उत्तर प्रदेश

50 से कम नामांकन वाले विद्यालय बंद करने की बात पर गरमाई सियासत, प्रियंका-माया ने सरकार पर साधा निशाना

लखनऊ

प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की कम होती संख्या को लेकर ऐसे विद्यालयों का पास के विद्यालयों में संविलियन (मर्ज) कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके तहत 50 से कम नामांकन वाले विद्यालयों को चिह्नित कर उनके पास के विद्यालय में भेजने को लेकर सभी जिलों में रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया है। वहीं जर्जर विद्यालयों को भी एक महीने में ध्वस्त कराने की प्रक्रिया पूरी करने को कहा गया है। इस तरह के निर्देशों के बाद प्रदेश में सियासत गरमा गई है। बसपा सुप्रीमों मायावती और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सरकार पर निशाना साधा है।

प्रियंका ने कहा कि यह दलित और पिछड़ों के खिलाफ फैसला
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने 27,764 प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया है। यह कदम शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ दलित, पिछड़े, गरीब और वंचित तबकों के बच्चों के खिलाफ है। यूपीए सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लाई थी जिसके तहत व्यवस्था की गई थी कि हर एक किलोमीटर की परिधि में एक प्राइमरी विद्यालय हो ताकि हर तबके के बच्चों के लिए स्कूल सुलभ हो।कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं का मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि जनता का कल्याण करना है। भाजपा नहीं चाहती कि कमजोर तबके के बच्चों के लिए शिक्षा सुलभ हो।

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा 50 से कम छात्राें वाले बदहाल 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का फैसला उचित नहीं है। ऐसे में गरीब बच्चे आखिर कहां और कैसे पढ़ेंगे। राज्य सरकार को दूसरे स्कूलों में उनका विलय करने के बजाय उनमें जरूरी सुधार करके बेहतर बनाने के उपाय करने चाहिए।

बसपा सुप्रीमो ने रविवार को सोशल मीडिया पर जारी बयान में कहा कि यूपी व देश के अधिकतर राज्यों में खासकर प्राइमरी व सेकंडरी शिक्षा का बुरा हाल है। इसकी वजह से गरीब परिवारों के करोड़ों बच्चे अच्छी शिक्षा से दूर होने के साथ सही शिक्षा से भी वंचित हैं। ओडिसा सरकार द्वारा कम छात्राें वाले स्कूलों को बंद करने का फैसला भी अनुचित है। सरकारों की इसी गरीब व जनविरोधी नीतियों का परिणाम है कि लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं। जैसा कि सर्वे से स्पष्ट है, लेकिन सरकार द्वारा शिक्षा पर समुचित धन व ध्यान देकर इनमें जरूरी सुधार करने के बजाय इनका बंद करना ठीक नहीं है।

बैठक में दी गई है यह जानकारी
हाल ही में प्रदेश के सभी मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक व बेसिक शिक्षा अधिकारियों की बैठक में यह जानकारी दी गई कि इस सत्र में बच्चों की संख्या 1.49 करोड़ है। वहीं केंद्र सरकार द्वारा विद्यालयों को पूर्ण रूप से क्रियाशील व औचित्यपूर्ण बनाने के निर्देश दिए गए हैं। केंद्र ने अपेक्षा की है कि कम नामांकन वाले विद्यालयों का पास के अन्य विद्यालयों में संविलियन (मर्ज) करने की सम्भावना देख ली जाए। 50 से कम नामांकन वाले प्राथमिक विद्यालयों से जुड़ी प्रक्रिया प्राथमिकता पर पूरी की जाए। इसे ध्यान में रखकर कार्ययोजना तैयार की जाए कि उस ग्राम पंचायत में मानक विद्यालय है या नहीं। किस विद्यालय को पास के अन्य विद्यालय में मर्ज किया जा सकता है। बच्चों को कितनी दूरी तय करनी होगी, भवन व शिक्षकों, परिवहन की उपलब्धता, नहर, नाला, सड़क या हाईवे आदि को देखते हुए हर विद्यालय के लिए रिपोर्ट तैयार की जाए।

 

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