चीन की इकॉनमी में 2008 जैसी मंदी के लक्षण, देश में लंबे समय से डिफ्लेशन की स्थिति बनी है
बीजिंग
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश चीन में सबकुछ ठीकठाक नहीं है। देश में 2008 जैसी मंदी के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं। पिछले दो दिन में चीन ने इकॉनमी को गति देने के लिए 2020 के लॉकडाउन की तरह स्टीम्यूलस की घोषणा की है। देश का रियल एस्टेट इंडेक्स दो साल में 82% गिर चुका है। देश में 1999 के बाद सबसे लंबा डिफ्लेशन चल रहा है। बेरोजगारी की दर कई दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। अमेरिका के साथ तनाव चरम पर है और शेयर बाजार की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। सवाल उठता है क्या चीन ग्लोबल इकॉनमी को मंदी की तरफ ले जा रहा है?
चीन की इकॉनमी में सबसे बड़ी समस्या रियल एस्टेट की है। देश की इकॉनमी में इसकी करीब एक तिहाई हिस्सेदारी है लेकिन पिछले कई साल से यह सेक्टर गहरे संकट से जूझ रहा है। इसकी शुरुआत 2021 में उस समय हुई थी जब देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में से एक एवरग्रेंड डूब गई। इससे पिछले दो साल में देश का रियल एस्टेट इंडेक्स 82 फीसदी गिरकर 2008 के स्तर पर आ चुका है। रियल एस्टेट के डूबने से बैंकिंग सेक्टर पर भी खतरा मंडराने लगा है। इसकी वजह यह है कि चीन के बैंकों ने रियल सेक्टर में भारी निवेश किया है।
डिफ्लेशन की स्थिति
चीन में 1999 के बाद सबसे लंबा डिफ्लेशन चल रहा है। 2008 में देश में लगतार पांच तिमाहियों तक डिफ्लेशन की स्थिति रही थी लेकिन इस बार यह उससे भी आगे निकल गया है। पूरी दुनिया महंगाई से त्रस्त है लेकिन चीन में उल्टी गंगा बह रही है। डिफ्लेशन को इनफ्लेशन भी बदतर माना जाता है। इसमें चीजों की कीमत में गिरावट आती है। आमतौर पर यह इकॉनमी धन की आपूर्ति और क्रेडिट में गिरावट से जुड़ी होती है। यह इकॉनमी के लिए अच्छा संकेत नहीं होती है। अगर आपको पता है कि कल चीजों की कीमत गिरनी है तो आप आज क्यों खरीदारी करेंगे। इस तरह एक प्रकार से इकॉनमी फ्रीज हो जाती है।
चीन में बेरोजगारी कई दशक के चरम पर पहुंच गई है। मैन्युफैक्चरिंग सीमित हो गई है और रियल एस्टेट सेक्टर के बैठने से कंस्ट्रक्शन संघर्ष कर रहा है। कंज्यूमर डिमांड काफी कमजोर है। चीन के ग्राहक इस तरह व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि देश मंदी में है। देश के केंद्रीय बैंक ने इकॉनमी को गति देने के लिए हाल में कई घोषणाएं की हैं। रिजर्व रिक्वायरमेंट में 0.5% की कटौती की गई है, 7 दिन के आरआरपी रेट में 0.2 फीसदी कमी की गई है, मोर्टगेज रेट घटाया गया है और बैंकों में 142 अरब डॉलर झोंके गए हैं।
अमेरिका के साथ तनाव
चीन पूंजी जुटाने के लिए अमेरिका की ट्रेजरी सिक्योरिटीज में अपनी होल्डिंग कम कर रहा है। अब उसकी होल्डिंग 780 अरब डॉलर रह गई है जो 15 साल में सबसे कम है। पिछले तीन साल में उसने अमेरिका की ट्रेजरी सिक्योरिटीज अपनी होल्डिंग में 30 फीसदी यानी 300 अरब डॉलर की कमी की है। अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते पिछले कुछ साल से ठीक नहीं चल रहे हैं। दोनों देश एकदूसरे की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने में लगे हैं। अमेरिका ने चीन से आयात होने वाली कई वस्तुओं पर ड्यूटी बढ़ा दी है जो अगले चरणों में लागू होगी।
चीन में मंदी आने से पूरी दुनिया प्रभावित होगी। इसकी वजह यह है कि पिछले करीब तीन दशक से चीन ग्लोबल इकॉनमी का इंजन बना हुआ है। दुनियाभर के बाजार चीन के माल से पटे हैं। अमेरिका और पश्चिम की कई कंपनियां चीन में अच्छा बिजनस कर रही हैं। लेकिन चीन में मंदी से इन कंपनियों का बिजनस भी प्रभावित होगा। चीन की इकॉनमी में जापान की तरह ठहराव आने की आशंका जताई जा रही है। यही वजह है कि चीन में मंदी की आशंका ग्लोबल इकॉनमी के लिए खतरे की घंटी है।