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राजस्थान-केकड़ी के मेले में गोपाल महाराज के बेवाण के नीचे से निकली लाल गाय ने दिए अच्छे संकेत

केकड़ी.

अन्नकूट महोत्सव के अंतर्गत केकड़ी के सांपला धाम पर प्रदेश का प्रसिद्ध गाय मेला शनिवार को धूमधाम से भरा। भगवान गोपाल महाराज की सवारी निकाली गई। इस दौरान शाम को भगवान के बेवाण के नीचे से लाल गाय निकली, जिससे आने वाले समय को अच्छा होने का संकेत मानकर क्षेत्रवासियों में हर्ष व्याप्त हो गया।

केकड़ी जिले के सांपला ग्राम में सुप्रसिद्ध गाय मेला शनिवार को सम्पन्न हुआ। मेले में सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने भगवान गोपाल महाराज की भक्ति की। मंदिर के पंडित प्रहलाद चंद्र त्रिपाठी द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ मंदिर के सभी पुजारियों को हवन यज्ञ के माध्यम से जनेऊ धारण कराया गया। मंदिर को गोमूत्र पंचामृत से पवित्र कर सुबह 11 बजे ढोल नगाड़ों के साथ भगवान गोपाल महाराज का बेवाण निकाला गया, जो राम चौक मुख्य बाजार होता हुआ रावला चौक पहुंचा, जहां भगवान गोपाल महाराज के अनन्य भक्त अहिल्या बाई को एक चमत्कारी झांकी के माध्यम से दर्शन कराए गए। इस चमत्कारी झांकी के दर्शन के लिए अजमेर सहित जयपुर, टोंक, भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा और कई जिलों के हजारों श्रद्धालु उमड़े। दोपहर को भगवान के बेवाण को कीर्ति स्तंभ पर लाया गया, जहां ठीकरे को लेकर गायों के बीच में पूजा अर्चना की गई और उसे गंगाजल छिड़क कर गायों के बीच घुमाया गया। शाम को करीब पौने पांच बजे ठीकरे के माध्यम से एक लाल रंग की गाय भीड़ में से होती हुई बेवाण के पास पहुंची और नीचे से निकल गई। इस दौरान पूरा वातावरण द्वारकाधीश के जयकारों से गूंज उठा। बेवाण के नीचे से निकली गाय को भगवान की परिक्रमा लगवाकर लड्डू खिलाया गया। भजन गायक रतन लाल पीपलवा व हरिराम चौधरी आदि ने भजनों की प्रस्तुति दी। सांपला का गाय मेला एक अनोखा अनुष्ठान है, जिसमें जिस रंग की गाय ठीकरे के माध्यम से बेवाण के नीचे से होकर निकलती है, उसी से आसपास के क्षेत्र में भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है। इस बार लाल गाय निकलने को अच्छे जमाने के संकेत माना जा रहा है। किसान लोग भी अब इसके आधार पर ही खेतों में फसल की बुवाई करेंगे। यह मेला पिछले 600 सालों से भरता आ रहा है, जिसमें आसपास के क्षेत्र के अलावा देशभर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। अन्नकूट के दिन यहां गांव में भगवान की सवारी निकाली जाती है तथा बड़ी संख्या में गांव के कीर्ति चौक में गायों को इकट्ठा किया जाता है। इन गायों में से कोई एक गाय खुदबखुद भगवान की सवारी के नीचे से निकलकर मंदिर के अंदर तक जाती है। इसी दृश्य को देखने के लिए हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। पिछले सैकड़ों सालों से निभाई जा रही इस परम्परा में सबसे पहले भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना कर उनके बेवाण को पूरे गांव में घुमाते हुए गायों के झुंड से करीब आधा किलोमीटर दूर रोककर भजन कीर्तन किए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर, हजारों गायों के झुंड में भगवान के घोटानुमा दडे को घुमाया जाता है, जिसके बाद इन हजारों गायों में से कोई एक गाय दौड़ती हुई भगवान के बेवाण तक पहुंचती है और बेवाण के नीचे से निकलकर मंदिर के अंदर तक जाती है। इस परंपरा के अनुसार गाय के रंग से आने वाली फसल कैसी होगी, इसका आकलन किया जाता है। सांपला गांव में आयोजित होने वाला द्वारिकाधीश गोपाल महाराज का यह गाय मेला ऐतिहासिक है। मान्यता है कि पुरातन काल में यहां स्वयं द्वारकाधीश पधारते थे। उनके यहां आने की स्मृति में ही बरसों से यह मेला भरता आ रहा है। कहा जाता है कि गांव के दामोदर दास महाराज भगवान कृष्ण के भक्त थे, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर संवत 1474 में द्वारका से भगवान द्वारकाधीश गोपाल महाराज गांव के बाहर से निकलने वाले रेवड़ में बैल की पैठ (गाड़ी) पर सवार होकर आए और मूर्तियों के रूप में सांपला गांव में आकर दर्शन दिए, तभी से यह मेला भर रहा है।

मेला ग्राउंड में सैकड़ों गायों के झुंड के बीच चांदी के ठिकरे को गायों के बीच घुमाया जाता है, जिसके बाद कोई एक गाय सवारी के नीचे से निकलकर मंदिर में जाती है। इसके विपरीत यदि कोई गाय नहीं आती है तो इसे पुजारी द्वारा भगवान की सेवा और पूजा-अर्चना में लापरवाही माना जाता है, जिसे लेकर सभी पुजारियों के हाथ बंधवाकर द्वारकाधीश गोपाल महाराज के भक्त दामोदरदास के चरणस्थल पर जाकर क्षमा याचना कराई जाती है और चांदी के सवा रुपये का अर्थदंड भी लगाया जाता है।

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