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एक फिर बढ़ा कर्ज लेने वालों का इंतजार, RBI ने नहीं दी कोई राहत, नौवीं बार नहीं बदला रेपो रेट

नई दिल्ली
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) ने रेपो रेट में एक बार फिर कोई बदलाव नहीं किया है। यह लगातार नौवां मौका है जब इसे यथावत रखा है। मंगलवार को शुरू हुई एमपीसी की मीटिंग में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि रेपो रेट को एक बार फिर 6.5% पर बरकरार रखने का फैसला लिया गया है। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनने के बाद एमपीसी की यह पहली बैठक और कुल 50वीं बैठक थी। दास ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने नीतिगत दर को यथावत रखने के निर्णय के पक्ष में मत दिया। रेपो रेट के यथावत रहने का मतलब है कि आपके लोन की किस्त में कोई बदलाव नहीं होगा। रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को लोन देता है। इसके कम होने से आपके होम लोन, पर्सनल लोन और कार लोन की किस्त कम होती है। आरबीआई ने रेपो रेट आखिरी बार बदलाव पिछले साल फरवरी में किया था। तब इसे 0.25% बढ़ाकर 6.50% किया गया था।

दास ने कहा कि समिति ने ग्रोथ को सुनिश्चित करने के लिए महंगाई पर फोकस करने और कीमतों में स्थिरता को सपोर्ट करने का फैसला किया है। मुख्य महंगाई के अप्रैल-मई में स्थिर रहने के बाद जून में इसमें तेजी आई। तीसरी तिमाही में महंगाई में कमी आने की उम्मीद है। ग्लोबल इकनॉमिक आउटलुक में अनईवन एक्सपेंशन दिख रहा है। कुछ देशों के केंद्रीय बैंकों में अपना पॉलिसी रुख सख्त किया है। डेमोग्राफिक शिफ्ट, जियोपॉलिटिकल तनाव और सरकारों के बढ़ते कर्ज से नई तरह की चुनौतियां पैदा हो रही हैं। उन्होंने कहा कि 2024-25 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2 फीसदी रहने का अनुमान है। इसके पहली तिमाही में 7.1%, दूसरी तिमाही में 7.2%, तीसरी तिमाही में 7.3% और चौथी तिमाही में 7.2% रहने की उम्मीद है।

कब कम होगी महंगाई

दास ने कहा कि एमपीसी ने उदार रुख को वापस लेने का रुख बरकरार रखा है। उन्होंने कहा कि महंगाई में व्यापक रूप से गिरावट का रुख दिख रहा है। तीसरी तिमाही में आधार प्रभाव के लाभ से कुल महंगाई नीचे आ सकती है। हालांकि उन्होंने साथ ही कहा कि महंगाई में खाने-पीने की चीजों की कीमत में तेजी अब भी चिंता का विषय बनी हुई है। परिवारों की खपत से मांग में सुधार को समर्थन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि खुदरा महंगाई चालू वित्त वर्ष में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में तेजी से खुदरा महंगाई में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। घरेलू मांग बढ़ने से विनिर्माण गतिविधियों में तेजी जारी है और सेवा क्षेत्र की रफ्तार भी बरकरार है। उन्होंने कहा कि कृत्रिम मेधा (AI) जैसी नई प्रौद्योगिकियां वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौतियां पेश करती हैं।

क्या होता है रेपो रेट

हालांकि महंगाई से जुड़ी चिंताओं और आर्थिक वृद्धि की मजबूत रफ्तार को देखते हुए इस बार भी नीतिगत ब्याज दर में किसी बदलाव की कम ही संभावना थी। ब्लूमबर्ग के एक सर्वे में भी 43 में से 42 अर्थशास्त्रियों ने रेपो रेट के यथावत रहने की बात कही थी। जून में खुदरा महंगाई चार महीनों के उच्च स्तर 5.08% पर पहुंच गई थी। खासकर सब्जियों एवं अन्य कुछ प्रमुख खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से खुदरा महंगाई बढ़ी है। जुलाई में घर का बना खाना महंगा हो गया है। शाकाहारी यानी वेज थाली 11% महंगी हुई है। वहीं, नॉन-वेज थाली की कीमत में 6% की बढ़ोतरी हुई। प्याज, टमाटर और आलू जैसी सब्जियों के दाम बढ़ने से घर के खाने का खर्च बढ़ा है।

जिस तरह से आप बैंकों से अपनी जरूरतों के लिए लोन लेते हैं, उसी तरह से पब्लिक और कमर्शियल बैंकों भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक से लोन लेते हैं। जिस तरह से आप कर्ज पर ब्याज चुकाते हैं, उसी तरह से बैंकों को भी ब्याज चुकाना होता है। यानी भारतीय रिजर्व बैंक की जिस ब्‍याज दर पर बैंकों को लोन देता है, वो रेपो रेट कहलाता है। रेपो रेट कम होने का मतलब बैंकों को सस्ता लोन मिलेगा। अगर बैंकों को लोन सस्ता मिलेगा तो वो अपने ग्राहकों को भी सस्ता लोन देंगे। यानी अगर रेपो रेट कम होता है तो इसकी सीधा फायदा आम लोगों को मिलता है। अगर रेपो रेट बढ़ता है तो आम आदमी के लिए भी मुश्किलें बढ़ती है।

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