छत्तीसगड़

धर्मेंद्र वस्त्रकार बिलासपुर” जबर हरेली रैली” क्रान्ति सेना का विशाल सांस्कृतिक आयोजन

छत्तीसगढ़िया क्रान्ति भेलई सेना जबर हथेली रैली

 धर्मेंद्र वस्त्रकार बिलासपुर" जबर हरेली रैली" क्रान्ति सेना का विशाल सांस्कृतिक आयोजन

प्रकृति देवता को समर्पित हरेली की छटा बिखरेगी भिलाई में

छत्तीसगढ़ महतारी और हसदेव बचाओ झांकी मुख्य आकर्षण

गुड़ के चीले एवं ठेठरी-खुरमी का बंटेगा महाप्रसाद

भिलाई

रविवार 28 जुलाई को छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के तत्वावधान में अंबेडकर मूर्ति, पावरहाउस भिलाई से लगातार सातवीं बार  जबर हरेली रैली निकलेगी । इस रैली में हजारों लोक कलाकार एवं लाखों छत्तीसगढ़ियाजन अपने प्रथम त्यौहार हरेली को उल्लासमय वातावरण में मनाते चलेंगे । सुसज्जित बैलगाड़ियों का जूलूस, बस्तरिहा रेला-पाटा, गेड़ी, पंथी, करमा, सुवा, राऊत नाचा, डंडा नृत्य करते हुए लोग प्रकृति के साथ-साथ अपनी मूल संस्कृति को बचा कर रखने का संदेश देते चलेंगे । छत्तीसगढ़ महतारी और छत्तीसगढ़िया महापुरुषों की झांकी, हसदेव जंगल रक्षा का संदेश देती चलित झांकी रैली के विशेष आकर्षण होंगे ।

साथ में महिला पंथी दल का गतिमान नृत्य एवं छत्तीसगढ़ के मार्शल आर्ट "अखाड़ा" के रुप में छत्तीसगढ़ियों का शौर्य प्रदर्शन होगा । विशाल जन-समूह के साथ चलती रैली आगे जाकर रिसाली दशहरा मैदान के जनसैलाब में समाहित हो जाएगी । वहां हल एवं कृषि औजारों की पूजा होगी, छत्तीसगढ़ महतारी, बुढ़ादेव एवं पुरखा देवताओं की महा आरती होगी, उसके बाद छत्तीसगढ़ियों की दशा-दिशा को दर्शाता स्व.प्रेम साईमन रचित नाट्य "घर कहाँ हे?" का मंचन होगा तत्पश्चात विशाल मंच छत्तीसगढ़ के लोक कला मर्मज्ञ एवं साहित्यकार डॉ पीसीलाल यादव को उनके कार्यक्रम "दूधमोंगरा,गंडई" के प्रदर्शन के लिये सौंप दिया जाएगा ।

आयोजकों ने इस आयोजन का उद्देश्य समझाते हुए कहा कि "जबर हरेली रैली" छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को जिंदा रखने का एक सांस्कृतिक आंदोलन है । यह लगातार हो रहे आयातित बाहरी सांस्कृतिक आक्रमणों से छत्तीसगढ़ियापन को बचाने का एक सार्वजनिक संकल्प है । हरेली प्रकृति की संरक्षा का महापर्व है । प्रदेश की खेती जमीन, हसदेव जैसे जंगल, नंदीराज जैसे पहाड़ों और सैकड़ों प्राकृतिक जलस्रोतों को आज खदानों और उद्योग दानवों को भेंट चढ़ाया जा रहा है । छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना ने प्रदेश वासियों से अपील करते हुए कहा कि ऐसे सांस्कृतिक आयोजनों के द्वारा एकजुट होकर हम अपने भटके हुए नीति-निर्धारकों को उनकी गलत नीतियों को ठीक करने का कठोर संदेश दे पाएंगे जो हर पल हमारे प्राकृतिक संसाधनों का बाजार लगाकर सौदा करते जा रहे हैं ।

 

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