बिहार-गया में धीरेन्द्र शास्त्री बोले-हवस का मौलवी क्यों नहीं हो सकता?
गया.
गया धाम में इन दिनों पितृपक्ष मेला आयोजित है। अपने पितरों की पिंडदान, तर्पण व श्रद्धाकर्म करने के लिए हर दिन लाखों तीर्थयात्रियों का गया जी आने का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में बाबा बागेश्वर धाम के आचार्य पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दो सौ अनुयायियों के साथ पिंडदान करने दो दिनों से गया जी आए हुए हैं। बाबा बागेश्वर अपना प्रवास स्थल बोधगया में स्थित एक होटल को बनाए है। होटल परिसर में बने भव्य पंडाल में बाबा बागेश्वर धाम सरकार के पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री अपने 200 विशेष भक्तो के पूर्वजों का पिंडदान और भागवत कथा सुनाएंगे।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से आशीर्वाद लेने ओबीसी मंत्री हरि सहनी और पर्यावरण मंत्री डॉ प्रेम कुमार भी पहुंचे थे। इस दौरान अपने भक्तो को पितृपक्ष की महिमा को बता रहे थे। इसी बीच सभी भक्तो के सामने धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने पर्यावरण मंत्री को कहा कहां है मोटकु राम यहां आओ। उसके बाद पर्यावरण मंत्री के द्वारा मखाना का माला पहना कर स्वागत किया और आशीर्वाद लिया। मखाना का माला पहनाने पर उन्होंने कहा कि हमारे यहां बुंदेलखंड में मरने के बाद मखाना का माला पहनाया जाता है। आपने तो जीवित में हीं पहना दिया। कहा कि यह मिथिला की परंपरा है।
भगवान श्री राम ने गयाजी में किसी था पिंडदान
भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पितृपक्ष का यह 17 दिन पूर्वजों के लिए है। जब भी समय मिले, गयाजी पिंडदान करने अवश्य आना।भगवान श्री राम ने भी गयाजी आकर पिंडदान किया था। अपने पुरखों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना है। वर्तमान समय में भारत के लोग जिन जिन समस्याओं से घिरा है जितनी विपत्तियों का सामना मनुष्य जाति कर रहा है। उसका पहला कारण पितरों की नाराज़गी है। पितरों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना, उनके मोक्ष के लिए प्रार्थना करना, नियम, व्रत करना यह परम कर्तव्य है। जो पुत्र अपने पुरखों का श्रद्धा से श्राद्ध करवाएगा। वहीं पुत्र कहने लायक कहलाएगा। एख पुत्र होने का धर्म अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना। पुत्र का धर्म संपति बंटवाना नही है। नाम पिता का संपति पिता का मजे पुत्र ले रहा है। पिता को वृद्धाश्रम छोड़ देते है। जिसने जन्म दिया मां को भी डांट देते हो। खुद विचार करना की मां पिता ने तुम्हारे लिए सब कुछ किया तो तुमने क्या किया। गया में पिंडदान करने से यह मतलब नहीं है की आप ऋण से मुक्त हो गए है। पूर्वजों के ऋण से कभी भी कोई मुक्त नहीं हो सकता है। गया में पिंडदान किया यह बढ़िया है।
मरने के बाद गंगा पहुंचाओ, उससे अच्छा जीते जी गंगाजल पिलाओ
मरने के बाद अगर पिता को गंगा पहुंचाओ तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। जीते जी गंगाजल पिलाओ वह अच्छा है। जीवित रहते समय अवहेलना किया मरने के बाद त्रिपिंडी श्राद्ध, भागवत कथा करवा रहे है तो जीवन में पितृ दोष लगने का मुख्य कारण यही है। जीवित में नकराते रहे और मरने के बाद पुकार रहे है।इसलिए दोष भुगतना पड़ता है। पूर्वजों की उपेक्षा करने, ठीक से अंतिम संस्कार नही करना,श्राद्ध कार्यों को हास्य समझना के कारण पितृ दोष लगता है।
श्री कृष्ण करे तो लीला और मानव करे तो करेक्टर ढीला
आचार्य पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर कई पोस्ट होते हैं। श्री कृष्ण करे तो लीला और मानव करे तो करेक्टर ढीला संदेश पर कहा कि भगवान की समावस्था में चल रहे हो, नकल कर रहे हो तो भगवान ने तो गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। तुम अपनी लुगाई को उठा के दिखा। भगवान ने कालिया नाग पर नृत्य किया था तुम काला नाग को पकड़ कर बता। इसलिए भगवान भगवान है।
सनातनी अपने ही चीजों का बनाते है मजाक
हमलोग इतने विचित्र लोग हैं। सनातनी केवल अपनी ही चीजों को मजाक बनाते हैं। अपने संतो का मजाक, तीर्थो, मंदिरों का मजाक, पाखंड की दुकान, संतो का मजाक ढोंगी पाखंडी। कभी आपने किसी मुल्ला को नहीं देखा होगा। मुसलमान कभी भी अपने मौलवियों की बेइज्जत नहीं करते हैं, लेकिन हमलोग करते हैं। हम किसी के विरोध में नही हैं। हवस का पुजारी सुना होगा। हवस का मौलवी कभी नहीं सुना होगा तो मौलवी क्यों नहीं हो सकता है। क्योंकि हम लोग के दिमाग में बहुत ही प्रायोजित तरीके से ब्रेन को वॉश करने के लिए शब्दों को पहुंचाया जा रहा है और भरा जा रहा है, इसलिए श्राद्ध को लोग हास्य समझते हैं।
जातिवाद नहीं हिंदुत्व के पक्ष में है हम
आचार्य पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हम जातिवाद के बिलकुल पक्ष में नहीं है। हम सिर्फ हिंदुत्तव के पक्ष में है, लेकिन हमारे पूर्वजों के जो संस्कार है उसे मानेंगे। मानिए जब प्यार किया तो डरना क्या..? लोग क्या बोल रहे है यह उनका काम है आप कीजिए। मरने के बाद अगर कोई मुंडन नही कराता है तो आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण है। शवदाह के दौरान कुछ विषाणु बालो में चिपक जाते है। मुड़न कराने से वह विषाणु दूर हो जाते है। अध्यात्मिक तथ्य यह है की हमारे उनके प्रति अपनी श्रद्धा को अर्पित कर रहे है। शरीर का मुकुट बाल है और इन बालो को अर्पित कर रहे है।