मध्यप्रदेश

गांधी हाल से पंखे, सागवान का दरवाजा और पुरातत्व महत्व की चीजें हो रही चोरी

इंदौर

 स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जिस गांधी हाल को दो वर्ष पहले 25 करोड़ रुपये खर्च कर संवारा गया था वह अव्यवस्थाओं के चलते बदहाल होने लगा है। हालत यह है कि पूरे परिसर में अवांछित तत्वों का कब्जा है। जहां-तहां गंदगी और कचरा पड़ा है। गांधी हाल की इमारत पर पीपल के पेड़ उगने लगे हैं। गांधी हाल की ऊपरी मंजिल पर सीलन की वजह से जगह-जगह फफूंद नजर आने लगी है।

इस एतिहासिक महत्व की इमारत की सुरक्षा को लेकर निगम, प्रशासन कितना गंभीर है यह इसी से समझा जा सकता है कि गांधी हाल से कीमती पंखे, सागवान का दरवाजा और पुरातत्व महत्व की चीजें चोरी हो रही हैं। चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने सीसीटीवी कैमरों की वायरिंग भी उखाड़ दी है।

गांधी हाल के पुनरुद्धार का काम करीब दो वर्ष चला था। इस दौरान इस इमारत का कायाकल्प किया गया था। रंगरोगन से लेकर फर्श बदलने, वाटर प्रुफिंग, परिसर में बगीचे विकसित करने जैसे कई काम हुए थे। इसके बाद उम्मीद जताई जाने लगी थी कि यह पिकनिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो जाएगी। पुनरुद्धार के बाद ऐसा हुआ भी।

बड़ी संख्या में लोग यहां आने लगे थे, लेकिन इसके बाद रखरखाव और सुरक्षा के अभाव में गांधी हाल की हालत बिगड़ने लगी। वर्तमान में इमारत पर जगह-जगह पीपल के पेड़ उग रहे हैं जो इस इमारत को लगातार कमजोर कर रहे हैं। हाल के भीतर जगह-जगह फर्श उखड़ने लगा है। वाटर प्रूफिंग को धता बताते हुए छत पर जगह-जगह सीलन नजर आ रही है। हैरानी की बात यह है कि चोर पहली मंजिल की गैलरी में जाने वाला सागवान का दरवाजा ही उखाड़कर ले गए।

परिसर में होने लगे अवैध कब्जे
नईदुनिया की टीम ने गांधी हाल का दौरा किया तो पता चला कि इमारत के आसपास पूरे परिसर में अवैध कब्जे हो रहे हैं। लोगों ने कच्चा निर्माण कर रहना शुरू कर दिया है। परिसर में ही बने सुविधाघर की हालत भी अत्यंत खराब है।

120 वर्ष पहले हुआ था निर्माण
गांधी हाल का निर्माण वर्ष 1904 में हुआ था। उस वक्त इसके निर्माण पर करीब ढाई लाख रुपये खर्च किए गए थे। प्रिंस ऑफ वेल्स (जार्ज पंचम) के भारत आगमन पर इसका निर्माण किया गया था। उस वक्त इसका नाम किंग एडवर्ड हाल रखा गया था। स्वतंत्रता के बाद इसका नाम बदलकर गांधी टाउन हॉल किया गया। पहले हाल में पुस्तकालय संचालित होता था और परिसर में बगीचा बना था। बच्चों के खेलने के लिए झूले-चकरी, फिसल-पट्टी भी लगी थी।

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