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किसी वकील की भूमिका क्या होनी चाहिेए, सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट जमीन मुआवजा मामले में महाराष्ट्र की ओर से पेश हुए वकील को फटकार लगाई। न्यायालय ने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के हलफनामे को 'अवमाननापूर्ण' माना और वकील से कहा कि उन्हें ऐसा हलफनामा दाखिल करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी। इस पर वकील ने तुरंत माफी मांग ली और उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य आईएएस का यह बयान वापस ले रहा है। हालांकि, कोर्ट का गुस्सा शांत नहीं हुआ और उसने उस आईएएस ऑफिसर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वकील को एक और नसीहत दी कि उन्हें अपने मुवक्किल के डाकिये के तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए बल्कि उसे कोर्ट के एक अफसर की भूमिका निभानी चाहिए।

छह दशक पहले जमीन पर हुआ था अवैध कब्जा

मामला एक जमीन से जुड़ा है जिस पर राज्य ने छह दशक पहले अवैध कब्जा कर लिया था। अब सुप्रीम कोर्ट असली जमीन मालिक को आर्थिक मुआवजा दिलाने के विकल्पों पर विचार कर रहा है। कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य से पुणे के पास की उस जमीन का वर्तमान मूल्य पता करने का आदेश दिया। राज्य ने 37 करोड़ रुपये मुआवजा देने को तैयार हो गया था, लेकिन कोर्ट ने उसे अभी का रेट बताने को कहा।

कोर्ट ने आईएएस अफसर को किया तलब

कोर्ट के सवाल पर आईएएस ऑफिसर ने जवाब दाखिल किया। उसने कहा, 'आवेदक (जमीन मालिक) के साथ-साथ यह कोर्ट भी पुणे कलेक्टर के ताजा आकलन को नहीं मानेगा। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह कानूनी प्रावधान के तहत उचित आकलन करके जमीन का मुआवजा तय कर। ताजा आकलन के मुताबिक, 48.6 करोड़ रुपये का मुआवजा बनता है।'

जमीन के बदले जमीन का ऑफर ठुकराया

महाराष्ट्र सरकार ने जमीन के बदले पुणे नगरपालिका क्षेत्र में ही वैकल्पिक जमीन देने का ऑफर दिया, लेकिन आवेदक ने इसे ठुकरा दिया। तब कोर्ट ने आवेदक के वकील ध्रुव मेहता से कहा कि वो अपने मुवक्किल से पूछकर बताएं कि क्या वह मुआवजा चाहता है या जमीन के बदले जमीन। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य ने जो जमीन ऑफर की है, उसका दोनों पक्ष साथ जाकर मुआयना करे।

लटकाने की तरकीब नहीं अपनाए राज्य: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि राज्य ने जमीन की वर्तमान दर से मुआवजे का आकलन नहीं किया। उसने कहा कि यह और कुछ नहीं, मामले को लटकाए रखने की राज्य की तरकीब है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'स्पष्ट है कि राज्य के वकील ने कोर्ट को जो भरोसा दिलाया, उस पर राज्य खरा नहीं उतरा। उन्होंने फिर से यही कहा कि राज्य 1989 की दर से मुआवजा और उस राशि पर ब्याज मिलाकर कुल पैसे देने को तैयार है। राज्य ने अगर विशेष उद्देश्य से वक्त लिया तो राज्य को चाहिए था कि वह इस पर काम करता और उचित आकलन के साथ मुआवजा राशि का आंकड़ा बताता… हमें लगता है कि राज्य सिर्फ मामले को लटकाने की जुगत में लगा है।'

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