदौर के बीआरटीएस को प्रदेश सरकार ने हटाने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पिछली इंदौर यात्रा के दौरान बीआरटीएस तोड़ने की घोषणा की थी।
अभी नगर निगम ने बीआरटीएस हटाने का काम शुरू नहीं किया, लेकिन बीआरटीएस के पांच प्रमुख जंक्शन पर ब्रिज के लिए प्री फिजिबिलिटी सर्वे शुरू करने के लिए नगर निगम ने टेंडर जारी किए है। जनवरी माह में सर्वे शुरू करने की तैयारी है, हालांकि नगर निगम को बीआरटीएस की बस लेन हटाने के लिए हाईकोर्ट से अनुमति लेना होगी।
इन चौराहों पर होगा सर्वे
बीआरटीएस के ब्रिज के लिए एलआईजी, पलासिया चौराहा, गीता भवन चौराहा, शिवाजी वाटिका, नवलखा चौराहा पर ब्रिज के लिए सर्वे होगा। सभी ब्रिज बीआरटीएस के मध्य हिस्से में बनाए जाएंगे। बीआरटीएस के भंवरकुआं पर ब्रिज बनकर तैयार हो चुका है, जबकि निरंजनपुर चौराहा पर ब्रिज का निर्माण शुरू हो चुका है।
बीआटीएस के सबसे व्यस्त विजय नगर चौराहे पर ब्रिज नहीं बन पाएगा,क्योकि चौराहे से मेट्रो ट्रेन रुट क्रास कर रहा है। इसके अलावा पलासिया चौराहा से भी मेट्रो का रुट क्रास होगा। इस कारण यहां ब्रिज की ऊंचाई ज्यादा रखना होगी।
टूटने और लाइन शिफ्टिंग पर भी खर्च होंगे करोड़ों
बीआरटीएस ब्रिज तीन सौ करोड़ रुपये में बना है, लेकिन बीआरटीएस की बस लेन और स्टेशनों को तोड़कर ब्रिज बनाने के लिए भी करोड़ों रुपये की राशि खर्च होगी, क्योकि बीआरटीएस के दोनो तरफ सीवरेज लाइन बिछाई गई है, जबकि मध्य हिस्से में नर्मदा लाइन बिछी है। चौराहों पर नर्मदा लाइन भी शिफ्ट करना होगी। इसमें भी तगड़ा खर्च आना है।
बीआरटीएस की बस लेन के मध्य हिस्से में बस स्टेशन भी बने है, जो चार फीट ऊचें प्लेटफार्म पर बनाए गए है। बस लेन की रैलिंग हटाने के साथ उन्हें भी तोड़ना होगा। मेयर पुष्य मित्र भार्गव का कहना है कि बीआरटीएस को लेकर कोर्ट में याचिका विचाराधीन है। बीआरटीएस हटाने का फैसला नीतिगत है। हम कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखेंगे। बीआरटीएस के जंक्शनों पर ब्रिज के लिए जल्दी सर्वे शुरू होगा।
जयपुर में भी बीआरटीएस प्रोजेक्ट रहा फ्लाॅट
राजस्थान सरकार ने जयपुर में भी बीआरटीएस के दो काॅरिडोर बनाए थे, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो सका। सरकार ने 439 करोड़ रुपये खर्च कर 39 किलोमीटर का बीआरटीएस बनाया था,लेकिन अफसरों ने जितना दिमाग बजट को खपाने में लगाया, उतना बीआरटीएस के सफल संचालन में नहीं लगाया गया। न ठीक से बसें खरीदी गई और न ही ट्रैफिक स्टडी हो पाई। वर्ष 2010 में गेहलोत सरकार के समय यह प्रोजेक्ट अमल में आया था। बाद में वंसुधरा सरकार ने इस प्रोजेक्ट से किनारा कर लिया।