चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश, 2023 में 160 मामले दर्ज हुए
भोपाल
मध्य प्रदेश में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2023 में एमपी में 160 मामले दर्ज किए गए, जो 2022 में 147 ही थे. रैकेटियर बच्चों को निशाना बना रहे हैं. उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्हें मॉर्फ करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर रहे हैं. राज्य की साइबर पुलिस के मुताबिक, रैकेट चलाने वाले केवल बड़े या मेट्रो शहरों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मध्यम आकार के शहरों तक भी पहुंच गए हैं.
साइबर पुलिस के अनुसार, युवाओं और बच्चों द्वारा अपलोड की गई तस्वीरें रैकेटर्स द्वारा चुनी जाती हैं, जो तस्वीरों में बदलाव करते हैं और उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड करते हैं. एक मामले की बात करें तो पुलिस ने कहा कि एक लड़की ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर रक्षा बंधन समारोह की तस्वीर अपलोड की. रैकेटर्स ने फोटोग्राफ उठाया, उसमें बदलाव किया और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया. जब परिवार के सदस्यों को तस्वीर के बारे में पता चला तो वे पुलिस के पास पहुंचे.
MP में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के 147 मामले आए सामने
पुलिस ने कहा कि इसके बाद परिवार पीड़ा से गुजरा और कई दिनों तक लोगों से नहीं मिल पाया. उन्होंने कुछ दिनों तक अपनी दुकान भी बंद रखी. वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में राज्य में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के 147 मामले सामने आए. राज्य दूसरे स्थान पर था, जबकि कर्नाटक 235 मामलों के साथ पहले स्थान पर था. 112 मामलों के साथ छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर था. साल 2023 में दिसंबर के मध्य तक राज्य भर में 160 मामले सामने आए. पुलिस बताती है कि वो इस मुद्दे पर जागरूकता कार्यशालाएं, सेमिनार आयोजित कर रही है.
पुलिस का कहना है कि साथ ही वो बाल पोर्नोग्राफी और साइबर धोखाधड़ी के प्रति जागरूकता के संबंध में पर्चे और पोस्टर भी प्रकाशित कर रही है. बता दें पोर्नोग्राफी बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है. यह अवसाद, क्रोध और चिंता से जुड़ा है. इससे मानसिक कष्ट हो सकता है. इसका असर बच्चों के दैनिक कामकाज, उनकी जैविक घड़ी, उनके काम और उनके सामाजिक संबंधों पर भी पड़ता है. बच्चों के माता-पिता को पहल करनी चाहिए और अपने बच्चों को सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें साझा करने के नुकसान के बारे में बताना चाहिए.
सोशल मीडिया का मिसयूज रहे मालूम: मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना कहती हैं कि अब समय आ गया है कि बच्चों को सोशल मीडिया से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जाए. असल में इस तरह की घटनाएं जो होती हैं, वो ऐसा अपराध है जो अपराधी जैसा पीड़ित के जीवन को प्रभावित करते हैं. बच्चे गहरे अवसाद में चले जाते हैं. कई बार तो अपने साथ कुछ गलत कर बैठते हैं. उन्हें इससे निकालने के लिए उनका जागरुक होना बेहद जरुरी है.'